दिल्ली में जैसा चायवाला है, वैसा ही त्रिपुरा में दर्जी का बेटा !
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की छवि साफ सुधरी मानी जाती है. न कार, न बंगले में रहने वाले माणिक सरकार आम जीवन जीते हैं.
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देश के कई राज्यों के विधायक भले ही करोड़पति और अरबपति हों, लेकिन देश में एक नेता ऐसा भी है, जो पिछले 29 साल से मुख्यमंत्री है और उसकी कुल संपत्ति है 2.5 लाख रु. मिलिए, ये हैं त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार.
माणिक सरकार देश के सबसे गरीब, लेकिन साफ-सुथरी छवि वाले मुख्यमंत्री माने जाते हैं. मार्च 1998 से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री हैं. 2013 के विधानसभा चुनावों के बाद वे लगातार चौथी बार मुख्यमंत्री बने. हाल ही में उन्होंने बीजेपी पर वार करते हुए कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार देश में गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ भेदभाव कर रही है.
मां सरकारी कर्मचारी तो पिता टेलर
माणिक सरकार का जन्म 22 जनवरी 1949 को त्रिपुरा के उदयपुर में हुआ. उनकी मां त्रिपुरा में ही सरकारी कर्मचारी थीं तो उनके पिता अमूल्य सरकार दर्जी थे. सरकार ने बैचलर ऑफ कॉमर्स अगरतला के महाराजा बीर बिकरम कॉलेस से की.
सरकार के पास नहीं है कार
मणिक सरकार की शादी पंचाली भट्टाचार्य से हुई जो केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड में कार्य करती थीं. 2011 में उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया. सीएम होते हुए भी उनके पास खुद की कार नहीं है. वो अपने ऑफिस पैदल जाते हैं. वहीं उनकी पत्नी के पास भी कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं है, वो भी रिक्शे में सफर करती हैं. 432 स्क्वॉयर फुट के एक छोटे मकान में रहते हैं जिसकी कीमत 2.20 लाख रुपये हैं. वह अपने कपड़े खुद धोते हैं. लेकिन विपक्ष इसे सच नहीं मानता और काफी हमले भी करता है.
19 साल की उम्र में उतर गए थे राजनीति में
कॉलेज के दिनों से ही सरकार राजनीति में काफी सक्रिय थे. जहां उन्होंने छात्र आंदोलन में हिस्सा लिया. जहां उन्हें सही एक्सपोजर मिला और उन्हें कॉलेज का जनरल सेकेट्री बना दिया गया. 1967 में वहां कांग्रेस की सरकार थी, खाद्य आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और खुद को राजनीति में झोंक दिया.
23 की उम्र में सरकार ने सीपीआई की स्टेट कमेटी ज्वाइन की. 6 साल बाद यानी 1978 में उनको कम्युनिस्ट पार्टी का पार्टी सेक्रेट्रिएट बना दिया गया. उस वक्त पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार त्रिपुरा में बनी थी. 1980 में वो पहली बार अगरतला के MLA बने जिसके बाद उन्हें कम्यूनिस्ट पार्टी का मुख्य सचेतक बना दिया गया. लगातार पार्टी को ऊचाईयों पर पहुंचाने के बाद पार्टी ने उन्हें 1998 में सीएम बना दिया.
सैलेरी दे देते हैं पार्टी को
सरकार अपनी सैलेरी पार्टी को डोनेट कर देते हैं. 5 हजार लेकर घर का खर्च चलाते हैं. यही नहीं 2013 में नामंकन भरते हुए उन्होंने हलफनामा पेश किया था जिसके मुताबिक उनके पास 1080 रुपए नकद तथा बैंक में 9720 रुपए थे. त्रिपुरा की जनता भी उनपर अटूट विश्वास रखती है.
अब सियासत की बात
2018 की शुरुआत में त्रिपुरी में चुनाव होने वाले हैं, और फिलहाल ऐसी कोई सूरत नहीं दिख रही है जो माणिक सरकार के 5वीं बार मुख्यमंत्री बनने की राह रोके. लेकिन बीजेपी ने अपनी गतिविधि तेज कर दी है. अमित शाह अभी से रैलियां कर रहे हैं. राज्य में त्रिणमूल कांग्रेस की पूरी इकाई बीजेपी में शामिल हो चुकी है. लेकिन माणिक सरकार इन सबसे बेपरवाह हैं. वजह है लोगों के भरोसे पर भरोसा. जिस तरह गुजरात में नरेंद्र मोदी अभेद्य रहे हैं, वैसे ही त्रिपुरा में माणिक. चायवाले की पृष्ठभूमि लेकर मोदी के साथ जो ईमानदारी की ताकत है, वही ताकत माणिक सरकार के साथ भी है. ऐसे में त्रिपुरा की लड़ाई दिलचस्प होने वाली है.
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