Udaipur Murder Case: सेक्युलरिज्म के नाम पर ऐसे छला और मारा जा रहा है हिंदू...
सोशल मिडिया पोस्ट को आपत्तिजनक मानते हुए इस्लामिक कट्टरपंथ से सराबोर दो मुस्लिम युवकों ने उदयपुर के एक दर्जी कन्हैया लाल की हत्या कर दी. हिंदुस्तान सकते में हैं लेकिन बोलने की हिम्मत नहीं हो रही कि मारने वाले इस्लाम धर्म के कट्टरवादी हैं. ये खुलकर कहने में जाने कौन सा डर है?
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ज्ञानवापी के वज़ुखाने से शुरू हुई आग उदयपुर में किसी मासूम का खून बन कर सड़क पर फ़ैल गयी. दिन दहाड़े राजस्थान के उदयपुर शहर के धानमंडी थाना क्षेत्र के मालदास स्ट्रीट में दो लोगों ने एक युवक की गला रेतकर हत्या कर दी. मामले के दोनों आरोपी मोहम्मद रियाज और गोस मोहम्मद, कन्हैयालाल की सिलाई की दुकान में बतौर ग्राहक गए और नाप लेते हुए उसकी गला काट कर हत्या कर दी. कन्हैयालाल का कुसूर ये था कि उसने ज्ञानवापी मामले में नूपुर शर्मा का समर्थन किया. दोनों आरोपियों को राजसमंद के भीम इलाके से अरेस्ट कर लिया गया है.
सेक्युलर माने हिन्दू विरोधी
सकते में हैं हिंदुस्तान लेकिन बोलने की हिम्मत नहीं हो रही. मारने वाले इस्लाम धर्म के कट्टरवादी हैं, ये खुल कर कहने में जाने कौन सा डर है? सत्तर साल से भारत के सरकारी तंत्र और सामाजिक तंत्र में सेक्युलर होने की परिभाषा यही है. कभी भी किसी भी नेता किसी समूह ने इस्लाम के विरोध और हिन्दू समाज की बात की है तो उसे कट्टरवाद का नाम दे दिया गया.
उदयपुर में जिस तरह से निर्दोष दर्जी की हत्या हुई है वो तमाम तरह के सवाल खड़े करती है
कांग्रेस पार्टी जो खुले आम मुसलमानों की तुष्टिकरण पर राज करती आई है और जिनके कुछ नेता पिछले कुछ सालों में आतंकवादी नेताओं के साथ उठते बैठते भी दिखाई देते है. उनके लिए भारत के हिन्दू नागरिक की शिकायत की शायद कोई कीमत नहीं? क्योंकि हिन्दू नागरिक की शिकायत कट्टरवाद ही होगा.
शायद यही वजह थी की कन्हैयालाल की सुरक्षा की मांग को नज़रअंदाज़ कर दिया गया. कन्हैयालाल के खिलाफ 10 जून को आपत्तिजनक पोस्ट लिखने की शिकायत दर्ज़ कराई गयी. पोस्ट जो थी नूपुर शर्मा के समर्थन में. कन्हैयालाल को गिरफ्तार किया गया जहां उसने जान की धमकी मिलने की बात भी कही.
इसे नज़रअंदाज़ करते हुए पुलिस और कुछ लोगो की मौजूदगी में दोनों तरफ ले लोगो में समझौता कराया गया. जान लीजिये ये समझौता पुलिस यानि कानून के बीच बचाव के साथ हुआ. उसके बावजूद शिकायत दर्ज करने वाले अपने अल्लाह की बेइज़्ज़ती के बदले 'सर तन से जुदा' की सोच को ले कर आगे चले और राजस्थान में तालिबानी कानून की झलक दी.
दिन दहाड़े दो मुसलमान युवक न सिर्फ उसका गला रेतते हैं बल्कि ISIS की तर्ज़ पर वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल देते हैं. अपने ईश्वर के नाम पर किये काम को अंजाम देते हुए देश के प्रधानमंत्री को भी धमकी देते हैं. याद रहे ये धमकी इसलिए नहीं की वो प्रधानमंत्री है बल्कि इसलिए की वो निजी तौर पर हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं. ये धमकी एक धर्म के आतंकी की दूसरे धर्म के अनुयायी को थी.
कहां लगती है इस्लामी कट्टरता की क्लास?
इस्लाम धर्म से जुडी कट्टरता के खतरे को स्वीकारने, समझने और निपटने का आखिरी अलार्म है उदयपुर में इस्लामी आतंक का नमूना. जी हां ये आतंकी घटना है, इसे किसी भी हाल में हत्या नहीं कहा जा सकता. इस घटना को हत्या नहीं आतंक की घटना ही माना जायेगा. पूरे विश्व में आतंक का एक ही चेहरा है- इस्लामिक! एक अकेला धर्म जो आमादा है पूरे विश्व में अपने को स्थापित करने में. लुटेरे बन कर कर आना और देशों को अपने अधिपत्य में ले कर उसे इस्लामी देश बनाना इनका पुराना तरीका है. इन सभी बातों को जानते हुए भी भारत न सिर्फ सर्वधर्म समभाव को ले कर चलता रहा बल्कि हर धर्म को फलने फूलने की जगह दी.
भारत का सेक्युलरिज़्म भारतीयों के गले में बंधी हुई घंटी है, जिसे बांधने वाले अपनी पुश्तों के ऐश का इंतेज़ाम कर खुद अल्लाह को प्यारे हो गए. एक देश के दो टुकड़े हुए धर्म के नाम पर. एक इस्लाम धर्म को मानने वाला और दूसरा सर्वधर्म. किस वजह से ये आज तक साफ़ न हो सका. बरसों तक हमारी किताबों में हमें पढ़ाया गया कि आज़ादी के समय जिन मुसलमानो ने यहां रहना स्वीकार किया वो माइनॉरिटी में है और हर भारतीय को सेक्युलर रह कर देश को आगे बढ़ाना है.
हम सेक्युलर होने का पाठ पढ़ते रहे और ये अपने ग्रंथ में लिखी हर दकियानूसी बात को घोंट घोंट कर नस्लों को पिलाते रहे. भारत में मुसलमानों को अपने धर्म का अनुसरण करने और प्रचार प्रसार करने की जितनी सहूलियतें दी गयी है, ये उसी का नतीजा है.
संविधान के आर्टिकल 28 के अनुसार किसी भी शैक्षणिक धर्म के अनुसार पढाई नहीं होगी, किन्तु आर्टिकल 29 के अनुसार माइनॉरिटी को अपना धर्म-संस्कृति को बचाने और प्रसारित करने का पूरा हक़ है. तो जो मदरसे खुले और उनमे हुई धार्मिक किताबों की पढाई. ये पढाई कैसी है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की आज केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान स्वयं कहते है की मदरसों में पढ़ाई जाने वाली कट्टरपन की शिक्षा ही इस कट्टर सोच की वजह है जिसने युवा नहीं आतंकी पैदा किये हैं!
इन मदरसों को फंड दूसरे देशो के इस्लामी आतंकी संगठनों से मिलता है जो इस धर्म की कट्टरता के अनुसार हर काफिर के क़त्ल का बीड़ा उठाये हुए है. ये भी जान लीजिये की मंदिरों के ट्रस्ट का लेखा जोखा सरकार के पास है किन्तु मदरसों में आने वाले किसी भी फंड के कोई लेखा जोखा हम नहीं रख सकते! सेक्युलरिज़्म यू सी! माइनॉरिटी है वो उनसे सवाल नहीं पूछना है.
हैरानी की बात है की भारत के नागरिकों को सेक्युलरिज़्म की घुट्टी इस तरह पिलाई गयी है कि आज भी बुध्दिजीवी और राजनीति से जुड़े लोग खुल कर इस आतंक की भर्त्सना नहीं कर रहे. पत्थर मारने वाले अराजक तत्व के घरों को बुलडोज़र से गिराने की मुखालफत करने के लिए छाती पीट पीट कर रोने वालों की कमी नहीं थी.
जो लोग हिन्दू ज्ञानवापी और रामजन्मभूमि को हिन्दू कट्टरवाद का जामा पहना रहे थे, वो आज की घटना को धर्मिक कट्टरवाद बोल रहे हैं, इस्लामिक कटटरवाद नहीं! बेशर्मी और दोगलेपन की सीमा तब होती है जब पहनावे से ले कर खानपान इन्हें अपने धर्म के अनुसार चाहिए लेकिन अपराध पर सज़ा IPC के अनुसार. क्यों न एक बार इनकी पवित्र किताब के अनुसार की सज़ा दी जाये! खुले में पत्थर मार मार कर आरोपियों की हत्या?
आखिरी मौका है अगर देश को सेक्युलर बनाना है तो कड़े कदम उठाने होंगे, संविधान में कुछ बदलाव लाना होगा. ये कहना होगा की सेक्युलर का मतलब प्रो-इस्लाम नहीं हो सकता - किसी कीमत पर नहीं हो सकता! आतंक की सज़ा फांसी हो गोली हो या कुछ और लेकिन हो और जल्दी हो!
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