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Updated: 11 जून, 2021 05:04 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में मुलाकातों का बड़ा ही महत्व रहा है. खासकर 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से - चुनाव बाद बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूट जाने के बाद से तो ये मुलाकातें इतनी अहम हो चुकी हैं कि एक छोटी सी मुलाकात भी बड़ी आशंकाओं को जन्म दे बैठती हैं.

कभी ये मुलाकातें किसानों के नाम पर होती हैं. कभी शिष्टाचार के नाते बतायी जाती हैं - और कभी कभी तो इंटरव्यू के रिहर्सल के लिए भी मुलाकातें छुपते-छुपाते होटलों में भी हुआ करती हैं. कुछ मुलाकातों की पुष्टि तो संदेह पैदा करने वाले बयानों में ही हो जाती है.

महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़ी मुलाकातों की कड़ी में ताजातरीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ हुई मुलाकात है - ये मुलाकात भी अपनेआम में अनूठी रही क्योंकि 'बॉय वन, गेट वन' जैसी लगती है - खबर है कि उद्धव ठाकरे ने अपने दो मंत्रियों अजित पवार और अशोक चव्हाण के साथ भी मुलाकात की और अलग से एक निजी मुलाकात भी कर डाली.

उद्धव-मोदी मुलाकात ने शरद पवार और अमित शाह की संभावित मुलाकात के सस्पेंस एक बार फिर याद दिला दी है. पवार-शाह मुलाकात का सबसे मजबूत पक्ष रहा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह वो एक वाक्य का बयान - “हर बात सार्वजनिक नहीं की जा सकती!”

शरद पवार और देवेंद्र फडणवीस की हालिया मुलाकात के बाद उद्धव-मोदी मुलाकात ने एक साथ बीते दिनों की सारी मुलाकातों को महत्वपूर्ण बना दिया है - आखिर चल क्या रहा है?

क्या उद्धव-मोदी मुलाकात को महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार के कायम रहने या खतरे में पड़े होने के तौर पर देखा और समझा जा सकता है?

क्या उद्धव-मोदी मुलाकात के साये में महाराष्ट्र के नजदीकी राजनीतिक भविष्य को देखने और समझने की कोशिश की जा सकती है - क्योंकि ये सवाल महत्वपूर्ण तो है ही कि आखिर महाराष्ट्र की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ रही है?

उद्धव-मोदी और पवार-शाह संपर्क में कितना फर्क है?

अप्रैल, 2021 में ही शरद पवार और अमित शाह की गुजरात में हुई मुलाकात को लेकर आयी खबर उद्धव ठाकरे की चिंता बढ़ाने वाली थी, लेकिन हाल में पवार और देवेंद्र फडणवीस के बीच हुई मीटिंग ने हो सकता है शिवसेना नेतृत्व को ज्यादा परेशान किया हो.

शरद पवार के सर्जरी के बाद ठीक होकर लौटने पर मुख्यमंत्री के सरकारी आवास वर्षा बंगले पर उद्धव ठाकरे के साथ एक मीटिंग में खुशनुमा माहौल न होने की खबर मिली थी. शरद पवार के साथ मुलाकात में उद्धव ठाकरे ने गठबंधन सरकार को लेकर गहरी नाराजगी जतायी थी. लहजा भी कुछ ऐसा बताया गया जो पहले शायद ही सुनने को मिला हो.

Narendra Modi, uddhave thackeray, sharad pawarउद्धव ठाकरे की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निजी मुलाकात महाराष्ट्र में शरद पवार की राजनीतिक गतिविधियों को न्यूट्रलाइज करने की कवायद लगती है

मीटिंग में उद्धव ठाकरे ने शरद पवार को बताया था कि मुख्यमंत्री की कार्य शैली पर बार बार सवाल उठाना और मीटिंग के दौरान एनसीपी के मंत्रियों का ऊंची आवाज में बोलना, किसी भी तरीके से भी ठीक बात नहीं है. उद्धव ठाकरे ने शरद पवार से अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बता और जता दिया था कि एनसीपी के मंत्री के साथ तू-तू मैं-मैं गठबंधन की गाड़ी को लंबा सफर तय करने में बड़ी बाधा बन सकता है.

शरद पवार को उद्धव ठाकरे की तरफ से जो सबसे सख्त बात बोली गयी, वो ये थी कि 'गठबंधन की सरकार चलाने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ शिवसेना की ही नहीं है.'

मीटिंग का राजनीतिक संदेश ये रहा कि अगर गठबंधन सरकार के गिर जाने की नौबत आती है तो उसके लिए अकेले शिवसेना जिम्मेदारी नहीं लेने वाली, एनसीपी को भी वक्त रहते सचेत हो जाना चाहिये और सहयोग के साथ सरकार चलाने की कोशिश करनी होगी, न कि शोर मचाने से कुछ होने वाला है.

देखा जाये तो उद्धव ठाकरे ने शरद पवार को ये संदेश देने की भी कोशिश की कि एनसीपी के रवैये के चलते उनके लिए मौजूदा गठबंधन सरकार चलाना मुश्किल हुआ तो वो भी नये रास्तों की तलाश पर विचार कर सकते हैं - दो महीने पहले संजय राउत ने जावेद अख्तर के शेर के साथ गठबंधन के साथियों ऐसा ही संदेश देने की कोशिश कर रहे थे.

शरद पवार के साथ अपनी मुलाकात को लेकर पूछे जाने पर अमित शाह ने जिस तरीके से जवाब दिया वो ऐसा राजनीतिक बयान रहा जो मुलाकात होने या या नहीं होने की परवाह से कहीं आगे बढ़ कर नये इशारे कर रहा था, जबकि एनसीपी की तरफ से कहा गया, 'ऐसी कोई मुलाकात नहीं हुई है, ये बीजेपी की साजिश है.' शिवसेना प्रवक्ता का मुलाकात के चर्चे को अफवाह बताने और एनसीपी प्रवक्ता के मुकर जाने की भी अमित शाह के रहस्यपूर्ण बयान के बाद कोई अहमियत नहीं बची थी.

मीटिंग को लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर में भी कयासों पर ही आधारित लगी. चर्चाओं के आधार पर बताया गया कि गुजरात के ही एक उद्योगपति ने पहले बारामती में शरद पवार से मुलाकात की और बाद में उनके ही गेस्ट हाउस में अमित शाह की शरद पवार से मुलाकात हुई. आधिकारिक तौर पर अमित शाह के राजनीतिक बयान के अलावा उस मुलाकात को लेकर किसी ने पुष्टि नहीं की.

शरद पवार की अमित शाह के साथ कथित मुलाकात और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मीटिंग के बाद उद्धव ठाकरे के लिए भी जरूरी हो गया था कि कैसे वो मुलाकातों की राजनीति को बैलेंस करें.

बीजेपी और शिवसेना गठबंधन टूटने के बाद अमित शाह और नरेंद्र मोदी के साथ उद्धव ठाकरे के रिश्ते थोड़े अलग से लगते हैं. प्रधानमंत्री मोदी से तो उद्धव ठाकरे की मुलाकात और फोन पर बात भी होती रही है, लेकिन अमित शाह के साथ अलग से ऐसा कोई प्रयोजन नहीं हुआ है. कुछेक सरकारी आयोजन या इवेंट अपवाद जरूर हो सकते हैं.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी और शिवसेना में जारी तनाव के बीच समझा गया कि उद्धव ठाकरे को अमित शाह के वैसे ही मातोश्री आने का इंतजार रहा जैसे 2019 के आम चुनाव से पहले वो संपर्क फॉर समर्थन अभियान के तहत पहुंचे थे. ऐसा नहीं हो सका, शायद ऐसा होता तो गठबंधन नहीं टूटता और उद्धव ठाकरे भी जिद छोड़ दिये होते.

उद्धव ठाकरे को एक बड़े मौके की तलाश थी और मराठा आरक्षण रद्द करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश अच्छा बहाना साबित हुआ. उद्धव ठाकरे ने तभी बोल दिया था कि वो जल्दी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मराठा आरक्षण को लेकर मुलाकात करेंगे.

महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार और पीडब्ल्यूडी मंत्री अशोक चव्हाण के साथ 8 जून, 2021 को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा, 'प्रधानमंत्री ने सभी मुद्दों को गंभीरता से लिया है... केंद्र के पास पड़े मुद्दों पर उनकी तरफ से सकारात्मक निर्णय लेने की उम्मीद है - मैं प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद देता हूं.'

लगे हाथ उद्धव ठाकरे ने सफाई भी पेश कर दी, 'बैठक का कोई राजनीतिक मकसद नहीं था - मैं और मेरे सहयोगी संतुष्ट हैं,' और ये भी बताया कि प्रधानमंत्री के सामने महाराष्ट्र को लेकर 12 डिमांड रखी गयी हैं.

राजनीति में एक निजी मुलाकात कितना मायने रखती है?

जब उद्धव ठाकरे मीडिया के सामने आये तो सबकी दिलचस्पी प्रधानमंत्री से उनकी निजी मुलाकात मे ज्यादा नजर आयी. बार बार पूछे जाने पर उद्धव ठाकरे थोड़े नाराज भी दिखे, 'हम एक राजनीतिक गठबंधन के रूप में साथ नहीं हैं, लेकिन हमारा रिश्ता नहीं टूटा है... मैं वहां नवाज शरीफ से मिलने तो गया नहीं था... मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत रूप से मिलने में कुछ भी गलत है.'

प्रधानमंत्री से मिलने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन सवाल ये है कि उद्धव ठाकरे ने नवाज शरीफ का नाम क्यों लिया? पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तो इस वक्त इमरान खान हैं - क्या इसलिए कि उनके मन में नरेंद्र मोदी के बीच सफर में लाहौर पहुंच कर नवाज शरीफ से मिलने का वो मौका भूला नहीं है?

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद उद्धव ठाकरे की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ये दूसरी मुलाकात थी. दोनों मुलाकातों में कॉमन बात ये रही कि 21 फरवरी, 2020 को उद्धव ठाकरे अपने एक कैबिनेट साथी के साथ मिले थे, हालांकि, इस बार दो मंत्री थे - फर्क ये रहा कि पिछली मुलाकात के साथी मंत्री उनके बेटे आदित्य ठाकरे ही थे. ऐसे में प्रधानमंत्री से अलग से मिलने की वजह भी यही रही होगी.

खबरों के मुताबिक, मंत्रियों के साथ मुलाकात के अलावा प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्री की अलग से मुलाकात के लिए 10 मिनट का वक्त मांगा गया था और वो मंजूर भी कर लिया गया था, लेकिन वो मीटिंग भी करीब आधे घंटे तक चली बतायी जाती है.

क्या उद्धव ठाकरे के प्रधानमंत्री मोदी से अकेले में मिलने का मकसद महाराष्ट्र की राजनीति में चल रहे उठापटक जुड़ा हो सकता है या निजी रिश्तों को कायम रखने की कोशिश?

अक्सर देखा गया है कि उद्धव ठाकरे जब भी बीजेपी नेतृत्व या महाराष्ट्र में विपक्ष को टारगेट करते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से बचते नजर आते हैं. कुछ ऐसे ही भाव प्रधानमंत्री की तरफ से उद्धव ठाकरे के लिए भी देखने को मिले हैं. जब उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने छह महीने पूरे होने वाले थे तो उनके प्रधानमंत्री को फोन करने के बाद महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव करा दिये गये थे. पहले गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी कैबिनेट की सिफारिशों पर ध्यान नहीं दे रहे थे, लेकिन एक फोन कॉल के बाद पत्र लिख कर चुनाव आयोग से आग्रह किया था.

ये भी लगता है कि शरद पवार को गठबंधन सरकार में एनसीपी मंत्रियों के व्यवहार पर दो टूक बोल देने के बाद, उद्धव ठाकरे के लिए भी अपने लिये रास्ते खुले रखने जरूरी थे - और प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात में मन की बात कह न पाये हों, ऐसा तो नहीं लगता.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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