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Updated: 25 जून, 2022 04:05 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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महाराष्ट्र में अगर उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) सरकार गिरती है या शिवसेना टूट जाती है, तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सामने भी वैसी ही मुश्किल खड़ी हो सकती है. जैसे सत्ता के हिस्सेदार होने के लिए 2019 कांग्रेस विधायक सरकार में शामिल होने को आतुर थे, इरादे तो आज भी वैसे ही होंगे. जैसे और जिन वजहों से शिवसेना टूट की कगार पर खड़ी, कांग्रेस नेता तो अक्सर ही ऐसे मोड में होते हैं.

कांग्रेस जरूर महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार में हिस्सेदार है, लेकिन न तो गठबंधन बनते वक्त न बाद में ही राहुल गांधी का कभी कोई जुड़ाव देखने को मिला. तब सोनिया गांधी के सामने ही शरद पवार ने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था और बाद में पूछे जाने पर एनसीपी नेता ने बताया भी था कि राहुल गांधी से उस दौरान उनकी कोई बातचीत हुई ही नहीं.

2020 में एक बार जब कोरोना संकट चरम पर था, एक प्रेस कांफ्रेंस में महाराष्ट्र सरकार को लेकर राहुल गांधी से सवाल पूछ लिया गया - और वो साफ तौर पर बोल दिये थे कि उद्धव ठाकरे की सरकार के बड़े फैसलों में कांग्रेस का कोई रोल नहीं होता.

राहुल गांधी का कहना था, 'हम महाराष्‍ट्र में सरकार को सपोर्ट कर रहे हैं लेकिन वहां डिसिजन मेकर की भूमिका में नहीं हैं... हम पंजाब, छत्‍तीसगढ़, राजस्‍थान, पुड्डुचेरी में की-डिसिजन-मेकर हैं... सरकार चलाने और सरकार का सपोर्ट करने में फर्क होता है.' ये तभी की बात है जब कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिर गयी थी - और तब पुड्डुचेरी में भी कांग्रेस सत्ता में हुआ करती थी.

राहुल गांधी के बयान देने के बाद महाराष्ट्र में बवाल मच गया - और कांग्रेस नेता बाला साहेब थोराट को जैसे तैसे राहुल गांधी के बयान का मतलब समझाते हुए सफाई देनी पड़ी थी. जब मामला नहीं सुलझ रहा था तो राहुल गांधी को उद्धव ठाकरे से बात करने की सलाह दी गयी. राहुल गांधी ने कोशिश भी की, लेकिन संपर्क नहीं हुआ. थक हार कर राहुल गांधी ने आदित्य ठाकरे से बात की और समझाने की पूरी कोशिश की कि जो बातें वो प्रेस कांफ्रेंस में कहे थे उसका मतलब वो नहीं था जो सुनने और समझने में लग रहा था.

अब इसे संयोग कहें या किसी और का प्रयोग कि उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी के सामने अपनी अपनी पार्टियों को लेकर करीब करीब एक जैसे ही संकट पैदा हो गये हैं - कहीं ऐसा तो नहीं कि उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी के राजनीतिक विरोधी यानी बीजेपी (BJP) दोनों ही नेताओं को एक जैसा समझने लगी है?

जैसे कोई जुड़वां राजनीति हो रही हो!

ये भी संयोग ही है कि उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी दोनों ही अपने राजनीतिक विरोधियों के एक जैसे राजनीतिक प्रयोग के शिकार हुए हैं. जाहिर है ऐसे प्रयोग दोनों ही के खिलाफ एक ही कॉमन दुश्मन की तरफ से किये जा रहे हैं - ये भी तो है कि उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी दोनों ही अपने हिस्से की तमाम गड़बड़ियों के लिए केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी किसी न किसी बहाने जिम्मेदार बताते रहे हैं.

rahul gandhi, uddhav thackerayक्या उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी राजनीति के एक ही मोड़ पर पहुंच गये हैं?

ये भी तो है कि दोनों ही नेताओं के लिए विरासत में मिले हुए अपने अपने राजनीतिक दलों को बीजेपी की तीखी नजर से बचा पाना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है. महाराष्ट्र की अभी के राजनीतिक माहौल को देख कर तो ऐसा ही लग रहा है कि जो हाल कांग्रेस का राष्ट्रीय राजनीति में हो गया है, महाराष्ट्र में शिवसेना भी करीब करीब वैसी ही स्थिति में पहुंच चुकी है.

1. उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी में कुछ चीजें तो कॉमन हैं - और वो सबसे खास बात है दोनों ही नेताओं का राजनीति में खास दिलचस्पी न होना. उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी दोनों ही के लिए राजनीति न तो पहला प्यार है, न पैशन.

2. उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी दोनों ही पारिवारिक वजहों से राजनीति में आये हैं - लेकिन उद्धव ठाकरे वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के शौकीन हैं, जबकि राहुल गांधी फिटनेस फ्रीक लगते हैं.

3. उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी दोनों को ही पहले से आ रहा सिस्टम कभी पसंद नहीं आया. उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कट्टर हिंदुत्व की लाइन कभी पसंद नहीं आयी - और गुजरते वक्त के साथ अपने हिसाब से वो बदल भी दिये.

राहुल गांधी के साथ भी करीब करीब वैसा ही मामला रहा, लेकिन कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी को बदल पाना उनके लिए संभव न हुआ. कोशिशें तो बहुत की, लेकिन चल नहीं पाये.

जैसे दोनों ही एक जैसी सोच वाले हों

उद्धव ठाकरे के खिलाफ शिवसेना विधायकों ने बगावत करके सरकार के साथ साथ पार्टी में भी उद्धव ठाकरे को अल्पमत में ला दिया है. एक तरफ राहुल गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से ही संभालने से भागते फिर रहे हैं, दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे को शिवसेना प्रमुख के पद से ही हटाने की तैयारी चल रही है. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की टीम तो अब इसके लिए अदालत जाने की भी तैयारी कर रही है. शिवसेना के चुनाव निशान तीर-धनुष पर को भी हासिल करने की एकनाथ शिंदे की कोशिश है.

राहुल गांधी की भी मिलती जुलती ही स्थिति समझी जा सकती है - क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय की लगातार पूछताछ के बाद उनके लिए जेल जाने का खतरा पैदा हो गया है. फर्ज कीजिये ऐसी किसी अनहोनी की सूरत में कानूनी पेंचीदगियों से उबर पाने में छह महीने भी निकल गये तो राहुल गांधी की भी कांग्रेस पर पकड़ तो उद्धव ठाकरे जितनी ही बचेगी.

राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे के मामले में एक ही फर्क है कि बीजेपी कांग्रेस के खिलाफ ऐलान करके कैंपेन चलाती है - और उद्धव ठाकरे के मामले में परदे के पीछे चल रही साजिशों को हवा और संरक्षण दोनों देती है.

जैसे बीजेपी ने डंके की चोट पर पूरे देश में ऐलान करके कांग्रेस मुक्त भारत अभियान तो चलाया, लेकिन शिवसेना को लेकर ऐसा ही अभियान अघोषित तौर पर चलाया गया - लेकिन, जैसे कांग्रेस मुक्त अभियान के पीछे मकसद देश को कांग्रेस मुक्त नहीं बल्कि कांग्रेस को गांधी परिवार मुक्त बनाना रहा, ठीक वैसे ही अभी शिवसेना को ठाकरे परिवार मुक्त बनाने की कोशिश की जा रही है.

उद्धव ठाकरे ने भी ये चीज महसूस की है और अपने तरीके से कहने की कोशिश भी की है - ठाकरे के बगैर जाओगे कहां? जैसे कह रहे हों, पूछेगा कौन?

अपने परिवार को ही शिवसेना की जड़ बताते हुए उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि वे लोग शिवसेना और ठाकरे परिवार के बिना कुछ नहीं कर पाएंगे. अपने एक और इमोशनल भाषण में उद्धव ठाकरे कहते हैं, 'पेड़ों पर फूल होते हैं... शाखाएं होती है, लेकिन वे जड़ तो नहीं हो जाती हैं... अगर कोई छोड़ गया है तो फिर मैं बुरा क्यों मानूं - सूखे पत्तों को जाने दो, नये आ जाएंगे.'

बिलकुल ऐसी ही ठसक राहुल गांधी में भी अक्सर देखने को मिलती रही है. जैसे राहुल गांधी पर अपने ही नेताओं और कार्यकर्ताओं से दूरी बनाकर रहने के आरोप लगते हैं, उद्धव ठाकरे पर भी बागी शिवसेना विधायक बिलकुल वैसे ही आरोप लगा रहे हैं.

ये ठीक है कि राहुल गांधी 2019 की हार के बाद से गांधी परिवार से अलग के कांग्रेस अध्यक्ष की पैरवी कर रहे हैं, राहुल गांधी भी बाकियों की तरह मान कर चलते हैं कि गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस को कोई चला भी नहीं सकता.

एक जैसे ही दोनों की राजनीति जांच एजेंसियों की शिकार

ये भी देखने को मिलता है कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति के शिकार तो दोनों हुए ही हैं, केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच पड़ताल का भी दोनों नेताओं की राजनीति पर बहुत बुरा असर हुआ है.

जैसे बीजेपी ने राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी को राम मंदिर निर्माण में अड़ंगे डालने को लेकर प्रचारित कर दिया, उद्धव ठाकरे के साथ भी वैसे ही हिंदुत्व के नाम पर घेरा है और लोगों को ये समझाने में सफल रही है कि उद्धव ठाकरे हिंदुत्व की राजनीति को छोड़ चुके हैं. तभी तो ये सफाई देनी पड़ रही है कि वो महाविकास आघाड़ी छोड़ने के लिए भी तैयार हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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