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Updated: 19 जनवरी, 2021 05:15 PM
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पश्चिम बंगाल चुनाव में हर रोज नये नये रंग देखने को मिल रहे हैं. अब एक नया रंग शिवसेना भी घोलने जा रही है. शिवसेना ने ऐलान किया है कि वो पश्चिम बंगाल के चुनावी रण में शिद्दत से हिस्सा लेने जा रही है - और उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने भी इसे लेकर अपनी मंजूरी दे दी है.

शिवसेना की एक मीटिंग में चुनाव लड़ने का फैसला हुआ और मीटिंग के बाद शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत जोरदार तरीके से पश्चिम बंगाल चुनाव लड़ने की घोषणा की - 'हम जल्द कोलकाता पहुंच रहे हैं.'

ये तो साफ है कि शिवसेना ये काम वैसे ही करने जा रही है जैसे, साक्षी महाराज की मानें तो, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने पहले ही अपना इरादा जाहिर कर दिया है - शिवसेना ने भी लगता है ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की मदद उसी तरीके से करने का फैसला किया है, जैसे असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने बीजेपी की.

लगता तो यही है जैसे ममता बनर्जी बनाम बीजेपी की चुनावी जंग में शिवसेना भी AIMIM की तरह वोटकटवा का किरदार निभाने जा रही है - लेकिन ये नहीं समझ में आ रहा है कि उद्धव ठाकरे ने क्या सोच कर पश्चिम बंगाल चुनाव में उतरने का फैसला किया है?

शरद पवार से पहले उद्धव ने बढ़ाये मदद के हाथ

शिवसेना सांसद संजय राउत ने पार्टी के पश्चिम बंगाल चुनाव में हिस्सा लेने की घोषणा ट्विटर पर ही कर डाली. चुनाव लड़ने की घोषणा को भी संजय राउत ने बड़े खास अंदाज में ये जताते हुए किया कि जिस अपडेट का इंतजार रहा वो आ गया है - शिवसेना को पश्चिम बंगाल चुनाव लड़ने के लिए उद्धव ठाकरे ने हरी झंडी दिखा दी है.

संजय राउत ने ट्विटर पर ये तो लिखा ही कि 'हम जल्द कोलकाता पहुंचेंगे', आखिर में जय हिंद के साथ बांग्ला लिपि में विशेष रूप से लिखा भी - जय बांग्ला!

पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी के बढ़ते दबदबे और दखल से परेशान होकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनसीपी नेता शरद पवार से मदद मांगी थी - और एनसीपी की तरह से ये भी बताया गया कि शरद पवार ने अपनी तरफ से मदद के लिए हामी भी भर दी है. एनसीपी की ओर से तब बताया गया था कि कोलकाता पहुंचने से पहले शरद पवार दिल्ली में विपक्षी दल के नेताओं से भी संपर्क कर सकते हैं.

जिस वक्त ममता बनर्जी ने शरद पवार से बात की थी, उसी दौरान विपक्ष के कई नेताओं से भी केंद्र सरकार के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई में मदद मांगी थी. ममता बनर्जी ने ट्विटर पर विपक्षी नेताओं का धन्यवाद भी किया था. ममता बनर्जी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डीएमके नेता एमके स्टालिन को टैग भी किया था, लेकिन उसमें उद्धव ठाकरे का कहीं नाम नहीं नजर आया. जैसे शरद पवार को लेकर एनसीपी की तरफ से पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की मदद करने को लेकर जानकारी दी गयी, शिवसेना की तरफ से इस बारे में कोई चर्चा भी नहीं सुनने को मिली थी.

ऐसे में क्या वजह हो सकती है कि शरद पवार का कोई कार्यक्रम बनने से पहले ही उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को पश्चिम बंगाल चुनाव में उतारने का फैसला कर लिया?

uddhav thackeray, mamata banerjee, asaduddin owaisiममता बनर्जी के साथ मिल कर बीजेपी से लड़ने उतरे उद्धव ठाकरे, लेकिन पश्चिम बंगाल में मुकाबला तो असदुद्दीन ओवैसी से ही होगा!

पश्चिम बंगाल चुनाव में शिवसेना की अगर थोड़ी बहुत भी भूमिका होती है तो क्या उससे कांग्रेस का हित नहीं टकरायेगा? शिवसेना के लिए अगर ममता बनर्जी और कांग्रेस दोनों की तुलना की जाये तो नजदीकियां तो कांग्रेस से ही हैं क्योंकि महाराषट्र् की गठबंधन सरकार में कांग्रेस भी एक पार्टनर है - और ऐसे में जब भी हितों की बात होगी, शिवसेना को कांग्रेस से टकराव से बचना ही बेहतर होगा.

बंगाल में शिवसेना की संभावित भूमिका

हाल ही में बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने असदुद्दीन ओवैसी को लेकर वो बात स्वीकार की है जो अब तक बीजेपी के राजनीतिक विरोधी दावा करते रहे हैं. साक्षी महाराज का कहना है कि असदुद्दीन ओवैसी पश्चिम बंगाल और उसके बाद उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की वैसे ही मदद करेंगे जैसे बिहार में किया है. बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के पांच विधायक चुनाव जीते हैं.

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का बिहार के सीमांचल के इलाकों में प्रदर्शन अच्छा रहा है और जिन इलाकों से उनके उम्मीदवार बिहार विधानसभा पहुंचे हैं वे पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे हुए भी हैं. बड़ी वजह यही है कि असदुद्दीन ओवैसी की पश्चिम बंगाल चुनाव में हिस्सेदारी की चर्चा भी हो रही है.

असदुद्दीन ओवैसी ने पीरजादा अब्बास ओवैसी के साथ मिल कर चुनाव लड़ने का दावा किया है, लेकिन बाद में ये खबर भी आयी है कि अब्बास सिद्दीकी अपने लिए कांग्रेस और वाम दलों से भी चुनावी गठबंधन के लिए बातचीत कर रहे हैं. सबसे पहले अब्बास सिद्दीकी ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से भी अपने लिए सीटों की मांग की थी जिसे पार्टी ने खारिज कर दिया था.

पश्चिम बंगाल में मुख्य मुकाबला ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच है, हालांकि, कांग्रेस और वाम दल मिल कर भी एक तीसरा पक्ष तैयार किया है, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं लगा है कि वे कोई खास प्रदर्शन दिखा पाएंगे.

रही बात असदुद्दीन ओवैसी की तो जब तक अब्बास सिद्दीकी अपना स्टैंड साफ नहीं करते सही तस्वीर सामने नहीं आएगी. असदुद्दीन ओवैसी के करीब 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना है.

शिवसेना की तरफ से अभी ये नहीं बताया गया है कि वो कितने सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बारे में सोच रही है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 294 सीटों के लिए चुनाव होने हैं.

बीजेपी लंबे अरसे से पश्चिम बंगाल में पांव जमाने की कोशिश कर रही है तब कहीं जाकर 2019 के चुनाव में 18 संसदीय सीटें जीत सकी, मालूम नहीं शिवसेना अचानक से विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर कहां तक उम्मीद कर रही है.

महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के पास बीजेपी की करीब आधी सीटें हैं वो भी चुनावी गठबंधन के साथ मैदान में उतरने के बाद. ऐसे में पश्चिम बंगाल जाकर शिवसेना क्या कुछ कर पाएगी, अभी के हिसाब से समझना कोई मुश्किल तो नहीं लगता.

अभी तो ऐसा ही लगता है जैसे ममता बनर्जी को असदुद्दीन ओवैसी से जितने नुकसान की आशंका हो रही होगी, शिवसेना के जरिये उसे काउंटर करने की कोशिश की हो सकती है - लेकिन क्या पश्चिम बंगाल में शिवसेना, ओवैसी की पार्टी AIMIM का सही ढंग से काउंटर कर पाएगी?

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