विजय माल्या प्रत्यर्पण: कर्ज वसूली से पहले होगा कांग्रेस का हिसाब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल की शुरुआत ब्लैक मनी पर फैसला लेकर की थी. फिर नोटबंदी की. लेकिन विजय माल्या को लाकर वे अपनी बात में ताकत ले आएंगे.
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बैंकों के 9000 करोड़ रुपए लेकर विदेश भागे विजय माल्या पर आखिरकार शिकंजा कस ही गया है. यूके कोर्ट ने माल्या के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है, जो मोदी सरकार के लिए एक बड़ी जीत है. यूं तो अभी माल्या के सामने ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए 14 दिन का मौका है, लेकिन यूके कोर्ट का फैसला भारत के लिए बेहद अहम है. बैंकों के 9000 करोड़ लेकर भागे विजय माल्या पहले तो पैसे लौटाने से ही मुकर रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे मोदी सरकार का शिकंजा कस रहा है, वैसे-वैसे विजय माल्या की हेकड़ी भी निकलती जा रही है. अब बस इंतजार है उस दिन का जब 'किंग ऑफ गुड टाइम्स' कहे जाने वाले विजय माल्या की देश वापसी होगी और मुंबई की आर्थर रोड जेल उनका नया ठिकाना होगा.
जैसे-जैसे मोदी सरकार का शिकंजा कस रहा है, वैसे-वैसे विजय माल्या की हेकड़ी भी निकलती जा रही है.
मोदी सरकार को मिलेगा पूरा क्रेडिट
जब मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई थी, तो उनका मुख्य उद्देश्य था कालेधन को बाहर निकालना. पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी के जरिए कालेधन पर चोट की गई और टैक्स के दायरे को बढ़ाने में मदद मिली. 'अच्छे दिन' के नारे के साथ भाजपा ने सरकार बनाई, लेकिन लोगों को उस 'अच्छे दिन' का अभी भी इंतजार है. तो क्या अब विजय माल्या के प्रत्यर्पण की खबर 'अच्छे दिन' ला सकती है? यकीनन ला सकती है.
विजय माल्या भारत की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा हैं. विजय माल्या के नाम पर कांग्रेस आए दिन भाजपा को घेरती है, लेकिन अगर माल्या को भारत लाने में सफलता मिल जाती है तो इसे भाजपा अपनी एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाने से बिल्कुल नहीं चूकेगी. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का भी मुंह बंद हो जाएगा. भाजपा पर आरोप लगता था कि उन्होंने ही माल्या को भागने में मदद की, ऐसे में माल्या को वापस लाने का पूरा क्रेडिट भी मोदी सरकार को ही मिलेगा. देश से विदेश ले जाया गया पैसा वापस लाने की मोदी सरकार की बात को माल्या के प्रत्यर्पण से काफी वजन मिलेगा.
2019 चुनाव के लिए माल्या से 'वसूली'
कंगाल विजय माल्या 2019 के चुनाव में भाजपा के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो सकते हैं. माल्या ने अपना सारा कर्ज यूपीए सरकार के दौरान लिया. अब जरा सोचिए, जहां आम आदमी को 1 लाख रुपए का कर्ज देने से पहले बैंकों की सख्त पड़ताल से गुजरना पड़ता है, वहां कर्ज चुकाने में नाकाम माल्या के सामने बैंकों ने तिजोरी खाेली हुई थी. आखिर ऐसा किसके इशारे पर? माल्या को 9000 करोड़ रुपए का लोन कैसे मिल गया? माल्या के फरार होने के बाद से विपक्ष जब जब मोदी सरकार पर हमला करता था तो बीजेपी बचाव में यही कहती थी कि उसे कर्ज तो कांग्रेस के दौर में ही दिया गया. अब उसी बीजेपी के पास पूरा मौका है कि वो उन लोगों के नाम माल्या से खुद पूछ ले, जिन्होंने उसको लोन दिलवाने में मदद की. कालेधन के मुद्दे पर यदि 2019 के चुनाव में कांग्रेस बीजेपी से हिसाब मांगती है, तो हो सकता है कि मोदी माल्या को कर्जखोर बनाने में मदद करने वाले उन्हीं के कुछ नेताओं का नाम बोल दें.
माल्या और नेताओं का गठजोड़ इतना तगड़ा था कि वे दो बार (2002 और 2010) में कर्नाटक से राज्यसभा तक पहुंचे. तो सवाल ये भी है कि आखिर वो कौन लोग थे, जो माल्या को सपोर्ट कर रहे थे? और इसके बदले उन्हें क्या मिल रहा था? यहां ये जानना दिलचस्प है कि माल्या की पकड़ कई पार्टियों में थी. 2002 में वह कांग्रेस और जेडीएस के समर्थन से राज्यसभा पहुंचे और 2010 में भाजपा और जेडीएस ने राज्यसभा पहुंचाने में उनकी मदद की. आखिर ये मदद दोस्ती-यारी में की गई या फिर पैसों का लेन-देन यहां भी हुआ. खैर, भाजपा ने भी माल्या की मदद की थी तो मोदी सरकार इस बारे में तो माल्या से मिली जानकारी जनता के सामने नहीं रखेगी. हां, कर्ज यूपीए के वक्त का है, तो अगर माल्या को कर्ज दिलाने में सरकारी महकमे के लोग भी शामिल थे, तो उंगली सीधे कांग्रेस पर उठेगी, जिसका पूरा फायदा भाजपा को होगा.
कोशिश रंग लाई
अगस्त 2016 में एसबीआई ने विजय माल्या के खिलाफ सीबीआई में शिकायत दर्ज की थी. बिजनेस टाईकून विजय माल्या 17 बैंकों के करीब 9000 करोड़ रुपए गटक कर विदेश भाग गया था. विजय माल्या पर ट्रायल 4 दिसंबर 2017 को शुरू हुआ था. एक ओर देश में माल्या की संपत्तियां जब्त करनी शुरू की गईं, वहीं दूसरी ओर विदेश में आजाद घूम रहे माल्या पर शिकंजा कसना भी शुरू हो गया. अभी तक माल्या को यूके में दो बार गिरफ्तार किया जा चुका है. हालांकि, उसके बाद जमानत पर रिहा भी कर दिया गया है. अब ये तो साफ है कि माल्या आज नहीं तो कल सीबीआई की गिरफ्त में होंगे.
इतना सब होने के बावजूद विजय माल्या इस बात पर अड़े हुए हैं कि वह बेकसूर हैं. उनका कहना है कि उन्होंने बैंकों का पैसा नहीं चुराया. बैंकों का नुकसान किंगफिशर एयरलाइंस की वजह से हुआ है. अब जरा सोचिए, कंपनी माल्या की, तो कंपनी की वजह से हुए नुकसान की भरपाई भी तो वही करेंगे. और अगर वाकई माल्या बेकसूर हैं तो विदेश क्यों भागे? माल्या ने कई बार सेटलमेंट भी करने की कोशिश की, लेकिन अब मामला सिर्फ सेटलमेंट तक सीमित नहीं है. अब विजय माल्या का प्रत्यर्पण मोदी सरकार की नाक का सवाल हो गया. कांग्रेस आए दिन मोदी सरकार पर आरोप लगा रही है कि मोदी सरकार ने ही माल्या को विदेश भागने दिया. देखा जाए तो माल्या अब एक राजनीतिक मुद्दा बन चुके हैं. इस समय वह पूरे देश की नजर में कसूरवार भी हैं और सजा के हकदार भी.
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