...यह तीसरे विश्व युद्ध की आहट है !
वैश्विक वातावरण तो पहले से बना हुआ था, मगर इनकी शुरुआत किसी एक छोटे-से तात्कालिक कारण से हुई. फिर चाहें वो प्रथम विश्व युद्ध के समय आस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या हो या द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण करना हो.
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आतंकवाद के उन्मूलन के लिए संयुक्त प्रयास पर सहमति बना रहे विश्व के समक्ष इस समय उत्तर कोरिया एक महासंकट के रूप में उपस्थित है. संयुक्त राष्ट्र संघ समेत विश्व के लगभग सभी महाशक्ति देशों के प्रतिबंधों और चेतावनियों को अनदेखा करते हुए तानाशाह किम जोंग के नेतृत्व में यह पिद्दी-सा देश विश्व के लिए भारी सिर दर्द बनता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को धता बताते हुए एक के बाद एक घातक प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण करने से लेकर अमेरिका जैसे देश को खुलेआम चुनौती देने तक उत्तर कोरिया का रवैया पूरी तरह से उकसावे वाला रहा है. अभी हाल ही में उसने जापान के होकैडो शहर के ऊपर से मिसाइल ही दाग दी थी. जिसके बाद जापान ने अपने इस शहर समेत अपनी राजधानी क्षेत्र में मिसाइल रक्षा प्रणाली की तैनाती कर ली. उत्तर कोरिया का क्या करना है, इसका कोई ठोस उत्तर फिलहाल विश्व के किसी भी महाशक्ति देश के पास नहीं है. अब तक उत्तर कोरिया की इन अराजक गतिविधियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और विश्व के महाशक्ति देशों की तरफ से, सिवाय जुबानी जमाखर्च के धरातल पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी है.
किम जोंग उनअमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह तो बहुत कुछ रहे हैं, मगर मालूम उन्हें भी होगा कि किम जोंग का खात्मा इतना आसान नहीं है. कहा तो यह भी जा रहा कि अमेरिका ने लादेन को जैसे पाकिस्तान में घुस कर मार गिराया था. ठीक वैसे ही किम को भी मार सकता है. लेकिन, हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन दोनों ही मामलों में भारी अंतर है. लादेन एक आतंकी था, जिसके पास सिवाय कुछ लड़ाकों और पाकिस्तानी हुकूमत के अप्रत्यक्ष सहयोग के अलावा कुछ नहीं था. जबकि किम जोंग एक देश का सनकी राष्ट्राध्यक्ष है. जिसके साथ न केवल लादेन से कहीं अधिक सुरक्षा तंत्र है, बल्कि उसके नियंत्रण में परमाणु हथियारों का जखीरा भी है. ऐसे में, क्या उसे भी लादेन की तरह मार गिराने की कल्पना की जा सकती है? यकीनन नहीं! यह बात अमेरिका भी बखूबी समझता है, तभी तो अब तक उसने भी किसी प्रकार की कार्यवाही करने से परहेज किया है. स्पष्ट है कि किम जोंग के तानाशाही नेतृत्व में उत्तर कोरिया विश्व के लिए एक घातक यक्ष-प्रश्न बन गया है. घातक यक्ष-प्रश्न इसलिए क्योंकि अगर जल्द से जल्द इसका उचित उत्तर नहीं खोजा गया तो पूरी संभावना है कि ये दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ ले जाएगा.
तीसरे विश्व युद्ध की संभावना क्यों ?
तीसरे विश्व युद्ध की बात करने के पीछे ठोस कारण हैं, जिन्हें समझने के लिए आवश्यक होगा कि हम पिछले दोनों विश्व युद्धों के इतिहास और उनकी पृष्ठभूमि का एक संक्षिप्त अवलोकन करें. विश्व युद्धों के इतिहास पर दृष्टि डालें तो दोनों ही विश्व युद्धों की परिस्थितियां तो पहले से ही ज्वालामुखी की तरह निर्मित हो रही थीं. बाद में एक छोटी सी तत्कालीन घटना को कारण बनाकर दोनों विश्व युद्ध के रूप में महाविस्फोट हुआ. आस्ट्रिया के राजकुमार और उनकी पत्नी की सेराजोवा में हुई हत्या प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण बनी. इस विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि के अध्ययन पर स्पष्ट होता है कि तत्कालीन दौर में यूरोपीय देशों के बीच उपनिवेशों की स्थापना की होड़ के कारण परस्पर ईर्ष्या और द्वेष का भाव बुरी तरह से भर चुका था. हितों के टकराव जैसी स्थिति जन्म ले चुकी थी. गुप्त संधियां आकार लेने लगी थीं. परिणाम विश्व युद्ध के रूप में सामने आया.
1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व बिरादरी ने एक तरफ जहां आगे से विश्व युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने के लिए राष्ट्र संघ (लीग ऑफ़ नेशंस) की स्थापना की. वहीं दूसरी तरफ ‘वर्साय की संधि’ के तहत जर्मनी पर लगाए गए अनुचित और अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों के माध्यम से अनजाने में ही द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका का निर्माण भी कर दिया. फलस्वरूप 1935 में जर्मनी जब हिटलर के नेतृत्व में ताकतवर होकर उभरा, तो उसने वर्साय की संधि और प्रतिबंधों का उल्लंघन आरम्भ कर दिया. 1939 में जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया और बस यहीं से द्वितीय विश्व युद्ध का आरम्भ हो गया. ये विश्व युद्ध भयानक रूप से संहारक रहा. इसका अंत होते-होते अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमले तक कर दिए. राष्ट्र संघ जिसकी स्थापना विश्व युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने के लिए की गयी थी, अप्रासंगिक होकर रहा गया.
इन दोनों विश्व युद्धों में जो एक बात समान है, वो ये कि इनके लिए वैश्विक वातावरण तो पहले से बना हुआ था, मगर इनकी शुरुआत किसी एक छोटे-से तात्कालिक कारण से हुई. फिर चाहें वो प्रथम विश्व युद्ध के समय आस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या हो या द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण करना हो.
आज भी वैश्विक वातावरण में तनाव साफ़ है, ऐसे में उत्तर कोरिया का रवैया इस नाते डराता है कि उसकी या उसके साथ की गयी किसी अन्य की कोई सी भी हरकत तीसरे विश्व युद्ध का कारण बन सकती है. यह बात सर्वस्वीकृत है कि उत्तर कोरिया को चीन का अंदरूनी समर्थन और सहयोग है. जिसके दम पर वो हथियारों आदि के मामले में बेहद सशक्त हो चुका है. साथ ही, चीन का जापान और अमेरिका से मुखर विरोध है. ऐसे में, उत्तर कोरिया पर हाथ डालने की स्थिति में उसके साथ-साथ चीन भी दिक्कतें खड़ी कर सकता है. पाकिस्तान का समर्थन भी चीन के ही साथ होगा. अमेरिका और यूरोपीय देश एक साथ आ सकते हैं. इसके बाद तीसरे विश्व युद्ध के लिए और आवश्यकता ही किस चीज की रह जाएगी? संयुक्त राष्ट्र संघ आज उत्तर कोरिया के संदर्भ में निष्प्रभावी ही सिद्ध हो रहा है.
इन संभावित परिस्थितियों को देखते हुए तीसरे विश्व युद्ध की आहट महसूस न करने का कोई कारण नहीं दिखता. एक मार्ग यह है कि उत्तर कोरिया पर हाथ न डाला जाए. लेकिन किम जोंग का सनकीपना और आक्रामकता देखते हुए ऐसा करने का भी कोई लाभ नहीं है. क्योंकि, उत्तर कोरिया खुद ही किसी न किसी से उलझकर विश्व युद्ध की परिस्थितियों को आमंत्रित कर देगा. ये विश्व युद्ध हुआ तो पिछले दोनों विश्व युद्धों से कहीं अधिक विनाशकारी और भयावह होगा. द्वितीय विश्व युद्ध में दो परमाणु बम गिरे थे, जिनके चिन्ह जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी में अब तक मौजूद हैं. अब तो हर छोटे-बड़े देश के पास परमाणु क्षमता है, सो विश्व युद्ध में क्या विभीषिका मच सकती है, इसकी कल्पना ही डराने वाली है. अगर तीसरे विश्व युद्ध की इस आशंका पर विराम लगाना है तो उत्तर कोरिया का समाधान शीघ्रातिशीघ्र विश्व के महाशक्ति राष्ट्रों को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर खोजना पड़ेगा.
अपडेट : बीती रात जब हम सो रहे थे तो दुनिया में दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री ने दुनिया को हिला देने वाला भाषण दे डाला. ट्रम्प को खूब-खोटी सुनाई. फिर आखिर में कह दिया कि 'उनके देश पर लगे प्रतिबंधों से हो रहे नुकसान का आंकलन किया जा रहा है. जब पानी सिर से ऊपर होगा तो हम परमाणु हमले से नहीं हिचकेंगे. हाइड्रोजन बम से लैस हमारी इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें पूरे अमेरिका में कहीं भी मार कर सकती हैं.' अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ इस भाषण को निर्णायक मान रहे हैं, जो आने वाले दिनों की दिशा तय करेगा.
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