भाजपा के दो मंत्रियों के बयान बचकाने ही नहीं संविधान की मंशा के विरुद्ध हैं
भारत के संविधान में कहा गया है कि हर नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे. परन्तु हमारे दो मंत्रियों के ताजा बयान इस भावना के विपरीत हैं.
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शिक्षा से ही देश के भविष्य का निर्धारण होता है. अगर उचित, व्यावहारिक एवं वैज्ञानिक सोच वाली शिक्षा देकर वर्तमान को संभाल लिया जाए तो भविष्य को स्वर्णिम बनाया जा सकता है. इसलिए वर्तमान समय में राष्ट्र के भविष्य निर्माण करने में देश एवं राज्यों के शिक्षा मंत्री का रोल बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि शिक्षा नीति के निर्धारण में उनका बहुत ही महत्वपूर्ण रोल होता है.
दस दिनों के अंदर ही एक केंद्रीय मंत्री और एक राज्य के शिक्षा मंत्री के बयानों ने एक प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या हम वैज्ञानिक सोच वाली शिक्षा दे भी पाएंगे?मोदी कैबिनेट में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह की मानें तो मानव के क्रमिक विकास का चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत 'वैज्ञानिक रूप से ग़लत है'. उन्होंने कहा, ''मनुष्यों के क्रमिक विकास का चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से गलत है. स्कूलों और कॉलेजों के सिलेबस में इसे बदलने की ज़रूरत है. इंसान जब से पृथ्वी पर देखा गया है, हमेशा इंसान ही रहा है.'' वो इतने पर ही नहीं रुके, बल्कि यह भी कहा कि- ''हमारे किसी भी पूर्वज ने लिखित या मौखिक रूप में बंदर को इंसान में बदलने का ज़िक्र नहीं किया था.''
कोई सबूत है क्या?
वरिष्ठ वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों ने मंत्री के बयान की आलोचना की. लेकिन मंत्री जी टस से मस नहीं हुए. उन्होंने दावा किया कि विज्ञान उन्होंने भी पढ़ा है. उन्होंने कहा- ''मानव के क्रमिक विकास के डार्विन सिद्धांत को दुनिया भर में चुनौती मिल रही है. डार्विन सिद्धांत एक मिथ्या है. अगर मैं ऐसा कह रहा हूं तो इसके पीछे कोई आधार होगा. मैं भी विज्ञान का आदमी हूं, कला के बैकग्राउंड से नहीं आया हूं. मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में पीएचडी की है.''
डार्विन के विकासवादी सिद्धांत को मानव जीवन के क्रमिक विकास में न केवल काफी अहम माना जाता है, परन्तु इस सिद्धांत की स्वीकार्यता दुनिया भर में है. सत्यपाल सिंह ने डार्विन के इस सिद्धांत को सिरे से ख़ारिज कर दिया है, पर इसका कोई स्वीकार्य तर्क नहीं दे पाए. इस कारण लोगों ने सोशल मीडिया पर मंत्री जी का खूब माखौल भी उड़ाया.
इसके पहले राजस्थान के शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा था कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन से पहले ब्रह्मगुप्त द्वितीय ने दिया था. मंत्री महोदय ने कहा कि ''हम सब ने पढ़ा है कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन ने दिया था. लेकिन गहराई में जाने पर पता चलेगा कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन से एक हज़ार वर्ष पूर्व ब्रह्मगुप्त द्वितीय ने दिया था.'' और तो और उन्होंने यह भी कहा कि- ''हमें अपने स्कूली पाठ्यक्रम में इस तथ्य को क्यों नहीं शामिल करना चाहिए?'' यानी की जो मंत्री जी बोल रहे हैं वो भी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए.
ग्रैविटी का नियम न्यटन ने नहीं ब्रह्मगुप्त ने खोजा था
दोनों के दोनों ही मंत्री बच्चों को वो पढ़ाना एवं बताना चाहते हैं जिसकी पुष्टि शैक्षिक एवं वैज्ञानिक जगत नहीं करता है. वो जो कह रहे हैं वह लोक मान्यता तो हो सकती है पर सार्वभौम तथ्य नहीं. अगर हम लोक मान्यताओं को अपने अगले पीढ़ी को तथ्य के रूप में पढ़ाएंगे या बताएंगे तो यह देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा.
ऐसा नहीं है की ये मंत्री पढ़े लिखे नहीं हैं. सत्यपाल सिंह, देश की सबसे कठिन माने जाने वाली यूपीएससी की परीक्षा पास करके 1980 में आईपीएस अफसर बने थे. 34 साल की सेवा के बाद वो 2014 में राजनीति में आए एवं लोक सभा का चुनाव जीत कर केंद्र में मंत्री बने. राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर शिक्षा जगत में आये. राजनीति में आने से पहले वो एक कॉलेज के डीन भी रह चुके हैं.
अगर कोई अशिक्षित या अर्ध शिक्षित शिक्षा मंत्री इस तरह की बात करे तो समझ आता है. लेकिन ऐसे पढ़े लिखे लोग इस तरह के बिना सिर पैर की बात क्यों कर रहे हैं यह समझ से परे है. दोनों ने ही मंत्री पद की शपथ ली है और प्रतिज्ञा किया है की विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा.
भारत के संविधान की धारा 51-ए में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे. परन्तु इन दोनों मंत्रियों का वक्तव्य संविधान की इस भावना के विपरीत है.
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