खुश तो बहुत होंगे गुजरात के गधे आज !
गुजरात के गधों के लिए आज का दिन बहुत खास होगा. अखिलेश यादव ने उनके बारे में जिक्र क्या किया कि चारो तरफ से गधे प्रेमियों की बाढ़ सी लग गई.
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गुजरात के गधों के लिए आज का दिन बहुत खास होगा. अखिलेश यादव ने उनके बारे में जिक्र क्या किया कि चारो तरफ से गधे प्रेमियों की बाढ़ सी लग गई. कोई गधे की खासियत बताने में लगा था तो कोई गधे की बेइज्जती के बारे में. मोदी ने तो गधों को सच्चा और वफादार बता दिया और अपने आप से जोड़ दिया. वैसे मोदी की गधों की तरह काम करने की आदत से हर कोई वाकिफ है.
मोदी एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अभी तक कोई छुट्टी नहीं ली. यहां तक की उत्तर-प्रदेश का चुनाव-प्रचार खत्म होने के बाद वो सीधे गुजरात की तरफ चल निकले. गुजरात में इस साल के आखिर में यानि दिसंबर में चुनाव होने हैं. अगर बीजेपी अपनी विजय गाथा इसी तरह गाती रही तो गुजरात की कहानी में ज्यादा झोल होने की उम्मीद नहीं है. तो मोदी ने गधों की तरह काम किया. चाहे वो प्रचार में हो या फिर काम के लिए. अखिलेश को ये चुनावी जुमला आज भारी पड़ रहा है.
गधों ने लगा दी लताड़साल 2014 में ये काम मणिशंकर अय्यर ने कर दिखाया था. जब उपहास करने के लिए उन्होंने कहा कि- 'एक चायवाले का बेटा कभी पीएम नहीं बन सकता'. उस दिन के बाद कांग्रेस को ये एहसास हो गया था कि ये भारी गलती कर बैठे हैं. मोदी ने उसी 'चाय पर चर्चा' का पूरा इस्तेमाल अपने प्रचार में किया. बाकी इतिहास गवाह है. कांग्रेस की नाक सिर्फ पंजाब में बच पाई वो भी भारी मतों से. कैप्टन अमरिन्दर ने छवि इन्ही प्रचारों से बदली. अखिलेश का अमिताभ बच्चन को गधे का विज्ञापन ना करने की नसीहत देना असल में औंधे मुंह आकर पड़ा.
हालत ये है कि अखिलेश यादव की साइकिल 50 सीटों को पार करने के लिए ही रेस लगा रही है. पिछली बार की साइकिल ने 224 सीट कवर की थी. इस बार साइकिल की जगह हैलिकॉप्टर उड़े और हवा में तीर भी चले. अखिलेश की सबसे बड़ी गलती अपने प्रचार के बजाए मोदी और अमित शाह द्वारा चलाए जा रहे चुनावी तीरों के जवाब देने और परिवारवाद की सफाई देने में ही लग गया. फिर वो चाहे नोटबंदी, कत्लखाने, कब्रिस्तान और बिजली को लेकर मुद्दे ही क्यों ना हों. जिन बिजली के तारों को छूने की चुनौति अखिलेश ने मोदी को दी, असल में उसको उन्होंने खुद ही छू लिया और 440 वोल्ट का झटका खा बैठे. परिवार में क्या स्थिति अखिलेश की बनी हुई है, ये किसी से छिपा नहीं है. घर के भेदी ने लंका ढा ही दी है. अगर इस कहावत को थोड़ा बदल दें तो अखिलेश जी का हाल कुछ इस तरह है- 'धोबी का गधा, ना घर का ना घाट का'.
चलिए गधों ने इसी के साथ अपना नाम इतिहास के पन्नों में लिखवा लिया है. जब-जब मोदी कि इस ऐतिहासिक जीत की बात होगी, गुजरात के गधों को जरुर याद किया जाएगा. तो खुल के कहा, हम गधे हैं. हमें तुम पर नाज है गुजरात के गधों.
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