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Updated: 03 मार्च, 2022 10:39 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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रूस-यूक्रेन युद्ध आठवें दिन भी जारी है. हर बदलते दिन के साथ यूक्रेन के अलग-अलग शहरों पर आर्टिलरी और मिसाइलों का हमला बढ़ता जा रहा है. अमेरिका. ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों समेत कई देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध थोप दिए हैं. अलग-अलग तरह के प्रतिबंधों के जरिये रूस को अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही है. ब्रिटेन का कहना है कि रूस से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता छीन ली जाए. ताकि, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल न कर सकें. इन सबके बीच यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध को रोकने के लिए बातचीत भी की जा रही है. हालांकि, इससे समस्या का समाधान निकलने की उम्मीद बहुत कम ही है. क्योंकि, रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध भड़काने में कहीं न कहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की की जिद ने ही अहम भूमिका निभाई है. और, अब लगातार हमलों से जूझ रहा यूक्रेन बातचीत की टेबल पर भी रूस के सामने अपने तेवर कम करने को राजी नही है. अब तक के हालातों को आसान शब्दों में कहा जाए, तो रूस-यूक्रेन युद्ध से फायदा व्लादिमीर पुतिन को नहीं अमेरिका को मिल रहा है.

USA Russia Ukraine Warरूस-यूक्रेन युद्ध ने पश्चिमी देशों को रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने के लिए बाध्य कर दिया है.

मालामाल होंगी हथियार बनाने वाली अमेरिकी कंपनियों की लॉबी

किसी भी युद्ध को लड़ने के लिए भी हथियारों की जरूरत होती है. और, किसी भी युद्ध से बचने के लिए भी हथियारों की ही जरूरत पड़ती है. युद्धग्रस्त यूक्रेन को पश्चिमी देशों की ओर से भरपूर सैन्य सामग्री और हथियार मुहैया कराए जा रहे हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की ने देश के नागरिकों से भी हथियार उठाने की अपील की है. दावा किया जा रहा है कि यूक्रेन के सेलेब्रिटी से लेकर खिलाड़ी भी अब युद्ध के मैदान में उतर चुके हैं. यूक्रेन के नागरिकों को सरकार की ओर से हथियार दिए जा रहे हैं. लोग बंदूकों के जरिये अपने घरों से रूसी सैनिकों को निशाना बना रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो विदेशी मीडिया (जिनमें से अधिकतर पर अमेरिका जैसे पश्चिमी देश का कब्जा है) यूक्रेन को लेकर नपी-तुली खबरें ही दे रहा है. जिससे ऐसा लग रहा है कि यूक्रेन पश्चिमी देशों से मिल रहे हथियारों के दम पर रूस को जंग में कड़ी टक्कर दे रहा है. इसका सीधा फायदा अमेरिका, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों को मिल रहा है.

दरअसल, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की हथियार कंपनियों की लॉबी को रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोपीय देशों से अरबों डॉलर के हथियारों की सप्लाई का ऑर्डर मिलना तय है. क्योंकि, हो सकता है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी ये जंग आने वाले कुछ दिनों में खत्म हो जाए. लेकिन, इस युद्ध से आने वाले कई दशकों तक यूरोपीय देशों में रूस को लेकर एक भय हमेशा बना रहेगा कि भविष्य में वे भी निशाना बनाए जा सकते हैं. और. इससे बचने के लिए यूरोपीय देशों के पास हथियारों की खरीद के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा. और, इसकी आपूर्ति ज्यादातर अमेरिका जैसा देश ही करेगा. क्योंकि, SIPRI रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक शोध के अनुसार, दुनिया के हथियार बाजार में टॉप 10 हथियार निर्माता कंपनियों में 6 अमेरिका की हैं. इस लिस्ट में ब्रिटेन भी सातवें स्थान पर है. इस युद्ध से पहले विश्व हथियार बाजार जो करीब 350 अरब डॉलर था, वो अब कितने अरब डॉलर का हो जाएगा, इसका केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस युद्ध की समाप्ति के बाद हथियारों से होने वाली कमाई के जरिये अमेरिका को फायदा होना तय है.

रूस बनेगा आने वाले कई दशकों के लिए 'विलेन'

यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की ने बीते कुछ समय से पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को एक नए स्तर पर पहुंचाया था. इतना ही नहीं, जेलेंस्की पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो में भी शामिल होना चाहते थे, जिसे सोवियत संघ को तोड़ने के लिए बनाया गया था. नाटो में शामिल होने के लिए वलाडिमीर जेलेंस्की के इस उत्साह को देखते हुए रूस ने यूक्रेन को चेताया भी था. लेकिन, जेलेंस्की के समर्थन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से लेकर नाटो सैन्य संगठन के अन्य देशों की ओर से रूस को दी जा रही धमकियों ने यूक्रेन में अति आत्मविश्वास भर दिया. दरअसल, रूस किसी भी हाल में यूक्रेन के नाटो सदस्य बनने पर राजी नहीं हो सकता था. क्योंकि, रूस पर नकेल कसने के लिए पोलैंड, हंगरी, रोमानिया, चेक रिपब्लिक, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया जैसे यूरोपीय देशों को नाटो सैन्य संगठन में पहले से ही जगह दी जा चुकी है. अगर यूक्रेन भी नाटो में शामिल हो जाता, तो रूस की सीमाओं पर पश्चिमी देशों की सेनाओं की पहुंच बहुत ज्यादा बढ़ जाती.

कायदे से देखा जाए, तो पश्चिमी देशों ने सोवियत संघ को कमजोर करने के नाटो की स्थापना की थी. और, 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी नाटो को खत्म नहीं किया गया. बल्कि, यूरोपीय देशों में रूस पर दबाव बनाए रखने के लिए पश्चिमी देशों ने इसका विस्तार किया. रूस ने लंबे समय तक यूक्रेन को समझाने का प्रयास किया. लेकिन, वलाडिमीर की जिद को देखते हुए आखिरकार रूस को युद्ध छेड़ने का फैसला करना पड़ा. हालांकि, यहां चौंकाने वाली बात ये है कि युद्ध छिड़ने से पहले यूक्रेन को खुलकर समर्थन देने की बात कहने वाले अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों समेत नाटो सैन्य संगठन अब रूस पर केवल कड़े प्रतिबंध लगाकर ही अपने दायित्वों की इतिश्री कर ले रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो युद्ध छिड़ने के बाद पश्चिमी देशों और सैन्य संगठन नाटो ने सीधे तौर पर युद्ध में शामिल होने से किनारा कर लिया है. क्योंकि, ऐसा करने से इन देशों में भी राजनीतिक स्थिति बिगड़ने का खतरा है.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक बयान सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. जिसमें डोनाल्ड ट्रंप कहते नजर आ रहे हैं कि 'बुश के कार्यकाल में रूस ने जॉर्जिया पर हमला किया, ओबामा के कार्यकाल में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया, बाइडेन के कार्यकाल में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया. लेकिन, मेरे कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ.' कहने को तो डोनाल्ड ट्रंप का ये बयान राजनीतिक रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से खुद को बेहतर और मजबूत बताने के लिया दिया गया होगा. लेकिन, इस बयान से ये भी साफ होता है कि रूस भविष्य में क्या कुछ कर सकता है? आसान शब्दों में कहा जाए, तो यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने से रूस विलेन बना है. लेकिन, पश्चिमी देश उसे विलेन के तौर पर कई दशकों के लिए स्थापित करने में सफल हो जाएंगे. 

गैस-तेल आपूर्ति के जरिये बढ़ेगा अमेरिकी प्रभाव

रूस-यूक्रेन युद्ध के खत्म होने के बाद व्लादिमीर पुतिन के कुछ सहयोगी देशों को छोड़ दिया जाए, तो शायद ही कोई यूरोपीय देश रूस के साथ व्यापारिक और आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाएगा. तमाम तरह के प्रतिबंधों को देखते हुए इस बात की संभावना और प्रबल हो जाती है. वैसे, यहां एक बात ये भी है कि जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों को रूस गैस-तेल की आपूर्ति करता था. लेकिन, यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के बाद अब इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया है. रूस पर प्रतिबंधों के चलते खाली हुई जगह को अमेरिका ही भरेगा. वहीं, रूस पर प्रतिबंध के बाद अन्य छोटी-बड़ी कई चीजों के लिए यूरोपीय देशों को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों पर ही निर्भर रहना होगा. गैस-तेल आपूर्ति से लेकर अन्य चीजों के जरिये अमेरिका यूरोपीय देशों में अपना प्रभाव बढ़ाता जाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो रूस-यूक्रेन युद्ध से फायदा व्लादिमीर पुतिन को नहीं अमेरिका को मिल रहा है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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