कोरोना काल में यूपी की सियासत में 'शर्मा जी' की चर्चा की तीसरी लहर...
यूपी में कोरोना की रोकथाम की कोशिशों के बीच एकाएकी फिर से अपुष्ट ख़बरें चलने लगीं कि योगी सरकार मंत्रीमंडल विस्तार कर सकती है जिसमें एके शर्मा प्रधानमंत्री के नुमाइंदे के तौर पर एक बड़ी ताकत, ओहदे और जिम्मेदारी के साथ उभरेंगे. यदि ऐसा हुआ तो ये आगामी यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का एक बड़ा दांव कहलाएगा.
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गुजरात मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर पीएओ तक के सफर में नरेन्द्र मोदी के करीबी अफसर रहे एके शर्मा का नाम यूपी के सियासी गलियारों में एक पहेली बन गया है. उत्तर प्रदेश में कोरोना की रोकथाम की कोशिशों के बीच एकाएकी फिर से अपुष्ट ख़बरें चलने लगीं कि योगी सरकार मंत्रीमंडल विस्तार कर सकती है जिसमें एके शर्मा प्रधानमंत्री के नुमाइंदे के तौर पर एक बड़ी ताकत, ओहदे और जिम्मेदारी के साथ उभरेंगे. क़रीब डेढ़ दशक तक नरेंद्र मोदी के विश्वसनीय आलाधिकारी रहे एके शर्मा को यूपी में एमएलसी बनाए जाने से भी पहले से ही ऐसी खबरों आती रहीं थी. जनवरी में उन्होंने भाजपा ज्वाइन की और फरवरी में वो एमएलसी बने. जिसके बाद से ही उन्हें डिप्टी सीएम से लेकर कैबिनेट मंत्री बनाए जाने की कयासबाजी खूब चली.
इस दौरान यूपी में कोरोना की दूसरी लहर ने क़हर बरसा दिया और फिर ऐसी खबरें गुम हो गईं. इसी दौरान प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में कोरोना पर काबू के प्रयासों में वो वहां के प्रशासन के साथ जमीनी संघर्ष कर रहे थे. प्रधानमंत्री ने वाराणसी के प्रशासन से कोरोना पर वर्चुअल मीटिंग में एके शर्मा के प्रयासों की सराहना भी की थी. इसके बाद श्री शर्मा ने शनिवार लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात की.
पीएम मोदी के करीबी एके शर्मा यूपी की राजनीति में बड़ा फेरबदल करने के लिए तैयार हैं
इस मीटिंग के बाद यूपी में मंत्रीमंडल विस्तार की चर्चाओं के साथ ये कहा जाने लगा कि उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. हांलाकि ये खबरे इस वर्ष के जनवरी से तब से चल रही हैं जब ए के शर्मा पीएमो से वीआरएस लेने के बाद भाजपा ज्वाइन करने लखनऊ आए थे. फिर वो एम एल सी बने तो मार्च में इन खबरों को फिर बल मिला.
इसी दौरान कोरोना का कहर बरपा हुआ और संभावित मंत्रिमंडल विस्तार टल गया. इन बातों से अलग एक सच्चाई ये भी है कि जिन बातों की चर्चाएं ज्यादा हो जाती हैं भाजपा के फैसले उसे गलत साबित कर देते हैं. खाटी भाजपाई जानते हैं कि मीडिया में जिसका नाम चल गया वो मंत्री बनने भी जा रहा हो तो उसका नाम कट जाएगा. इसलिए पार्टी के अंदर के ही विरोधी जिसका नाम कटवाना चाहते है उसका मीडिया में नाम चलवा देते है.
भाजपा की संस्कृति में अनुशासनहीनता और मीडिया मे खबर लीक करने को बहुत नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है. इसलिए कई बार ऐसी स्थितियां दिखाई दी हैं कि सबकुछ तय होने के बाद भी वो शख्स मंत्री या किसी दूसरे ओहदे की कुर्सी तक पंहुचते-पंहुचते रह गए. बताया जाता है कि जो परिपक्व नेता मंत्री बनने की आस मे होते हैं वो ख़ुद का नहीं बल्कि अपने प्रतिद्वंद्वी का नाम मीडिया में चलवा देते हैं.
सूत्र के तौर पर पत्रकारों को बताते हैं या सोशल मीडिया पर ये ट्रेंड चलवाते हैं कि फलां विधायक/एमएलसी को मंत्री बनाए जाने की तैयारी है. कयासों, मीटिंगों या सूत्रों पर आधारित जिसके नाम की भी खबरें चलने लगती हैं पार्टी उसे मंत्रीमंडल में शामिल करने का इरादा कर भी रही होती है तो उसका नाम इस अवसर से कट जाता है.
हालांकि ऐसे दांव-पेंच में एके शर्मा जैसी शख्सियत की संभावित जिम्मेदारियों का रास्ता रोकने का कोई साहस नहीं कर सकता. क्योंकि ये बात तो सोलह आने सही है कि वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी, पसंदीदा और विश्वसनीय हैं.
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