उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में बीजेपी और विपक्ष की चिंताएं क्या हैं?
कुछ समय में उत्तर प्रदेश में निकाय चुनावों का बिगुल बजने वाला है. इसी के चलते सभी राजनीतिक पार्टियां कमर कसती नजर आ रही हैं. यह देखना दिलचस्प होगा की क्या बीजेपी 2017 का प्रदर्शन दोबारा दोहरा पाएगी या नहीं और विपक्षी पार्टियां पहले के मुकाबले इस बार कैसा प्रदर्शन करती हैं.
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पंचायती राज को संवैधानिक रूप 1992 में मिला. इसका श्रेय नागरिक समाज संगठनों, बुद्धिजीवियों, और प्रगतिशील राजनीतिक नेताओं के निरंतर प्रयासों को जाता है. इन्हीं के कारण संसद ने संविधान में दो संशोधन पारित किए- ग्रामीण स्थानीय निकायों (पंचायतों) के लिए 73वां संविधान संशोधन और शहरी स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं) के लिए 74वां संविधान संशोधन. पंचायती राज का उद्देश्य देश के आखिरी व्यक्ति तक विकास कार्यों को पहुंचाना,. देश के एक-एक गांव को इतना सक्षम बनाना है कि वो अपने विकास कार्यों का स्वयं फैसला लेकर अपने आपको आत्मनिर्भर बना सकें.
पिछले नगर निगम चुनाव में बीजेपी 16 सीटों में से 14 पर कमल खिला अपने मेयर बना पाई थी, तो वही केवल 2 सीटों पर ही हाथी गरज पाया था. नगर पालिका में 198 शहरों में से कमल 67, साइकिल 45, और हाथी 28 शहर ही जीत पाए तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों ने 58 शहरों की नगर निगम पर अपना परचम लहराया. नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव परिणामों में 538 कस्बों में से भगवा पार्टी ने 100, समाजवादी पार्टी ने 83, बहुजन समाज पार्टी ने 74 कस्बों पर विजय का परचम लहराया तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों ने 181 कस्बों में जीत हासिल की थी.
नगर निगम चुनाव में बीजेपी और विपक्ष की चिंताएं...
1. आगामी लोकसभा चुनाव
साल 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. प्रदेश में नगर निगम चुनाव को लोकसभा के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा सकता है. इसमें विपक्ष के पास एक अच्छा मौका होता है, की वह जनता के बीच जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराए और जनता का विश्वास मत जीते. यदि विपक्ष का प्रदर्शन नगर निगम चुनाव में निराशाजनक रहा, तो कार्यकर्ताओं के मनोबल में कमी आने के साथ-साथ जनता में भी आगामी लोकसभा के लिए विपक्ष को लेकर एक निगेटीव मैसेज जाएगा.
2. सरकार की विफलताओं से नए मुद्दों को जन्म न दे पाना
जब से भारतीय जनता पार्टी ने देश में मोदी मैजिक के सहारे केंद्र के साथ-साथ राज्यों में अपनी धाक जमाई है, तबसे जनता के बीच विपक्ष को लेकर एक कमजोर विपक्ष की धारणा जरूर बनी है. इसका सबसे बड़ा कारण है विपक्ष का गैर ज़िम्मेदाराना रवैया को अपनाना, सरकार की विफलताओं से नए मुद्दों को जन्म न दे पाना और मुद्दों को जनता के बीच चर्चा का विषय न बना पाना. विपक्ष समय-समय पर नोटबंदी से कोरोना में कू प्रबंधन तक इतने बड़े-बड़े मुद्दों को जनता के बीच भुनाने में असफल साबित नजर आई.
3. जोशीले कार्यकर्ता
विपक्ष लगातार चुनाव दर चुनाव, अपने आप को परिणामों में मजबूत साबित करने में विफल नजर आने के साथ-साथ कमजोर विपक्ष के तौर पर एक इमेज बनने और पार्टी के बड़े नेताओं के सुस्त रहने की वजह से अपने कार्यकर्ताओं के मनोबल पर घातक असर डालता जा रहा है. विपक्षी पार्टियों को अगर जीत का स्वाद चखना है तो इनको अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह, जोश भरना होगा ताकी कार्यकर्ता चुनाव में अपना सो प्रतिशत दे पाएं.
4. चुनाव में बीजेपी द्वारा राष्ट्रीय मुद्दों को हवा देना
चुनाव केंद्र का हो या राज्य का, या फिर चुनाव हो पंचायत स्तर का, बीजेपी के मुद्दे राष्ट्रीय ही होते हैं. इसका असर नतीजों पर साफ नजर भी आता है, वहीं देखने लायक होगा कि विपक्ष बीजेपी को रोकने में कितना सफल होता नजर आता है. चुनाव में लोकल मुद्दों को कितना भुना पाता है, ताकि बीजेपी भी हार कर लोकल मुद्दों पर ही चुनाव लड़ने पर विवश हो जाए.
5. वीआईपी कल्चर का त्याग
भारतीय जनता पार्टी छोटे से छोटे चुनाव को राष्ट्रीय चुनाव की तर्ज पर लड़ती है, और चुनाव प्रचार में बीजेपी शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों समेत मंत्री और छोटे से लेकर बड़े नेता तक की चुनाव में ड्यूटी लगाई जाती है. परंतु विपक्ष में यह नजर नहीं आता, अखिलेश यादव तो उपचुनाव में प्रचार ही नहीं करते, लेकिन इस बार डिम्पल यादव के लिए वो चुनाव प्रचार करते नजर आए. तो वहीं सपा द्वारा बसपा पर बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप, क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती जमीन पर जनता के बीच कम, और ट्विटर पर ज्यादा एक्टिव दिखाई पड़ती है और मायावती का बड़ा वोट बैंक ट्विटर पर नहीं जमीन पर एक्टिव रहता है.
निकाय चुनाव बीजेपी के लिए कितना महत्वपूर्ण?
बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव आगामी लोकसभा के लिए काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि इन चुनाव परिणामों से ही जनता का असली मूड समझा जा सकता है. यदि चुनाव परिणाम बीजेपी के पक्ष में नहीं आता है तो कई सवाल देश की राजनीति में जन्म लेंगे. जैसे क्या देश में मोदी मैजिक का असर कम हो रहा है. क्या सरकार की नीतियों से जनता नाखुश है या फिर जनता महंगाई से परेशान है? अगर चुनाव में बीजेपी की हार होती है, तो साफ तौर पर जनता के बीच एक निगेटिव मैसेज जाएगा. विपक्ष बीजेपी की इस हार को आगामी लोकसभा में खूब भुनाएगा और अपने पक्ष में माहौल बनाएगा.
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