उत्तर प्रदेश का मुस्लिम वोट बैंक किसकी झोली में गिरेगा? तीन दलों की तिरछी निगाह
उत्तर प्रदेश विधानसभा (UP Election 2022) चुनाव की तैयारियों में जुटे ज्यादातर राजनीतिक दलों की नजर मुस्लिम वोट बैंक (Muslim Vote Bank) पर लगी हुई थी - चूंकि बंगाल से मिले सबक के बाद अब बीजेपी (BJP) को भी मुस्लिम वोट की अहमियत समझ में आने लगी है, मुकाबला दिलचस्प होने वाला है.
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पंजाब के मलेरकोटला पर ट्रेलर तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही दिखा चुके हैं - हां, पिक्चर अभी पूरा बाकी है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के ईद के मौके पर मुस्लिम बहुल आबादी वाले इलाके मलेरकोटला को पंजाब का 23वां जिला घोषित करते ही योगी आदित्यनाथ ने मामला पाकिस्तान से जोड़ कर पेश कर दिया था - मलेरकोटला को लेकर दोनों मुख्यमंत्रियों में तीखी प्रतिक्रिया भी हुई.
अब जबकि बंगाल चुनाव की समीक्षा के बाद बीजेपी (BJP) को मुस्लिम वोट बैंक अपने लिए खतरनाक लगने लगा है, ये तो तय है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में नये सिरे से होड़ मचने वाली है.
1. कांग्रेस की तैयारी
ये तो काफी दिनों से देखने को मिल रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा मुस्लिम वोटों ((Muslim Vote Bank)) के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए हैं. सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस एक्शन के शिकार लोगों को सहानुभूति का कंधा देने के साथ साथ गोरखपुर अस्पताल वाले डॉक्टर कफील खान से लेकर माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के मामले तक में बीजेपी कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करती रही है - और आने वाले चुनाव में तो ये नजारा और भी नये अंदाज में देखने को मिल सकता है.
मुस्लिम वोट पर सबसे ज्यादा जोर प्रियंका गांधी वाड्रा का दिखा है और पंचायत चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है, लेकिन मायावती सीन में कहां है?
विधानसभा चुनावों (UP Election 2022) में अभी छह महीने से ज्यादा का वक्त बचा है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम उलेमाओं के साथ मीटिंग और उनके सम्मेलन पर काफी जोर दिया जाने लगा है. सलमान खुर्शीद और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं की मदद से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा रही हैं, भले ही ये अखिलेश यादव और मायावती के साथ किसी चुनावी समझौते के मकसद से भी किया जा रहा हो.
2. मायावती के असफल प्रयोग
मुस्लिम वोट हासिल करने के मकसद से मायावती अब तक दो-दो बार पूरी ताकत झोंक चुकी हैं - 2017 के चुनाव में पश्चिम यूपी में तब बीएसपी में रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अंसारी भाइयों की मदद से मायावती ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ खड़ा करने की पूरी कोशिश की.
2019 के आम चुनाव में भी अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर प्रधानमंत्री बनने का उनका सपना उनकी आंखों के ही सामने धराशायी हो गया जब दोबारा उनके दलित-मुस्लिम प्रयोग का दम ही निकल गया.
3. अखिलेश यादव भी रेस में
सारी कवायद एक तरफ और समाजवादी पार्टी की तैयारी एक तरफ - यूपी के पंचायत चुनाव के नतीजों ने काफी हद तक तस्वीर भी साफ कर दी है. समाजवादी पार्टी ने वैसे तो पूरे प्रदेश में अच्छे प्रदर्शन का दावा किया है, लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण अयोध्या, काशी और मथुरा से आये नतीजे हैं - जहां बीजेपी का बोल बाला होना चाहिये वहां भी समाजवादी पार्टी ने महफिल लूट डाली है.
जैसा बीजेपी नेतृत्व का आकलन है, मान कर चलना होगा कि आने वाले यूपी चुनाव में भी दिल्ली चुनाव की ही तरह भड़काऊ या कहें कि जहरीले बयान सुनने को मिल सकते हैं. बाद में एक इंटरव्यू में बीजेपी नेता अमित शाह ने माना भी था कि खुद उनके और उनके साथी नेताओं के बयानों को विपक्ष ने दिल्ली चुनाव में मुद्दा बना दिया. CAA के विरोध में जब शाहीन बाग धरने से जोड़ते हुए बीजेपी नेताओं ने अरविंद केजरीवाल पर जोरदार हमला बोल दिया तो AAP नेता ने साफ साफ बोल दिया कि अगर दिल्लीवासी उनको आतंकवादी मानते हैं तो वोटिंग के दिन वे बीजेपी के नाम का ईवीएम बटन दबा दें. बीजेपी की सारी कवायद हवा हो गयी.
निश्चित रूप से 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कोशिश मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण को रोकना होगी - और एक बार फिर किसी नये अंदाज में सही श्मशान और कब्रिस्तान जैसी बहस देखने को मिल सकती है.
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