इंसानियत के हित में जस्टिस कयानी का फैसला
उजमा मामले में मानवता की जीत हुई है. इस्लामाबाद की निचली अदालत ने केस को किसी तकनीकी उलझन में फंसाने के बजाय उसे आजाद होकर भारत जाने की इजाजत दे दी.
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पाकिस्तान की इस्लामाबाद कोर्ट ने एक मानवीय फैसला सुनाकार लोगों की दुर्दांत सोच को बदलने की कोशिश की है. कोर्ट के इस फैसले ने भारत-पाक के बीच तल्ख हुए रिश्तों की दरारों में मोहब्बत की सीमेंट भरने का काम किया है. उजमा पर दिए फैसले की चारों ओर सराहना हो रही है. कोर्ट के फैसले ने हर हिंदुस्तान का दिल जीता है. सरहद पर लगातार हो रही गोलीबारी, भारत की ओर उनके बंकरों पर सीधा हमला करना, जाधव का मामला भी सुलग रहा है, इन सबके बीच पाकिस्तान की ज्युडीशियरी का मानवता के पक्ष में झुकाव रखना और जस्टिस अयूब कयानी का भारतीय नागरिक के पक्ष में एक तरफा फैसला सुनाना निश्चित रूप बदलाव की आहट को सुनाई देने जैसा है.
उजमा की घर वापसी
प्यार, मोहब्बत, आपसी रंजिश, बेवफाई और पारिवारिक झगड़ों में कभी कूटनीतिक राजनीति आड़े नहीं आनी चाहिए. दो मुल्कों की सियासी दुश्मनी के बीच मानवता शर्मसार नहीं होनी चाहिए. पाकिस्तानी ज्युडीशियरी और भारत सरकार के सहयोग से वहां नर्क का जीवन जी रहीं बीस साल की भारतीय नागरिक उजमा अहमद सकुशल हिंदुस्तान आ गई हैं. उजमा ने वहां जो जीवन भोगा, उसे याद करके रो पड़ती हैं. उजमा जिस कबायली जिले खैबर-पख्तूनख्वा में फंसी थी वहां तालिबान और जमींदारों का राज चलता है. लेकिन उजमा ने बाहर निकले के लिए बेहद अक्लमंदी से काम लिया.
उजमा-ताहिर का मामला इस समय इस्लामाबाद की निचली अदालत में लंबित है, लेकिन उसका कथित पति केस को आगे भी खींचेगा. उसका मानना है कि उजमा अभी भी उसकी बीवी है. उसने अभी तक काजी के सामने तलाक नहीं दिया है. इसलिए पाकिस्तानी कानून के मुताबिक, अभी केस चलता रहेगा. केस के निपटारे को लेकर उजमा की ओर से उसका वकील कोर्ट में पेश होता रहेगा. हो सकता है कि आगे अदालत के बुलावे पर उजमा को पाकिस्तान भी जाना पड़े. उजमा का कथित पति पेशे से चिकित्सक है. ताहिर की दलील है कि उजमा की रजामंदी से निकाह हुआ था. लेकिन अचानक उजमा ने उनसे दूरी क्यों बना ली. ताहिर का जज पर भी आरोप है कि राजनैतिक दबाव में आकर उन्होंने उजमा के पक्ष में एक तरफा फैसला सुना दिया. उनकी कोई दलील नहीं सुनी गई, इसलिए अब इस मसले को हाईकोर्ट में ले जाएगा. खैर, अब पछतावे से क्या होगा, जब चिड़ियां चुग गई खेत. उजमा अब अपनी सरजमीं पर सुरक्षित है. उसे कोई दिक्कत नहीं. उजमा को अगर पाकिस्तानी अदालतें तलब भी करती हैं तो उसे सुरक्षा के घेरे में वहां ले जाया जाएगा.
अपने भाई की बेटी के साथ गले लगती उजमा
कैसे पहुंचीं पाकिस्तान
गौरतलब है कि उजमा कुछ माह पहले इंटरनेट के जरिए ताहिर के संपर्क में आई थी. दिखने में सुंदर और अच्छी तरह से अंग्रेजी ज्ञान का दक्ष ताहिर ने मीठी-मीठी बातें करके अपने जाल में फंसाया साथ ही उजमा को मलेशिया में अच्छी जॉब का ऑफर भी दिया. ताहिर की बातों में जब उजमा अच्छी तरह से फंस गई तो उन्होंने मलेशिया जाने का निर्णय किया. कुछ दिन के बाद उजमा मलेशिया पहुंच गई. वहां उसे ताहिर मिल जाता है. ताहिर चिकित्सक होते हुए भी वहां टैक्सी ड्राइवर का काम करता था. उजमा कुछ दिन तारिह के साथ मलेशिया में रहती हैं. इसी बीच दोनों में प्यार हो जाता है. उजमा फिर भारत लौट आती हैं. पर, दोनों लगातार संपर्क में रहते हैं. इसी माह की पहली तारीख को उजमा अपने परिवार से यह कहकर पाकिस्तान जाती है कि वह अपने संबंधियों से मिलने वहां जा रही है. पाकिस्तान पहुंचकर वह फिर से ताहिर मिलती है. इसके बाद ताहिर अपना असली खेल खेलना शुरू कर देता है. तंमचे की नोक पर उससे जबरन निकाह कर लेता है. उजमा जब उसके चुंगल में खुद को फंसी पाती हैं तो बाहर निकलने की तरकीब सेाचती है.
उजमा ताहिर से इंडियन हाईकमीशन में कुछ काम का बहाना बनाकर वहां जाने को कहती है, लेकिन ताहिर भांप नहीं पाता. वह इंडियन हाईकमीशन में जाने को हां कर देता है. और दोनों इंडियन हाईकमीशन जाते हैं. उजमा तारिह को बाहर इंतजार करने को कहकर इंडियन हाईकमीशन अंदर दाखिल हो जाती है. उसके बाद वहां मौजूद अधिकारियों को खुद पर हो रहे जुल्म को लेकर पूरी कहानी से अवगत कराती हैं. उजमा को बेहद गरीब इलाके और तालिबान अधिकृत क्षेत्र खबर पख्तूनख्वा के दूरवर्ती बुनेर प्रांत में बंदक बनाकर रखा गया था. इस इलाके में दूसरे देशों से लड़कियां लाकर बेची जाती हैं. ताहिर की भी उजमा को बेचने के फिराक में था. बुनेर में एक इंसान चार-चार बीबियां रखता है. घरों में फांके की स्थिति होती है. औरतों को घरों के अंदर कैद करके रखा जाता है. तालिबानी लोग उन घरों में बिना इजाजत घुस जाते हैं. औरतों का शारीरिक शोषण खुलेआम करते हैं. इसके लिए उन्हें कोई भी रोकता-टोकता नहीं. जिस औरत को चाहें उसे अपने साथ कुछ घंटों के लिए उठा ले जाते हैं. करीब सप्ताह भर यही सब जुल्म उजमा ने भी सहे.
उजमा मामले में मानवता की जीत हुई है. इस्लामाबाद की निचली अदालत ने केस को किसी तकनीकी उलझन में फंसाने के बजाय उसे आजद होकर भारत जाने की इजाजत दे दी. दो मुल्कों की सियासी जंग में मानवता की बलि नहीं लेनी चाहिए. उजमा केस में अमन की जीत हुई. केस की सुनवाई के दौरान जब ताहिर ने जस्टिस कयानी से गुहार लगाते हुए कहा कि साहब यह पाकिस्तान की इज्जत का सवाल है. इस बात पर जस्टिस कयानी काफी गुस्सा हुए. और उन्होंने पलटकर जवाब दिया कि इसमें हिंदुस्तान और पाकिस्तान कहां से आ गए. यह एक पीड़ित लड़की के इंसाफ का मामला है जिसे पाना उसका मौलिक अधिकार है. जस्टिस के इस निर्णय से कोर्ट रूम तालियां भी बजने लगीं. वहां मौजूद कई लोगों ने उजमा को हाथ मिलाकर आजाद होने की बधाइयां भी दीं. दोनों मुल्कों के रिश्तों में आई दरारों को भरने में पाकिस्तान का यह कदम नजीर साबित हो सकता है. विदेशमंत्री ने इसके लिए पाकिस्तान सरकार और उनकी ज्युडीशियरी को बेहद ही मर्म तरीके से धन्यवाद दिया.
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