ज्ञानवापी पर फैसला कोर्ट का है, लेकिन, भाजपा को फायदा 'राम मंदिर' वाला मिलेगा
वाराणसी की लोअर कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) के परिसर में सर्वे रिपोर्ट को 17 मई तक जमा करने का आदेश दिया है. जिसके बाद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हमने एक मस्जिद (बाबरी) खो दी है. और, अब दूसरी मस्जिद को नहीं खो सकते हैं. ये राजनीतिक बयानबाजी भाजपा के लिए माहौल बनाने में सहायक है
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वाराणसी की लोअर कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में सर्वे रिपोर्ट को 17 मई तक जमा करने का आदेश दिया है. जिसके बाद एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हमने एक मस्जिद (बाबरी) खो दी है. और, अब दूसरी मस्जिद को नहीं खो सकते हैं. मस्जिद कमेटी को तुरंत सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए. हालांकि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले मामले से जुड़ी फाइलें देखी जाएंगी. वैसे, वाराणसी के लोअर कोर्ट के किसी भी हाल में सर्वे पूरा करने के आदेश की बात हो या सुप्रीम कोर्ट का सर्वे पर तत्काल रोक लगाने से इनकार की बात हो. इन सभी फैसलों पर हो रही राजनीति को देखकर कहा जा सकता है कि ज्ञानवापी पर फैसला कोर्ट का है, लेकिन, फायदा भाजपा को 'राम मंदिर' वाला मिलेगा.
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे से 'सच्चाई' सामने आ जाएगी. तो, इसे रोकने का क्या अर्थ है?
आस्था का 2024 से चुनावी कनेक्शन
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला दिए जाने के बाद से निर्माण कार्य में भरपूर तेजी दर्ज की गई है. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय की मानें, तो भव्य राम मंदिर का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा कर लिया जाएगा. हालांकि, धार्मिक कारणों के चलते गर्भगृह में रामलला मकर संक्रांति को विराजमान होंगे. खैर, धार्मिक कारणों से इतर राम मंदिर के राजनीतिक कारणों की चर्चा भी जरूरी है. क्योंकि, 2024 में अयोध्या में रामलला को विराजमान करने के बाद ही देश में आम चुनाव का बिगुल भी फूंका जाएगा. जो सीधे तौर पर भाजपा को सियासी फायदा पहुंचाने वाला होगा.
वैसे, काशी विश्वनाथ मंदिर से लगी हुई ज्ञानवापी मस्जिद में हालिया आए फैसलों से ये साफ हो गया है कि इस मामले पर भारतीय न्याय व्यवस्था के अनुरूप ही सुनवाई चलती रहेंगी. अयोध्या में राम मंदिर का मामला इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. जहां सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश देने से पहले महीनों तक इसे मध्यस्थता से सुलझाने के लिए एक कमेटी बना दी. जिससे कोई हल नहीं निकला. खैर, भाजपा के लिए ज्ञानवापी मस्जिद का मामला राम मंदिर का ही एक्सटेंशन कहा जा सकता है. जो भाजपा के लिए उंगलियां घी और सिर कढ़ाई में वाली ही बात कही जा सकती है.
पीएम मोदी, वाराणसी और काशी विश्वनाथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि 'भले ही दो बार देश के पीएम बन गए हों, लेकिन उनका इरादा आराम करने का नहीं है. मोदी अलग मिट्टी का बना है.' पीएम नरेंद्र मोदी ने ये बातें सरकारी योजनाओं को शत प्रतिशत लाभार्थियों तक पहुंचाने के संदर्भ में जरूर कही थीं. लेकिन, नरेंद्र मोदी की ओर से यह एक इशारा था कि दो बार प्रधानमंत्री बनने के बाद वो रुकने वाले नहीं हैं. और, अपने अगले कार्यकाल यानी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पीएम मोदी ने अभी से माहौल बनाना शुरू कर दिया है.
अब अगर ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट के फैसलों की बात करें, तो यह मामला पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का है. जहां पीएम मोदी ने बीते साल ही अपने ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया था. वैसे, यह चौंकाने वाली बात है कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद धर्म नगरी काशी में पर्यटन ने तेज गति पकड़ी है. ये तकरीबन कुछ वैसा ही है. जैसा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी की केदारनाथ यात्रा के बाद हुआ था. केदारनाथ में श्रद्धालुओं का आवागमन बढ़ता जा रहा है.
पीएम नरेंद्र मोदी की छवि बहुसंख्यक हिंदुओं में धर्म के ध्वजवाहक की है. राम मंदिर, केदारनाथ, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर जैसे कई बड़े मंदिरों को लेकर भाजपा सरकार ने योजनाओं का अंबार लगा दिया है. और, ये तय है कि ऐसा फैसले 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से मदद पहुंचाएंगे. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन पिछले आम चुनाव के दौरान थोड़ा कमजोर नजर आया था. लेकिन, सूबे में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सरकार की वापसी के बाद इसके बदलने की संभावना है.
अपने ही अंर्तद्वंद में घिरेंगे मुस्लिम
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे पर वाराणसी कोर्ट के फैसले पर अमल के दौरान मुस्लिम समुदाय ने इसका व्यापक विरोध किया था. हालांकि, दोबारा वाराणसी कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सर्वे में बाधा डालने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. जबकि, कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि सर्वे का कार्य किसी भी हाल में पूरा होना चाहिए. खैर, अब थोड़ा रुख दिल्ली की ओर कर लेते हैं. शाहीन बाग समेत कई मुस्लिम बहुल इलाकों में अतिक्रमण के खिलाफ हुई कार्रवाई का विरोध देखने को मिला था. जबकि, यह पूरी तरह से कानूनी मामला ही कहा जा सकता है. लेकिन, देश में मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग लोगों को कानून और संविधान के नियमों को भी ताक पर रखने के लिए उकसाता नजर आता है.
इस तरह की तस्वीरें देश में कानून का पालन करने वाली जनता के बीच मुस्लिमों की एक अराजक छवि स्थापित करती है. हालांकि, ऐसे मामलों पर विरोध को देखने के बाद लगता नहीं है कि मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से को शायद ही इस बात की चिंता है. खैर, ज्ञानवापी मस्जिद पर वापस लौटते हैं. तो, मुस्लिम समुदाय द्वारा सर्वे का विरोध या असदुद्दीन ओवैसी जैसे मुस्लिम नेताओं की ओर से की जा रही राजनीतिक बयानबाजी भाजपा समर्थक बहुसंख्यक हिंदुओं को और ज्यादा मजबूती के साथ खड़ा कर देगी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कोरोना काल के दौरान उपजी अव्यवस्था, किसान आंदोलन जैसी तमाम जटिलताओं का हल मुस्लिम समुदाय खुद ही भाजपा को सौंपने को तैयार नजर आता है. जबकि, सर्वे से शायद ही ज्ञानवापी मस्जिद को कोई नुकसान पहुंचे. क्योंकि, अधिकांश लोगों का मत है कि यह मस्जिद ही है.
खैर, मुस्लिम समाज के एक वर्ग में मजहब के प्रति बढ़ रही कट्टरता केवल उत्तर प्रदेश या दिल्ली तक सीमित नहीं है. बीते दिनों राजस्थान में भड़की सांप्रदायिक हिसा, कर्नाटक में हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा बनाने की जंग जैसे कई मामलों ने बहुसंख्यक हिंदुओं को सोचने पर मजबूर किया है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? आसान शब्दों में कहा जाए, तो जिस तरह राम मंदिर के मुद्दे ने भाजपा को 2014 में सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने में मदद की थी. ठीक उसी तरह ज्ञानवापी मस्जिद का मामला भी पीएम नरेंद्र मोदी की छवि को हिंदुत्व समर्थक नेता के तौर पर मजबूत करेगा.
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