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Updated: 10 जुलाई, 2020 09:21 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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विकास दुबे एनकाउंटर पर कई सवाल लोगों ने खड़े किए हैं. विकास दुबे को फर्जी एनकाउंटर में मारे जाने के पीछे की साजिश बयां की जा रही है. जो लोग विकास को आतंकवादी बताकर उसे न पकड़ पाने वाली पुलिस को ताने दे रहे थे, अब उनके हाथ का हथियार बदल गया है. कहा जा रहा है कि उसे मारने की क्या जरूरत थी? क्या कानून का राज खत्म हो गया है? और जो सबसे गंभीर आरोप है, वो ये कि 'यदि विकास दुबे से पूछताछ होती तो वह कई राज उगल देता. जिससे कई नेता बेनकाब होते. योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन राज को बेपर्दा होने से बचाने के लिए विकास दुबे को मरवा दिया'.

वैसे, विकास दुबे ने अपनी मौत का सामान तो उसी दिन सजा लिया था, जिस दिन उसने उसके घर दबिश देने के लिए गए पुलिसकर्मियों के सीने पर चढ़-चढ़कर गोलियां दागीं थीं. न्यायालय के दायरे से तो वह तभी बाहर हो गया था, जब 18 साल पहले उसने बेखौफ होकर थाने के भीतर प्रदेश के बड़े नेता को भून दिया. और फिर अपने दबदबे से थाने के 17 पुलिसकर्मियों को गवाही देने से भी रोक लिया.

विकास दुबे से हुई काल्पनिक पूछताछ का विवरणयदि विकास दुबे ज़िंदा होता और पुलिस पूछताछ करती तो कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आती

विकास दुबे से हुई काल्पनिक पूछताछ का विवरण:

"विकास दुबे ने पूछताछ में कुबूल किया है कि उसके बीजेपी और सपा के 5 बड़े नेताओं, बसपा के तीन और कांग्रेस के 2 छोटे नेताओं के साथ गहरे संबंध थे. जिनके राजनीतिक संरक्षण से उसने अपने अपराध और दो नंबर के कारोबार को छुपाने में मदद ली. उसके मोबाइल में सभी पार्टियों के 150 नेताओं के नंबर थे. विकास ने अलग अलग दर्जे के 20 पुलिस वालों का भी नाम बताया है, जिनकी मदद से उसने इलाके में दबदबा कायम किया था. ये सभी पुलिस कर्मी अब अलग-अलग जगह पदस्थ हैं."

अब आइए, इस खुलासे पर मिलने वाली काल्पनिक प्रतिक्रियाओं पर नजर डालते हैं:

भाजपा- हमारे जिन नेताओं के नाम सामने आए हैं, उनके बारे में फैसला करने के लिए जांच समिति बना दी गई है.

समाजवादी पार्टी- शासन भाजपा का, पुलिस उनकी. हमें बदनाम करने के लिए वो चाहे जो बुलवा सकते हैं.

बसपा- सब झूठी और गढ़ी हुई बातें हैं.

कांग्रेस- यह पॉलिटिकल वेंडेटा है. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए.

काल्पनिक पूछताछ और प्रतिक्रिया का निष्कर्ष क्या होता?:

अलग अलग मीडिया अपनी अपनी सुविधा से उन नेताओं पर प्रोफाइल स्टोरी करते, जिनके नाम विकास ने बताए होते.

- यूपी सरकार कुछ पुलिस कर्मियों को बर्खास्त करती और कुछ को जांच होने तक सस्पेंड रखती, जिनके नाम विकास ने बताए होते.

- राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलता, जब तक कि कोई नई हेडलाइन न्यूज चैनलों पर न तैरने लगती. (अभी भी कोई कसर बाकी नहीं है)

विकास दुबे के एनकाउंटर से कोई राज दफन नहीं हुआ है. जो सबको पता हो, उसे राज कहते ही नहीं है. विकास जो भी बताता, कम-ज्यादा वह यूपी में सब जानते हैं. कम से कम हर पार्टी का बड़ा नेता यह बातें जानता है. मीडिया को भी खबर है. गुंडे-माफिया भी अपने आका को छुपाकर नहीं रखते. इस मिलीभगत के बखान से दोनों पार्टियों का फायदा होता है. विकास दुबे के सभी गठजोड़ सभी संबंधित लोगों को पता हैं. कानपुर के विकास दुबे का नेटवर्क जानना दूसरे इलाकों की ऑडियंस के लिए सिर्फ एक न्यूजी कौतूहल का विषय हो सकता है. इससे ज्यादा कुछ नहीं. देश के कोने कोने में विकास दुबे फैले हुए हैं. जरा अपने आसपास झांक कर तो देखिए. विकास दुबे भी दिखेंगे, और उनका नेटवर्क भी. जो कानपुर वाले विकास दुबे थे, बस उनका ही खेल खत्म हुआ है अभी.

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धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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