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Updated: 23 अप्रिल, 2019 11:24 AM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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लोकसभा चुनाव 2019 शुरू हो गया है और पहले चरण की वोटिंग खत्म हो गई है और अभी भी अगले कई पड़ाव बाकी हैं. भारत विविधता का देश है और ऐसे देश में लोकसभा चुनाव का मतलब है दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव जो रेगिस्तान की गर्मी से लेकर बर्फीले पहाड़ों और भारत के छोर पर रंगीन समुद्र तक चारों ओर होता है, लेकिन इतनी विविधता के माहौल में आखिर चुनाव के लिए पोलिंग बूथ कैसे होते हैं? 90 करोड़ वोटर जिनमें 8.3 करोड़ पहली बार वोट देने वाले वोटर हैं जिनके लिए भारत में 10 लाख 35 हज़ार पोलिंग बूथ हैं और पोलिंग बूथ कुछ ऐसे डिजाइन किए जाते हैं कि किसी भी वोटर को अपने घर से दो किलोमीटर से ज्यादा न जाना पड़े वोट डालने के लिए. यही कारण है कि 1 करोड़ 10 लाख से ज्यादा लोगों को इलेक्शन ड्यूटी पर लगाया गया है और 40 लाख EVM लाई गई हैं.

जहां ट्रांसपोर्ट आसान है, जहां बिजली पंखे की सुविधा है वहां जाना तो ठीक, लेकिन ऐसे इलाके जहां पहुंचना मुश्किल है वहां के वोटरों के लिए बेहद खराब स्थिति में भी पोलिंग बूथ तक चुनाव ड्यूटी करने लोग पहुंचते हैं. कई लोग पहाड़ चढ़ते हैं, कई को हेलिकॉप्टर से उतरवाया जाता है, कई को समुद्र के पानी से होकर जाना पड़ता है जहां खतरनाक मछलियां भी होती हैं.

1. वो पोलिंग बूथ जो सिर्फ 1 वोटर के लिए बनाए गए हैं

गुजरात के गिर नेशनल पार्ट और अरुणाचल प्रदेश के अनजॉ जिले के मालोगाम गांव में देश के दो ऐसे पोलिंग बूथ हैं जहां सिर्फ 1 ही रजिस्टर्ड वोटर है. गुजरात का गिर नेशनल पार्क दो कारणों से प्रसिद्ध है. पहला तो जंगल के शेर और दूसरा शेर के बीच रहने वाले वोटर महंत भरतदास दर्शनदास. इन्हें भारत का सबसे अनोखा वोटर भी कहा जाता है क्योंकि ये महंत जंगल के शेरों के साथ रहते हैं. जी हां, ऐसे इलाके में जहां इंसान से ज्यादा शेर रहते हैं वहां एक मंदिर की देखभाल करते हैं और इनके लिए खास पोलिंग बूथ लगाया जाता है जिसमें EVM से लेकर सभी सुविधाएं होती हैं जो एक वोटर के लिए जरूरी हैं. इलेक्शन टीम के साथ पुलिस वाले भी जाते हैं और बानेज, गिर में लोकतंत्र की रक्षा करने वाले एक वोटर का अहम वोट लेते हैं.

महंत भारतदास दर्शनदास जिनके लिए गिर में पोलिंग बूथ बनाया जाता है.महंत भारतदास दर्शनदास जिनके लिए गिर में पोलिंग बूथ बनाया जाता है.

ये भारत में एकलौता ऐसा किस्सा नहीं है जहां एक वोट के लिए इतनी मेहनत लगे. बल्कि एक और वोटर हैं जो अरुणाचल प्रदेश में रहती हैं. इन तक पहुंचने के लिए तो इलेक्शन ड्यूटी कर रहे लोगों को पूरा पहाड़ चढ़ना पड़ता है. ये है मालोगाम गांव जहां 100 प्रतिशत वोटर टर्नआउट होगा क्योंकि सिर्फ 1 ही महिला यहां वोट देने आती है.

यहां वोटर हैं 39 साल की सोकेला तायांग. तायांग तीन बच्चों की मां हैं और अपने गांव से एक ही वोटर. ये इलाका इतना सुदूर है कि कुछ जगहों पर तक 2 घरों को भी गांव नाम दे दिया है.

इस बार 6 लोगों की टीम वहां गई थी और पोलिंग बूथ सेट किया था ताकि सोकेला का वोट लिया जा सके और पूरे दिन वहां कोई न कोई तैनात था क्योंकि ये किसी को नहीं पता था कि आखिर वो कब वोट देने आएंगी. यहां वोट लेने के लिए इलेक्शन टीम का हेड अपनी टीम खुद चुनता है ताकि वो ये तय करवा सके कि जो भी लोग जाएं वो पहाड़ चढ़ पाएं. यहां पोलिंग बूथ लगाने के लिए 6 किलोमीटर से ज्यादा की लंबी चढ़ाई चढ़नी होती है. यहां कोई रोड नहीं है बल्कि पहाड़ी पगडंडियों का इस्तेमाल करना होता है.

2. दुनिया का सबसे ऊंचा पोलिंग बूथ जो भारत में है

भारत का ही नहीं दुनिया का सबसे ऊंचा पोलिंग बूथ भारत में है जहां लोकसभा चुनाव 2019 के लिए वोटिंग करने लोग 15,256 फिट की ऊंचाई पर बने पोलिंग बूथ पर आते हैं. ताशीगंग पोलिंग बूथ जो हिमाचल प्रदेश में है. ये भारत-चीन बॉर्डर से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर है और ताशीगंग गांव के लिए यहां वोटिंग की सुविधा दी गई है. यहां सिर्फ 48 वोटरों के लिए पोलिंग बूथ लगाया गया है. यहां पर 19 मई को वोटिंग होगी.

ताशीगंग गांव बेहद खूबसूरत है जहां जाना बेहद मुश्किलताशीगंग गांव बेहद खूबसूरत है जहां जाना बेहद मुश्किल

यहां पहुंचना भी आसान नहीं है क्योंकि गांव की सड़क साल के ज्यादातर समय बर्फ की वजह से बंद रहती है और यहां पर मोबाइल कनेक्टिविटी भी नहीं है. यहां इलेक्शन टीम को सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करना पड़ता है. इसके पहले सबसे ऊंचा पोलिंग बूथ हिक्किम था जो ताशीगंग से 160 किलोमीटर दूर है.

3. भारत का सबसे दक्षिणी पोलिंग बूथ जहां वोट देने कोई नहीं आया

पहाड़ों और जंगलों की बात तो हो गई, लेकिन यहां समुद्र की बात है. वैसे तो अंडमान एंड निकोबार की जहां एक पोलिंग स्टेशन पिलोपाटिया (Pilopatia) समुद्र से सिर्फ 9.7 मीटर ऊपर है. यहां पहुंचने के लिए चुनाव अधिकारियों को 24 घंटे की लंबी समुद्री यात्रा करनी होती है. पोर्ट ब्लेयर से स्पीड बोट मिलती है और फिर एक छोटी नाव में ट्रांसफर किया जाता है और अंत में इस जगह तक पहुंचने के लिए ऐसे कम पानी वाले इलाके से छोटे से डोंगे में गुजरना पड़ता है जहां पानी में मगरमच्छ, सांप आदि होते हैं. EVM को बचाने के लिए तो जतन कर लिए जाते हैं, लेकिन किनारे तक पहुंचने के लिए कई बार टीम को पानी में उतर कर जाना होता है और इतना सब कुछ सिर्फ 9 वोटरों के लिए होता है. यहां भी टीम के पास मोबाइल कनेक्टिविटी के नाम पर सैटेलाइट फोन और वायरलेस सेट्स हैं.

अंडमान के इन पोलिंग स्टेशन तक पहुंचना आसान नहीं है. सांकेतिक तस्वीरअंडमान के इन पोलिंग स्टेशन तक पहुंचना आसान नहीं है. सांकेतिक तस्वीर

ये अंडमान का इकलौता ऐसा पोलिंग बूथ नहीं है जहां मुश्किल होती है. अब बात करते हैं देश के सबसे दक्षिणी पोलिंग बूथ की जहां कोई वोट देने आया ही नहीं. ये है ग्रेटर निकोबाल आइलैंड का पोलिंग बूथ जिसे घोपड़ी की तरह बनाया गया था ताकि यहां के आदिवासी आ सकें. यहां हर कोई नहीं जा सकता बल्कि खास तौर पर ट्राइबल्स डिपार्टमेंट के अधिकारियों को ही जाने की इजाजत है. यहां पर 35 रजिस्टर्ड वोटर हैं, लेकिन उनमें से एक भी यहां वोट देने नहीं आया. यहां पहुंचने के लिए नाव का ही सहारा लेना होता है और मोबाइल कनेक्टिविटी की बात तो न ही की जाए तो बेहतर है. ये इलाका शोमपेन आदिवासियों का है और ये अंडमान की संरक्षित जनजातियों में से एक है.

4. सेना के हेलिकॉप्टर से पहुंचना पड़ता है इस पोलिंग स्टेशन तक

विजॉयनगर, ये नाम सुनने में बहुत शहरी लगता है, लेकिन असल में दूर हिमायल में मौजूद एक गांव का नाम है. अरुणाचल प्रदेश एक ऐसा वोटिंग स्टेशन है इन चुनावों में जहां इलेक्शन ड्यूटी करने वाले लोगों को सेना के हेलिकॉप्टर के सहारे भेजा गया. वो है विजॉयनगर. यहां से तीन अन्य गांवों के पोलिंग स्टेशनों तक चलकर जाना होता है और इसलिए सभी टीमों को यहां तक एयरलिफ्ट करवाया गया. तीन अन्य गांव रामनगर, गांधीग्राम, टू-हट पोलिंग स्टेशन हैं. सेना का MI-17 हेलिकॉप्टर इस काम के लिए तैनात था. यहां 11 अप्रैल को ही वोटिंग हुई.

ये सभी पोलिंग स्टेशन माइयो (Miao) लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं. हर टीम के पास 4 पोलिंग अफसर, 1 अटेंडेंट, दो पुलिसअफसर और चार EVM- VVPAT मशीनें थी.

पोलिंग स्टेशन पहुंचने के लिए स्टाफ को कई दिनों तक ट्रेनिंग दी जाती है.पोलिंग स्टेशन पहुंचने के लिए स्टाफ को कई दिनों तक ट्रेनिंग दी जाती है.

विजॉयनगर करीबन 163 किलोमीटर दूर था माइयो से और यहां कोई भी रोड नहीं बनी है. स्थानीय निवासी 6 दिन पैदल चलकर आते-जाते हैं और इसलिए इलेक्शन कमीशन के लोगों को एयरलिफ्ट करवाना पड़ा. विजॉयनगर से 1 से 9 घंटे की दूरी पर पोलिंग स्टेशन हैं और इसलिए टीमों को पैदल चलना होता है. गांधीग्राम की टीम को तो 9 घंटे की ट्रेकिंग करनी होती है.

रामनगर पोलिंग स्टेशन पर 252 वोटर हों, गांधीग्राम में 1338 वोटर, विजॉयनगर में 865 वोटर और टू-हट में 726 वोटर.

5. ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर जाते हैं पोलिंग बूथ पर

जब हर प्रदेश की बात हो रही है तो फिर एक ऐसे इलाके को क्यों छोड़ दें जो अपने आप में अनोखा है. ये है लेह-लद्दाख. यहां गायक (Gaik) गांव पर पोलिंग स्टेशन 14,196 फिट पर स्थित है और ये सिर्फ 12 वोटरों के लिए लगाया जाता है. साथ ही, लद्दाक का Anlay Pho पोलिंग स्टेशन लगभग 15000 फिट की ऊंचाई पर स्थित है और वहां जाने के लिए इलेक्शन टीम को ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाने होते हैं.

लद्दाक संसद क्षेत्र की दो डिस्ट्रिक्ट लेह और कार्गिल हैं जहां 294 और 265 पोलिंग स्टेशन लगाए गए हैं ताकि 1,71,819 वोटर अपना मतदान दे सकें.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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