यूपी में बंगाल वाली गलती दोहरा कर अखिलेश यादव अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे हैं!
यूपी के विकास में पिछले साल विधानसभा चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल में जो हुआ था, उससे काफी समानता है. हालांकि बंगाल के विषय में दिलचस्प ये है कि, पलायन ममता बनर्जी और टीएमसी के लिए सेफ्टी वॉल्व साबित हुआ था.
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बीते सोमवार पंचायत आजतक में बोलते हुए, समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेता चुनावी टिकट के लिए उनके या उनके सहयोगियों के पास पहुंच रहे हैं. अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के सदस्यों और सहयोगियों को एक सलाह दी है की वे सदस्यता फॉर्म अपने पास रखें और जब कोई भाजपा नेता आपके पास आए, तो उसे समाजवादी पार्टी में नामांकित करें. मंगलवार को अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य का समाजवादी पार्टी में स्वागत करते हुए एक ट्वीट पोस्ट किया. मौर्य उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार में एक प्रभावशाली मंत्री और एक शक्तिशाली भाजपा नेता थे.
मौर्य उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में, चार सालों यानी 2012-16 तक अखिलेश यादव सरकार की नीति का विरोध करने के बाद, 2016 में भाजपा में शामिल हुए थे.
भाजपा नेताओं को सपा में जोड़कर बड़ी गलती कर रहे हैं अखिलेश
कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के चार अन्य विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं वे हैं रोशन लाल वर्मा, बृजेश प्रजापति, भगवती सागर और विनय शाक्य. अखिलेश यादव ने उनका नाम नहीं लिया, लेकिन उन्हें 'अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों' के रूप में संबोधित किया, जिन्होंने कहा कि उन्होंने ( भाजपा नेताओं ने) समाजवादी पार्टी में जाने का फैसला किया.
सामाजिक न्याय और समता-समानता की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नेता श्री स्वामी प्रसाद मौर्या जी एवं उनके साथ आने वाले अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का सपा में ससम्मान हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन! सामाजिक न्याय का इंक़लाब होगा ~ बाइस में बदलाव होगा#बाइसमेंबाइसिकल pic.twitter.com/BPvSK3GEDQ
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) January 11, 2022
हालांकि, देर शाम विनय शाक्य की बेटी ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश पोस्ट कर सरकार से उसके पिता का पता लगाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की, दिलचस्प ये कि शाक्य की बेटी का आरोप है कि विनय शाक्य को जबरदस्ती लखनऊ ले जाया गया.
संयोग से, स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य, जो भाजपा नेता और लोकसभा सांसद हैं, ने दावा किया कि उनके पिता समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं हुए थे. बुधवार सुबह तक स्वामी प्रसाद मौर्य और चार अन्य नेताओं की स्थिति स्पष्ट नहीं रही.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से एक महीना पहले स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे को भाजपा के लिए एक बड़ा झटका बताया, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने महाराष्ट्र में राजनीतिक आधार के साथ दावा किया कि कम से कम 13 अन्य विधायक आने वाले समय में भाजपा से समाजवादी पार्टी का रुख करेंगे. पवार ने कहा था कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश के चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करेगी.
समाजवादी पार्टी के एक अन्य सहयोगी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के ओम प्रकाश राजभर ने भी अभी बीते दिन पंचायत आज तक को बताया था कि भाजपा नेता विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की मांग कर रहे हैं.
बंगाल गाइड
विकास और दावे में पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में जो हुआ, उससे आश्चर्यजनक समानता है. बंगाल में, भाजपा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को चुनौती दे रही थी और एक हाई पिच इलेक्शन कैम्पेन का नेतृत्व कर रही थी.
भाजपा ने ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को भांपते हुए टीएमसी के नेताओं को पार्टी में शामिल करने की झड़ी लगा दी. भाजपा इस हद तक अन्य नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराने की होड़ में चली गई कि इसका असर पार्टी कैडर पर हुआ. कई जगहों पर इसका विरोध भी देखने को मिला.
140 से अधिक टीएमसी नेता भाजपा में शामिल हुए जिसमें 35 से ज्यादा विधायक शामिल थे. बंगाल में कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी से भी मौजूदा विधायक भाजपा में आए.
कुल मिलाकर, भाजपा ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में 19 टर्नकोट विधायकों को मैदान में उतारा. उनमें से केवल छह ही भाजपा के लिए अपनी सीटें जीत सके. उनमें से चार टीएमसी के पूर्व नेता सुवेंदु अधिकारी, मिहिर गोस्वामी, पार्थ सारथी चटर्जी, बिस्वजीत दास थे. तापसी मदल ने माकपा से भाजपा में और कांग्रेस से सुदीप मुखर्जी ने भाजपा में प्रवेश किया था.
कई दिग्गज नेता बंगाल चुनाव हार गए. उनमें राजीव बनर्जी, रवींद्रनाथ भट्टाचार्य, सब्यसाची दत्ता और सुभ्रांशु रॉय शामिल थे, जिनके पिता मुकुल रॉय ने भाजपा के लिए बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन अपने बेटे के साथ टीएमसी में लौट आए. बिस्वजीत दास भी टीएमसी में शामिल हुए थे.
सत्ता विरोधी लहर विपक्ष के खिलाफ काम कर रही है
टीएमसी से भाजपा में पलायन को उस पार्टी के पक्ष में एक लहर के रूप में देखा गया जो बंगाल में ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल करना चाहती थी. हालांकि, बाद में ऐसा प्रतीत हुए कि इसने ममता बनर्जी और उनकी टीएमसी के लिए सुरक्षा वाल्व के रूप में काम किया है.
टीएमसी से लेकर बीजेपी तक के नेताओं के जन आंदोलन ने ममता बनर्जी को अपनी सरकार और पार्टी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का बड़ा हिस्सा गिराने में मदद की. ध्यान रहे मतदाता अपने स्थानीय प्रतिनिधियों के खिलाफ ज्यादा शिकायत करते हैं और राजधानी से चलाई जा रही सरकार के खिलाफ कम.
बीजेपी ने अनजाने में टीएमसी नेताओं को शामिल करके सत्ता विरोधी लहर को आकर्षित किया, जिनमें से कई मौजूदा विधायक थे और फिर उन्हें उन्हीं मतदाताओं के बीच प्रचार करने के लिए मैदान में उतारा, जो मौजूदा विधायकों से नाखुश थे.
बंगाल की तुलना उत्तर प्रदेश से क्यों करें
अखिलेश यादव भाजपा नेताओं को शामिल करने की अपनी उत्सुकता के साथ उत्तर प्रदेश में वही गलती कर रहे होंगे जो भाजपा ने बंगाल में की थी. हालांकि उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बंगाल की तुलना में 109 सीटें अधिक हैं. लेकिन विधानसभा के आकार में बंगाल उत्तर प्रदेश के सबसे नजदीक है.
अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी के लिए बंगाल विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश चुनावों के बीच एक और समानता यह है कि दोनों राज्यों में विपक्षी खेमे के पास केवल एक फ़ोर्स है.
बंगाल में, यह भाजपा थी क्योंकि कांग्रेस और माकपा के पास वास्तविक जमीनी समर्थन का अभाव था. उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का सफाया हो गया है और कांग्रेस संगठनात्मक ताकत में कमजोर है. बंगाल में यह मुकाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच था. उत्तर प्रदेश में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच मुकाबला होता दिख रहा है.
बंगाल के टर्नकोट को देखते हुए इस तरह का फैसला अखिलेश यादव के लिए राजनीतिक रूप से बुद्धिमान साबित हो सकता है, जबकि भाजपा को वही सहजता महसूस हो सकती है जो टीएमसी ने मतदाताओं के बीच कम या कोई सत्ता विरोधी भावनाओं के साथ नए चेहरों की घोषणा करने में महसूस की थी.
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