ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में बीजेपी की बेबसी के पीछे कहानी क्या है
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव 14 मई को होंगे ही, अभी फाइनल नहीं है. अब तक एक ही बात पक्की है कि टीएमसी को एक तिहाई सीटें निर्विरोध हासिल हो चुकी हैं - और बीजेपी उम्मीदवार खुद को दहशत में जीते पा रहे हैं.
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बीजेपी अपना स्वर्णिम काल तब तक मानने को तैयार नहीं है जब तक पश्चिम बंगाल और ओडिशा में उसकी सरकार नहीं बन जाती. ओडिशा में तो पैंतरेबाजी चल ही रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में बीजेपी बड़ी ही बेबस नजर आ रही है.
पंचायत चुनाव की तारीख अभी पक्की भी नहीं हो पायी है कि ममता बनर्जी की टीएमसी का एक तिहाई सीटों पर कब्जा हो चुका है. बीजेपी कार्यकर्ताओं के टीएमसी ज्वाइन करने की भी खबरें आ रही हैं - लेकिन उनके चेहरे मन की बात साफ तौर पर बयां कर रहे हैं.
बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले
पिछले दो दिनों में बीजेपी के दो उम्मीदवारों के घर में घुस कर हमले की घटना सामने आयी है. हमले का आरोप टीएमसी कार्यकर्ताओं पर लगा है. आरोप है कि टीएमसी कार्यकर्ता बीजेपी उम्मीदवारों पर नामांकन वापस लेने का दबाव डाल रहे हैं.
आरोपों के घेरे में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी
हावड़ा से बीजेपी उम्मीदवार हेमंत छोरी का आरोप है कि टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उनके घर में घुस कर उन्हें पीटा और तोड़ फोड़ भी की. हेमंत ने बताया कि उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी है.
इसी तरह, इससे पहले नाडिया में बीजेपी उम्मीदवार ने टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हमले और बदसलूकी के आरोप लगाये थे. नाडिया से बीजेपी उम्मीदवार का आरोप है, 'कुछ टीएमसी कार्यकर्ता मेरे घर में घुस आये और मेरी एक रिश्तेदार का यौन उत्पीड़न की किया... वे मुझे नामांकन वापस लेने की धमकी भी दे रहे थे.'
बीजेपी उम्मीदवार का आरोप है कि हमलावरों ने उनके पैसे और गहने भी लूट लिये. शिकायत मिलने पर पुलिस ने हमले की शिकार महिला को अस्पताल पहुंचा दिया.
चेहरे पर 'मन की बात'
अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ ने बीरभूम में छह बीजेपी उम्मीदवारों के टीएमसी ज्वाइन करने की खबर के साथ एक तस्वीर भी प्रकाशित की है. थोड़ा गौर करने पर इनके मन की बात को इनके चेहरे पर साफ तौर पर पढ़ा जा सकता है. हालांकि, अखबार के रिपोर्टर से बातचीत में इन लोगों ने किसी तरह के दबाव से इंकार किया है. बल्कि, इनका कहना है कि ममता बनर्जी के विकास के काम से उत्साहित होकर ये टीएमसी ज्वाइन कर रहे हैं.
चेहरे पर 'मन की बात' [फोटोः द टेलीग्राफ से साभार]
वैसे रिपोर्टर से बातचीत में बीजेपी के जिला प्रमुख रामकृष्ण रॉय कहते हैं, 'टीएमसी और पुलिस की ओर से लगातार धमकियां मिल रही थीं. उम्मीदवारों को नामांकन वापस लेने के लिए जबरन मजबूर किया गया.' इसी तरह सीपीएम नेताओं का भी कहना है कि तृणमूल की धमकियों के चलते उनके ज्यादातर उम्मीदवारों को नामांकन वापस लेना पड़ा.
सिर्फ बीजेपी ही नहीं सीपीएम और कांग्रेस सभी का टीएमसी पर एक जैसा ही आरोप है. ये विपक्षी दल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के साथ ही सड़कों पर भी उतर रहे हैं. वाम मोर्चा ने पिछले ही महीने टीएमसी के आतंक के खिलाफ छह घंटे का बंद भी बुलाया था.
आरोप प्रत्यारोप की खबरें कोई नयी नहीं हैं, लेकिन एक बात तो साफ है कि टीएमसी को इसका सीधा फायदा मिल रहा है. हालत ये है कि 58,692 सीटों में से 20,076 सीटों पर टीएमसी के उम्मीदवार निर्विरोध जीत हासिल कर चुके हैं. इस तरह देखा जाये तो टीएससी का 34.2 फीसदी सीटों पर कब्जा हो चुका है.
2003 में सत्ता में रहते वाम मोर्चा ने 11 फीसदी सीटें जीती थी - और दस साल बाद जब टीएमसी सत्ता में आ चुकी थी तब भी उसने दस फीसदी सीटें निर्विरोध जीती थीं.
इतना कुछ होने के बाद भी अभी तय नहीं हो पाया है कि 14 मई को पंचायत चुनाव होंगे ही - और जब चुनाव तय नहीं तो 17 मई को नतीजे आने का सवाल ही कहां पैदा होता है. आगे की सारी बातें अब हाई कोर्ट के हिसाब से होनी हैं - तब तक टीएमसी बाकी बची दो तिहाई सीटों को साधने में जुटी हुई है.
मालूम नहीं ममता बनर्जी को छोड़ कर बीजेपी में आये मुकुल रॉय कोई चमत्कार नहीं दिखा पा रहे हैं - जबकि संगठन में अपनी पकड़ के लिए ही वो जाने जाते रहे हैं. ये सही है कि टीएमसी कार्यकर्ताओं पर मुकुल रॉय का कोई असर नहीं होने वाला लेकिन उनके पास कोई काउंटर स्ट्रैटेजी तो जरूर होगी - या ममता बनर्जी ने उसे भी बेअसर कर दिया है.
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