हरियाणा में BJP ने हार कर जो हासिल किया वो जीत कर मुश्किल था
हरियाणा में बीजेपी का बहुमत से दूर रह जाना इस हिसाब से तो बहुत ही बढ़िया रहा कि उसे जाट समुदाय से कनेक्ट होने का मौका मिल गया. देखा जाये तो गठबंधन में JJP के मुकाबले ज्यादा फायदा BJP को हो रहा है.
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हरियाणा में जब सरकार बनने की कवायद चल रही थी तभी खबर आयी कि जम्मू-कश्मीर से गवर्नर सत्यपाल मलिक का गोवा ट्रांसफर कर दिया गया है. मगर, ये बात कम ही लोगों को मालूम थी कि सरकार बनने की जो कवायद चल रही है उसमें भी गोवा कनेक्शन है.
हरियाणा सरकार पर बीजेपी और जेजेपी के बीच बातचीत फाइनल होने से पहले तो पूरे दिन किंगमेकर गोपाल कांडा ही बने रहे. निर्दलीय विधायकों के साथ दिल्ली कूच की उनकी तस्वीर मीडिया और सोशल मीडिया पर छायी हुई थी - साथ में गीतिका शर्मा केस में उनके ऊपर लगे आरोप भी उनके नाम के साथ ट्रेंड कर रहे थे.
बताते हैं कि गोपाल कांडा ने जिस नेता के जरिये बीजेपी में ऊपर तक पहुंच बनाने की कोशिश की वो कोई और नहीं बल्कि गोवा बीजेपी अध्यक्ष विनय तेंदुलकर रहे - जिनके जरिये गोपाल कांडा ने बीजेपी को बिना शर्त समर्थन ऑफर किया था.
बीजेपी नेतृत्व खामोशी के साथ लोहा गर्म होने का इंतजार करता रहा. बदलते समीकरणों के बीच जाटों के नये नेता के तौर पर उभरे दुष्यंत चौटाला के कर्नाटक वाले कुमारस्वामी बनने की कवायद भी धीरे धीरे दम तोड़ चुकी थी - और जैसे ही बीजेपी के साथ बात आगे बढ़ी अमित शाह की मुहर लगी और बात पक्की हो गयी.
जो हुआ वो भी और जो नहीं हुआ वो भी - बीजेपी के लिए अच्छा हुआ
24 घंटे पहले बीजेपी बहुमत के लिए जूझ रही थी. फिर एक साथ दो-दो सपोर्ट सिस्टम सामने खड़े हो गये कि वो अपनी मर्जी से चुन सके कि किसके साथ जाना है. एक तरफ निर्दलीय थे जिनके साथ दोबारा सरकार बनायी जा सकती थी, दूसरी तरफ वो सपोर्ट बेस रहा जिसकी कमी बीजेपी शिद्दत से कर रही थी - जैसे ही ये मौका मिला बीजेपी खुशी खुशी हां कर दी.
हरियाणा में बीजेपी ने गैर-जाट राजनीति को लेकर प्रयोग किये और सफल रही. पांच साल सरकार भी चला लिया, लेकिन जाट राजनीति से दूरी उसे अंदर ही अंदर साल भी रही थी. विधायकों की संख्या 40 पहुंचते पहुंचते रुक जाने के बाद तो बीजेपी नेतृत्व ने ही मान ही लिया होगा कि हरियाणा में बगैर जाटों के समर्थन के खड़े होने की जमीन तो मिल सकती है, लेकिन लंबे समय तक टिके रहना मुश्किल है.
बीजेपी खुशकिस्मत रही ही जाट वोट एक साथ एक जगह नहीं पड़े. कुछ कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा की तरफ खिंचे और कुछ देवीलाल परिवार के नये चिराग जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला की ओर हो गये. बीजेपी के लिए काम आसान हो गया.
JJP ने पहले से ही तय कर लिया था बाहर से समर्थन का कोई मतलब नहीं है. कई विधायकों के बीजेपी के सपोर्ट की सलाह से भी दुष्यंत चौटाला को पार्टी के भीतर राजनीतिक रूख समझ आ चुका था.
गठबंधन में फायदे का पलड़ा बीजेपी की तरफ ज्यादा भारी है...
मीडिया के जरिये दुष्यंत चौटाला सभी संबंधित पक्षों को मैसेज देने की लगातार कोशिश भी कर रहे थे. मसलन, बताया कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उन्हें अधिकृत किया है कि जो भी दल 'कॉमन मिनिमम प्रोग्राम' के तहत वृद्धा पेंशन, क्राइम कंट्रोल, युवाओं को रोजगार और पेंशन के लिए तैयार हो पार्टी सरकार बनवाने में मददगार बने.
दुष्यंत चौटाला की ओर से बीजेपी के सामने शर्त रखी गयी कि जेजेपी को डिप्टी सीएम का पद चाहिये और साथ में तीन मंत्री पद भी. बीजेपी को इसमें को कोई दिक्कत नहीं दिखी और दोनों ही शर्तें मान ली गयीं. सब कुछ तय होते ही अमित शाह सबके साथ सामने आये और बीजेपी-जेजेपी की गठबंधन सरकार बनाये जाने के फैसले का ऐलान कर दिया.
जेजेपी के साथ गठबंधन हो जाने के बाद हरियाणा से जुड़े बीजेपी के रणनीतिकार बड़ी राहत महसूस कर रहे होंगे - सिर्फ इस बात के लिए नहीं कि चलो सरकार हाथ से फिसलते फिसलते बच गयी - बल्कि इसलिए कि बड़ा मौका हाथ लग गया.
अब तक हरियाणा में पांच साल सरकार बनाने के बाद भी जाट राजनीति से कटी बीजेपी अब कह सकती है कि सूबे में भी वो 'सबका साथ और सबका विकास' के लिए तो काम करेगी ही - अब तो उसे 'सबका विश्वास' भी हासिल है.
ये रणनीतिक और दूरगामी सोच वाला गठबंधन है
ये दूरगामी सोच के साथ एक रणनीतिक गठबंधन बना है. तात्कालिक तौर पर तो यही लगता है कि बीजेपी और जेजेपी दोनों को एक-दूसरे की जरूरत रही और वे एक-दूसरे के पूरक बने हैं और आगे भी बने रहेंगे.
ये ठीक है कि दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला जेल में हैं और नयी पारी की बातचीत शुरू करने से पहले वो तिहाड़ मिलने भी गये थे. ये भी ठीक है कि दुष्यंत चौटाला के दादा ओम प्रकाश चौटाला भी जेल में हैं - लेकिन सच ये है कि हरियाणा के लोगों ने दुष्यंत चौटाला के हाथों में वो विरासत सौंप दी है जिसकी बुनियाद देश के उप प्रधानमंत्री रहे चौधरी देवीलाल ने कभी रखी थी.
सवाल है कि ये गठबंधन कितना टिकाऊ होगा?
किसी को भी शक की गुंजाइश फिलहाल तो नहीं होगी कि ये गठबंधन ज्यादा नहीं चलने वाला क्योंकि ये कोई बीजेपी और पीडीपी जैसे दो विपरीत ध्रुवों का गठबंधन नहीं है. गठबंधन इस बात पर टिकता है कि दोनों को पक्षों को एक दूसरे की जरूरत कितनी है. जैसे बिहार में बीजेपी और जेडीयू का गढबंधन. एक बात और भी इधर देखने को मिला है वो ये कि बीजेपी किसी भी सूरत में गठबंधन के साथियों को दूर नहीं जाने देना चाहती. आम चुनाव में शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना के साथ ये बात देखने को मिली थी - और अभी अभी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी का एक तबका ये चाहता था कि शिवसेना से गठबंधन का क्या फायदा जब पार्टी अपने बूते चुनाव जीत कर सरकार बनाने में सक्षम है.
लेकिन बीजेपी ने शिवसेना के साथ मिल कर चुनाव लड़ने के फैसले पर कायम रही - और आगे बढ़ी. हरियाणा में जेजेपी और बीजेपी के गठबंधन में तात्कालिक तौर पर कोई मुश्किल नहीं नजर आ रही - हां, ताकत बढ़ने के साथ कब मूड बदल जाये कैसे कहा जा सकता है.
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