राहुल के आरोपों की बोफोर्स में ओलांद का गोला भी फुस्स ही है
बेशक बीजेपी राफेल डील पर घिरी हुई है. फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद तो ज्यादा बुरी तरह घिरने लगी है. बीजेपी भाग्यशाली है कि उसके अंदर कोई वीपी सिंह नहीं है - और विपक्ष अब भी बिखरा हुआ है.
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राफेल सौदा भी राजनीतिक रूप से बोफोर्स जैसा ही हो चला है, बस किस्मत की बात है कि बीजेपी सरकार में कोई वीपी सिंह नहीं है. अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा जैसे कुछ नेता जरूर मोदी सरकार की खिंचायी कर रहे हैं, लेकिन वो सब मिसफायर हो जा रहा है क्योंकि अब उनकी कोई हैसियत नहीं बची है. हैसियत से आशय कम से कम इतना असर तो हो कि अगर वे कुछ बोलें तो सरकार में बैठे लोगों में मन में सिहरन उठने लगे.
राफेल डील को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन घूम फिर कर वो बार बार प्रधानमंत्री मोदी पर फोकस हो जा रहे हैं, इसीलिए बैकफायर की पूरी गुंजाइश हमेशा बन रह जाती है.
चुनाव अभियान में राहुल का जोर राफेल पर ही है और जगह जगह वो लोगों से नारे लगवा रहे हैं - 'चौकीदार चोर है...', तो अरुण जेटली ब्लॉग लिख कर राहुल गांधी को झूठा और मूर्ख राजकुमार साबित करने में लगे हुए हैं.रहे हैं.
राजनीति में बोफोर्स जैसा ही है राफेल का मुद्दा
राफेल को लेकर फ्रांसीसी मीडिया में पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का बयान आने के बाद सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्ष के ज्यादातर नेता आक्रामक हो गये हैं. चौतरफा हमले को देखते हुए बीजेपी को रक्षात्मकर रूख अपनाने पड़ रहे हैं.
देश जानना जरूर चाहता है...
राफेल पर अरविंद केजरीवाल के ट्वीट के पीछे मंशा भले ही सर्जिकल स्ट्राइक जैसी ही हो, सौ टका टंच सवाल पूछा है - 'सच में, देश जरूर जानना चाहता है.'
प्रधान मंत्री जी सच बोलिए। देश सच जानना चाहता है। पूरा सच।
रोज़ भारत सरकार के बयान झूठे साबित हो रहे हैं। लोगों को अब यक़ीन होने लगा है कि कुछ बहुत ही बड़ी गड़बड़ हुई है, वरना भारत सरकार रोज़ एक के बाद एक झूठ क्यों बोलेगी? https://t.co/gR9pWoqgnZ
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 21, 2018
आखिर सच क्या है? राफेल का सच क्या है? सच सिर्फ राफेल का ही नहीं, देश जानना तो बोफोर्स का भी सच चाहता है. जांच के नाम पर जो कुछ हुआ, हासिल तो शून्य ही रहा. क्या राफेल के साथ भी यही होने जा रहा है?
सच को सामने लाने या छुपाने का इरादा जिस किसी की ओर से भले ही हो रहा हो, कामयाबी की साजिश तो पूरी कायनात मिल कर रच रही है और इसमें कोई शक भी नहीं है.
मित्रों, राफ़ेल सौदे के घालमेल और तालमेल की सही जानकारी 125 करोड़ देशवासियों को मिलनी चाहिए कि नहीं? मिलनी चाहिए की नहीं?
अगर पूँजीपति मिलनसार प्रधानमंत्री गुनाहगार व भागीदार नहीं है और ईमानदार चौकीदार है तो सच बताने में डर काहे का??#ModiRafaleLiesExposed
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) September 21, 2018
मंशा तो राहुल गांधी की भी केजरीवाल की तरह सियासी ही है, लेकिन वो सवाल नहीं पूछ रहे हैं, आखिर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के रूप में एक मजबूत गवाह जो हाथ लग गया है. राहुल गांधी का इल्जाम है कि मोदी सरकार ने अनिल अंबानी की डूबती नाव को बचाने के लिए देश को धोखा दिया है.
The PM and Anil Ambani jointly carried out a One Hundred & Thirty Thousand Crore, SURGICAL STRIKE on the Indian Defence forces. Modi Ji you dishonoured the blood of our martyred soldiers. Shame on you. You betrayed India's soul. #Rafale
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 22, 2018
फ्रांस्वा ओलांद के बयान से राजनीति में भूकंप
भारत में फ्रांस्वा ओलांद के बयान से वैसा ही भूकंप आया है जैसा राहुल गांधी अपनी बातों से आने का दावा करते रहे हैं. फ्रांसीसी मीडिया के जरिये फ्रांस्वा ओलांद का एक बयान सामने आया है जिसमें वो कहते हैं - "राफेल विमान बनाने के ₹ 58 हजार करोड़ के समझौते के लिए भारत सरकार ने ही रिलायंस डिफेंस का नाम सुझाया था और फ्रांस के पास इस मामले में कोई विकल्प था ही नहीं.
एक बयान से भूकंप आ सकता है...
फ्रांस्वा ओलांद के बयान से मचे बवाल के बीच फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर सफाई दी है कि राफेल डील में कंपनी के चुनाव में सरकारों का कोई रोल नहीं है. फ्रांस सरकार के बयान से बीजेपी सरकार को बल मिला है, विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर सरकार की तरफ से सफाई दे रहे हैं.
French govt has again clarified as has Dassault that governments have played no part in any private sector decision. Culture of lies begun by Congress is simply mischief at cost of national security
— M.J. Akbar (@mjakbar) September 22, 2018
अब फ्रांस की मौजूदा सरकार ने फ्रांस्वा ओलांद के बयान से खुद को अलग कर लिया है. फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, "फ्रांस की सरकार किसी भी तरह से भारतीय औद्योगिक साझीदारों के सेलेक्शन में शामिल नहीं है..."
मगर, क्या विपक्ष से हो पाएगा?
अब अगर देखा जाये तो फ्रांस की सरकार भी वही बातें कर रही है जो यहां मोदी सरकार कर रही है. फ्रांसीसी सरकार के बयान से तो ऐसा लगने लगा है कि पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ही झूठ बोल रहे हैं.
बरसों बाद भी बोफोर्स चर्चा में बना हुआ है...
बोफोर्स केस खत्म हो चुका हो, ऐसा नहीं बिलकुल नहीं है. सीबीआई ने बोफोर्स केस दोबारा खोलने के लिए अदालत में अर्जी दी है. तीस हजारी कोर्ट में जुलाई में ही इस केस की सुनवाई होनी थी, लेकिन जरूरी दस्तवाजे सुप्रीम कोर्ट में होने के चलते ऐसा नहीं हो सका. अब 28 सितंबर को बोफोर्स केस पर सुनवाई होनी है.
वैसे कोर्ट ने सीबीआई को साफ कर दिया है कि पहले केस से जुड़े रिकॉर्ड और दस्तावेज पेश होंगे, फिर अगर जरूरी लगा तभी केस फिर से ओपन होगा. बड़ा सवाल यही है कि इतने बरस बाद सीबीआई के हाथ ऐसा कौन सा सबूत हाथ लगा है वो बोफोर्स केस को फिर से खुलवाना चाहती है?
राहुल गांधी सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट जरूर कर रहे हैं - मगर उसका कितना असर होगा चुनाव नतीजे ही बता पाएंगे.
इसमें कोई शक नहीं है कि बीजेपी राफेल डील पर घिर चुकी है. फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद तो और भी बुरी तरह घिरने लगी है. बीजेपी भाग्यशाली है कि उसमें कोई वीपी सिंह नहीं है - और विपक्ष अब भी बिखरा हुआ है.
राहुल गांधी के लिए ये बेहतरीन मौका है. अगर राहुल गांधी ने राफेल को राजनीतिक तौर पर साध लिया तो सत्ताधारी बीजेपी की नाक में दम कर सकते हैं, लेकिन ऐसा मुश्किल लगता है. महागठबंधन तो एक औपचारिक चुनावी समझौता है, अगर कांग्रेस विपक्ष के साथ मिल कर सिर्फ राफेल को बोफोर्स बनाने में जुट जाये, फिर तो महागठबंधन अपनेआप बन जाएगा. वास्तव में बीजेपी किस्मतवाली है जो ऐसा कुछ हकीकत में होता हुआ नहीं लगता.
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