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Updated: 28 अगस्त, 2018 02:55 PM
अभिनव राजवंश
अभिनव राजवंश
  @abhinaw.rajwansh
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राफेल डील के कथित घोटाले को उजागर करने के लिए कांग्रेस अब काफी आक्रामक तरीके से केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश में लग गयी है. कांग्रेस की योजना के अनुसार कांग्रेस के तमाम बड़े नेता 25 अगस्त से देश के अलग अलग भागों में 100 के करीब प्रेस कॉन्फ्रेंस की मदद से लोगों को राफेल डील में हुई गड़बड़ियों को जनता के सामने लाएंगे. इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए राहुल गाँधी ने बकायदा एक 6 सदस्यीय टास्क फोर्स का भी गठन किया है. कांग्रेस के सीनियर नेता जयपाल रेड्डी के नेतृत्व में इस टास्क फोर्स में अर्जुन मोढवाडिया, शक्ति सिंह गोहिल, प्रियंका चतुर्वेदी, जयवीर शेरगिल और पवन खेड़ा शामिल है.

योजना के अगले चरण के अनुसार कांग्रेस देश के सभी जिला और प्रांतीय मुख्यालयों में भी धरना प्रदर्शन करेगी. कांग्रेस ने जिला स्तर के प्रदर्शन पर नजर रखने के लिए दिल्ली मुख्यालय में अलग से कण्ट्रोल रूम भी बनाया है. लगभग एक महीने तक चलने वाले इस कार्यक्रम में कांग्रेस केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने के लिए पूरी घेराबंदी करती नजर आ रही है.

हालाँकि यह पहला मौका नहीं है जब राहुल गाँधी और कांग्रेस ने इस मुद्दे को इतना जोर शोर से उठाया हो. इससे पहले राहुल गाँधी ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी राफेल के मुद्दे पर केंद्र सरकार पर अनिमियता के आरोप लगाए थे. राहुल के आरोपों के अनुसार राफेल डील में उनकी सरकार ने 520 करोड़ रुपये प्रति प्लेन में डील की थी, मगर वर्तमान में यह कीमत 1600 करोड़ प्रति प्लेन हो गई. राहुल ने सरकार पर अनिल अम्बानी की कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने का भी आरोप लगाया था. हालाँकि सरकार ने राहुल गाँधी के तमाम आरोपों का खंडन किया था, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि जब कांग्रेस की सरकार थी उस समय तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने फ्रांस की सरकार के साथ सीक्रेसी अग्रीमेंट्स किया था, जिसके कारण राफेल डील की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती.

rahul gandhiराहुल गांधी ने राफेल के लिए किया 6 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन 

संसद के अलावा भी राहुल गाँधी और अन्य कांग्रेसी नेता राफेल डील को लेकर काफी हमलावर रहे हैं. और राफेल के कथित घोटाले को उजागर करने के लिए बनाये गए टास्क फोर्स के गठन के बाद यह साफ हो गया है कांग्रेस इस मुद्दे को इतना बड़ा बनाना चाहती है. जिससे 2019 की चुनावी वैतरणी पार की जा सके. कांग्रेस शायद यह उम्मीद कर रही है कि यह मुद्दा इतना बड़ा हो जाये जितना 80 के दशक में बोफोर्स तोपों की खरीद का मामला हो गया था. यह बोफोर्स घोटाला ही था जिसने राजीव गाँधी को सत्ता से बाहर कर दिया था. 1984 के चुनावों में राजीव गाँधी रेकॉर्ड तोड़ बहुमत के साथ सत्ता में आये थे मगर 1989 में बोफोर्स घोटाले के आरोपों ने सरकार की छवि को इतना नुकसान पहुंचाया कि अगले ही चुनावों में राजीव गाँधी सत्ता से बाहर हो गए. राजीव गाँधी के बाद प्रधानमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उस दौरें बोफोर्स के मुद्दे को जमकर भुनाया था.

हालांकि राहुल गाँधी इस दौर में ऐसा कुछ कर पाएं इसकी सम्भावना कम ही नजर आती है. एक तो राहुल गाँधी और कांग्रेस जो आरोप सरकार पर लगा रहे हैं वो बहुत ही सतही लगते हैं. सतही इसलिए भी क्योंकि राफेल की जो नयी डील हुई है उसके बारे में बहुत जानकारी सरकार ने अभी तक दी नहीं है. ऐसे में सरकार की तरफ से यह तर्क दिया जा सकता है कि कोई गोपनीय क्लॉज़ होने के कारण सरकार इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दे रही, जो अब तक सरकार करती भी आ रही है. कांग्रेस के लिए जो दूसरी और असल परेशानी की बात है वो यह है कि भले ही एनडीए सरकार को सत्ता में आये चार साल से ज्यादा का समय हो गया है, मगर फिर भी भारतीय जनता यूपीए शासन काल के घोटाले को ही याद करती है. खुद राहुल गांधी भी अब तक ऐसी छवि नहीं बना पाए हैं जिससे लोग उनकी बातों पर आंख मूंदकर विश्वास कर लें.

कांग्रेस के लिए मुसीबत इस बात की भी है कि उनकी सीधी टक्कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है, जो देश के सबसे लोकप्रिय नेता के साथ ही अपने संवादों से जनता से सीधे जुड़ने की कला को जानते हैं. ऐसे में यह संभव नहीं लगता कि कांग्रेस राफेल मुद्दे पर बहुत वोट बटोर ले. हालांकि यह भी सही है कि भारतीय राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं कहा जा सकता, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल की यह रणनीति कितनी कारगर होती है और भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के इस अभियान से निपटने के लिए क्या कुछ करती नजर आ सकती है.

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अभिनव राजवंश अभिनव राजवंश @abhinaw.rajwansh

लेखक आज तक में पत्रकार है.

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