ED के आगे मोदी को देश के वोटर का योगदान फीका क्यों लगता है?
संसद में राहुल गांधी को टारगेट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की भूमिका को देश की जनता (Indian Voter) से भी बेहतर बताया है - क्या वो सवाल उठने वाले ईडी के एक्शन को एनडोर्स कर रहे हैं?
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आखिर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ऐसी कौन सी उपलब्धि है, जिसके आगे देश का वोटर बौना नजर आने लगा है - संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का भाषण सुनने के बाद तो कुछ कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है.
हो सकता है, कुछ लोगों को इस बात में कुछ भी गलत नहीं लगा हो. लेकिन ऐसा भी तो नहीं कि हर किसी की सोच एक जैसी ही हो! हो सकता है, कुछ लोग सुन कर नजरअंदाज कर दिये हों. हो सकता है, कुछ लोगों को समझ में नहीं आया हो - ये भी तो हो सकता है कि कुछ लोग समझना ही नहीं चाहते हों. ऐसे अलग अलग लोग हो सकते हैं, और ऐसे अलग अलग सोचने का भी सबको हक हासिल है. ये हमारे संविधान और लोकतंत्र की खूबसूरती है.
अव्वल तो प्रधानमंत्री मोदी के निशाने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी रहे, लेकिन बातों बातों में ही वो प्रवर्तन निदेशालय के बारे में बोल पड़े, "जो काम देश के मतदाता (Indian Voter) नहीं कर सके वो काम ईडी ने कर दिया."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बात तब कही जब वो बजट सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब दे रहे थे. ये तो औपचारिक बातें हुईं, असल में तो वो कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अदानी ग्रुप के कारोबार से जुड़े सवालों का जवाब दे रहे थे - ये बात अलग है कि मोदी ने राहुल गांधी का नाम तक नहीं लिया, और गौतम अदानी के नाम लेने की कौन कहे, ऐसा तो बिलकुल भी नहीं लगा कि वो कांग्रेस नेता के सवालों की परवाह करते हैं.
मोदी का पूरा भाषण सुन कर तो ऐसा ही लगा जैसे वो रेडियो की जगह लाइव टीवी पर मन की बात कह रहे हों - या फिर चुनावी साल में एक साथ कई रैलियां संबोधित कर रहे हों. बातें तो करीब करीब वैसी ही रहीं, जैसी वो राजस्थान दौरे में कह रहे हैं या त्रिपुरा में कह चुके हैं या फिर कर्नाटक जाने पर फिर से कहेंगे - देश भर में अपनी तरफ से करीब करीब सफल कांग्रेस मुक्त अभियान चलाने के बाद भी ये पार्टी ऐसी है कि मन से उतरती ही नहीं है.
असल में कांग्रेस वो कॉनट्रास्ट बन चुकी है जो अब बीजेपी के मैदान में मजबूती से डटे रहने की जरूरी शर्त हो गयी है - और तब तक ऐसा ही रहने वाला है जब तक अरविंद केजरीवाल या वैसा और कोई नेता कांग्रेस या गांधी परिवार की जगह नहीं ले लेता.
आखिर देश के वोटर की तपस्या में क्या कमी रह गयी है जो उसका योगदान मोदी को ईडी के मुकाबले कम लगने लगा है? भारत जोड़ो यात्रा में कुछ दूर तक राहुल गांधी का साथ देने के अलावा देश के लोगों ने ऐसा कोई गुनाह तो किया नहीं है - किया है क्या?
कोई बता सकता है क्या? कोई समझ पा रहा है क्या? कोई समझा सकता है क्या?
मोदी के मुंह से ईडी की तारीफ क्यों?
सरकार कोई भी हो, उसकी तरफ से कहा तो यही जाता है कि पुलिस और जांच एजेंसियां अपने हिसाब से काम करती हैं. लेकिन वक्त और पोजीशन बदलने के साथ ये बातें भी गौण हो जाती हैं - ऐसी बयानबाजी देश की राजनीति में अक्सर ही सुनने को मिलती रही है.
ऐसे मामलों में भी लगता तो यही है, इस जमाने में कब किसी का दर्द अपनाते हैं लोग, रुख हवा का देख कर अक्सर बदल जाते हैं लोग!
क्या देश का वोटर सब कुछ सुन रहा है?
बहुत इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के एक जैसे मामलों में पहले और बाद के बयानों पर फिर से नजर डाल लीजिये, समझना बहुत मुश्किल नहीं है.
अमरावती से निर्दलीय लोक सभा सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति की गिरफ्तारी को लेकर उद्धव ठाकरे और उनके साथी गृह मंत्री की तरफ से यही समझाने की कोशिश रही कि महाराष्ट्र पुलिस बगैर किसी दबाव के अपना काम कर रही है. तब की बाकी बातों को थोड़ी देर के लिए अलग रख दीजिये.
लेकिन उद्धव ठाकरे का नजरिया तब बदल गया जब ईडी के अफसर सदल बल पहुंचे और संजय राउत को उठा ले गये. कुछ देर तक अपने पास रख कर कानूनी कार्रवाई करने के बाद जेल भेज दिये. करीब करीब वैसे ही जैसे उससे पहले उद्धव ठाकरे की तत्कालीन सरकार में एनसीपी कोटे से मंत्री रहे नवाब मलिक को उठा ले गये थे. या एनसीपी नेता अनिल देशमुख को जेल भेज दिया गया था.
पुलिस की कार्रवाई का एक नमूना तो केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी के दौरान भी देखा. वीडियो में देखा गया कि कैसे हाथ में खाने की थाली लिये राणे को पुलिस वाले घसीट रहे थे - क्या तब भी महाराष्ट्र पुलिस अपने हिसाब से ही काम कर रही थी?
ये मोदी ही हैं जो गुजरात के मुख्यमंत्री रहते कहा करते थे कि उनके खिलाफ चुनाव मैदान में सीबीआई उतरी हुई है. अपनी चुनावी लड़ाई को तब वो सीबीआई से मुकाबला बताते रहे - लेकिन अब वही मोदी प्रवर्तन निदेशालय के काम को देश के वोटर के मुकाबले ज्यादा महान समझा रहे हैं!
संसद में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जांच एजेंसियों के कामकाज पर विपक्षी दलों की तरफ से उठाये जा रहे सवालों पर भी अपनी बात काफी जोर देकर कही - एकबारगी ऐसा भी लगा कि सारे राजनीतिक विरोधियों के बजाय वो कांग्रेस और गांधी परिवार की ही बात कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा कि आने वाले दिनों में दुनिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में इस बात पर रिसर्च और स्टडी होगी कि कांग्रेस की बर्बादी कैसे हुई - और उसी फ्लो में आगे बढ़ते हुए मोदी कहते हैं, "इन दलों को ईडी का धन्यवाद करना चाहिये... क्योंकि, उसकी वजह से ये सभी दल एक मंच पर आ गये हैं... एकजुट हो गये हैं.
और फिर मोदी ने बाकायदा समझाया भी, "भ्रष्टाचार के मामले की जांच करने वाली एजेंसियो के बारे में बहुत कुछ कहा गया... और कई लोग उनके सुर में सुर मिला रहे थे... पहले लगता था कि देश की जनता का फैसला... चुनावी नतीजा इन्हें एक मंच पर ला देगा - लेकिन जो काम देश के मतदाता नहीं कर सके वो काम ईडी ने कर दिया."
गजब! ये सुन कर तो देश की जनता का योगदान ईडी के कंट्रीब्यूशन के आगे फीका लगने लगा है - ये देश की जनता ही है जिसने मोदी को सिर आंखों पर बिठा रखा है.
ये देश का वोटर ही है जिसने 2014 से भी ज्यादा लोक सभा सीटों के साथ 2019 में भी मोदी के नाम पर बीजेपी को केंद्र की सत्ता सौंप दी.
ये देश का वोटर ही है जिसने राहुल गांधी के मुंह से 'चौकीदार चोर है' सुनते रहने के बावजूद मोदी की बात पर मोदी का मान रखा - फिर भी ऐसी शिकायत क्यों है कि देश का वोटर ईडी जैसा काम नहीं कर सका?
बीजेपी के कांग्रेस मुक्त और विपक्ष मुक्त भारत अभियान के बाद कहीं मोदी ये तो नहीं चाहते कि देश के लोग भी उनके राजनीतिक विरोधियों के साथ वैसा ही सलूक करें जैसा प्रवर्तन निदेशालय करता है.
क्या भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ लोगों का मिलना-जुलना और साथ साथ चलना, प्रधानमंत्री मोदी को नागवार गुजरा है? क्या वो चाहते हैं कि गांधी परिवार के साथ बिलकुल वैसा ही व्यवहार होना चाहिये जैसा प्रवर्तन निदेशाल कर रहा है?
ईडी के एक्शन पर अदालतों में भी उठा है सवाल
एजेंसियां भी नहीं बदली हैं और उनके एक्शन भी नहीं बदले हैं. सत्ता पक्ष का राजनीतिक विरोधी पहले भी उनका पसंदीदा शिकार हुआ करता था, अब भी पसंद बदली नहीं है. अगर एक जमाने में एजेंसी के किसी अफसर ने अमित शाह को गिरफ्तार कर जेल भेजा तो एक दौर ऐसा भी आया जब अफसरों की एक टीम ने दीवार से कूद कर पी. चिदंबरम को गिरफ्तार कर लिया - फर्क बस ये रहा कि एजेंसियों ने सत्ताधारी राजनीतक दल के विरोधियों को जेल भेजने की रस्म निभाना नहीं छोड़ा.
ये प्रवर्तन निदेशालय के अफसर ही हैं, जो निजाम बदलते ही राहुल गांधी को बुलाकर घंटों पूछताछ करते हैं. ठीक वैसे ही जैसे उनके बहनोई रॉबर्ट वाड्रा के साथ पहले पेश आ चुके होते हैं. ये प्रवर्तन निदेशालय ही है जो गंभीर रूप से बीमार सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए दफ्तर बुला लेता है.
ये बात गुलाम नबी आजाद जैसे नेता को भी बुरी लगती है और वो एजेंसी के बहाने राजनीतिक नेतृत्व पर सवाल उठाते हैं कि एक बुजुर्ग और बीमार महिला को भी नहीं बख्शा जा रहा है. वो भी तब जबकि वो आगे की राजनीति का फैसला ले चुके होते हैं.
राहुल गांधी के मामले में तो नहीं सोनिया गांधी को बुलाकर पूछताछ करना पूरे विपक्ष को नागवार गुजरता है, और एक ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी किया जाता है. हालांकि, ये ऐसा मामला है जिसमें अदालत का फैसला आने से पहले सही और गलत की पहचान काफी मुश्किल लगती है. क्योंकि, जो बात कांग्रेस और विपक्ष के बहुत सारे नेताओं को ठीक नहीं लगती, ममता बनर्जी उससे जरा भी इत्तफाक नहीं रखतीं - राजनीति में वैसे भी कुछ सही और गलत नहीं होता, सारी चीजें इस बात पर निर्भर करती हैं कि कौन कब और किस छोर पर खड़ा है.
ऐसी भी नहीं है कि ईडी के एक्शन पर सवाल सिर्फ विपक्षी दलों के नेता ही उठाते हैं - देश की अदालतों में भी ऐसे सवाल उठते रहे हैं. हाई कोर्ट में भी और सुप्रीम कोर्ट में भी ईडी को अपने एक्शन के लिए फटकार मिल चुकी है.
पात्रा चाल घोटाले वाला संजय राउत का केस इसी बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने संजय राउत के केस हुई ईडी की कार्रवाई को 'पिक एंड चूज' जैसा मामला पाया है. हाईकोर्ट ने ईडी के कामकाज पर सवाल उठाते हुए संजय राउत की गिरफ्तारी को विच-हंट जैसा माना.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी कहा था कि मामले के बाकी आरोपियों राकेश वाधवान और सारंग वाधवान को गिरफ्तार नहीं किया गया, जबकि कई गवाहों ने दोनों के खिलाफ गवाही भी दी थी. गवाहों के मुताबिक मामले में दोनों आरोपियों की महत्वपूर्ण भूमिका है - जबकि मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में संजय राउत को ईडी ने बगैर कारण गिरफ्तार कर लिया.
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद में दिये गये भाषण में ईडी के एक्शन का जिक्र उनकी तरफ से कोई एनडोर्समेंट है? और क्या ये देश को वोटर का खुल्लमखुल्ला अपमान नहीं है?
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