लालू यादव के आने की आहट भर से विपक्ष की राजनीति में हलचल क्यों है?
लालू यादव (Lalu Yadav) के लौटने का सबसे ज्यादा इंतजार तो बिहार में है, लेकिन विपक्षी खेमे में उनका खास रोल माना जा रहा है - सिर्फ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की ही कौन कहे, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की राजनीति भी इर्द गिर्द ही गुजरने वाली है.
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लालू यादव (Lalu Yadav) को विदा करने से पहले रोहिणी आचार्य ने ट्विटर पर लिखा है, 'पापा को स्वस्थ रखना अब आप सबकी जिम्मेवारी होनी चाहिये.' करीब दो महीने पहले ही लालू यादव की छोटी बेटी रोहिणी आचार्य ने ही पिता को अपनी किडनी डोनेट की है. 5 दिसंबर, 2022 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल में लालू प्रसाद का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था.
तभी से लालू यादव बेटी के यहां रह कर स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे और जब डॉक्टरों की मंजूरी मिली तो लौटने के प्लान किया. पहले से ही सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाली रोहिणी आचार्य ने पिता को भेजने से पहले पिता के साथ दो तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा है, आप सबसे एक जरूरी बात कहनी है... यह जरूरी बात हम सबों के नेता आदरणीय लालू जी के स्वास्थ्य को लेकरहै... मैं एक बेटी के तौर पर अपना फर्ज अदा कर रही हूं... पापा को स्वस्थ्य कर आप सब के बीच भेज रही हूं... अब आप लोग पापा का ख्याल रखियेगा.'
आरजेडी नेता लालू यादव की गैरमौजूदगी में देश में बहुत सारी राजनीतिक गतिविधियां देखने को मिली हैं. अत्याधुनिक तकनीक के इस युग में लालू यादव की गैरमौजूदगी तकनीकी तौर पर ही कही जा सकती है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा कतई नहीं लगता. लालू यादव के ही एक करीबी की मानें तो सिंगापुर में बैठे बैठे लालू यादव यहां की राजनीति से हर वक्त कनेक्ट रहते थे. हाल ही में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये वो एक शादी समारोह में भी शामिल हुए थे. परिवार के अलावा भी मिलने वाले कुछ लोग तो सिंगापुर जाकर भी लालू यादव से मिल आये हैं. सोशल मीडिया के जरिये ये जानकारी भी शेयर की है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा शुरू तो पहले ही हो चुकी थी, लेकिन खत्म इसी दौरान हुई है. और उसके बाद कांग्रेस की 'हाथ से हाथ जोड़ो' यात्रा भी शुरू हो चुकी है - बिहार में कांग्रेस की सक्रियता भी कुछ ज्यादा ही देखी जा रही है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की समाधान यात्रा तो लालू यादव के देश से बाहर होने के दौरान ही शुरू हुई है - और अब बताया जा रहा है कि महागठबंधन की रैली के बाद वो नये सिरे से विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम शुरू करने वाले हैं.
जाहिर है, नीतीश कुमार की प्रस्तावित देशव्यापी मुहिम में लालू यादव की खास भूमिका होगी ही. बिहार में तो नीतीश कुमार के देशाटन पर निकलने का कब से इंतजार हो रहा है - और उसे लेकर आरजेडी नेता सुधाकर सिंह और उनके पिता जगदानंद सिंह अलग ही अलख जगाये हुए हैं.
कांग्रेस और नीतीश कुमार की कोशिशों से इतर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव अलग ही विपक्ष को एकजुट करने में लगे हुए हैं. खास बात ये है कि आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ही नहीं, नीतीश और लालू कैंप के समाजवादी नेता अखिलेश यादव भी केसीआर के साथ मंच शेयर करने लगे हैं - यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि केसीआर विपक्षी दलों के उस धड़े को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के ही खिलाफ है.
अमेरिकी एजेंसी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अदानी ग्रुप के कारोबार को लेकर जो सवाल उठाये गये, विपक्ष का पुराना रूप ही फिर से सामने आया है. जो कुछ हुआ देख कर तो ऐसा ही लगा जैसे कांग्रेस अकेले पड़ गयी हो.
देश में विपक्षी दलों के मौजूदा माहौल में लालू यादव की भूमिका कांग्रेस नेतृत्व के लिए काफी महत्वपूर्ण लगती है. मान कर चलना होगा कि सिर्फ नीतीश कुमार ही नहीं बल्कि राहुल गांधी की राजनीति जिस रास्ते पर आगे बढ़ने वाली है, लालू यादव भी तमाम सारथियों में से एक हो सकते हैं.
अव्वल तो डॉक्टरों ने लालू प्रसाद यादव को किडनी ट्रांसप्लांट के बाद तमाम तरह की सावधानी बरतने की हिदायत दी है. धूल और एलर्जी के साथ कई तरह के परहेज को लेकर भी पहले ही आगाह कर दिया गया है. जाहिर है मिलने जुलने पर भी कुछ पाबंदियां लागू होंगी ही, लेकिन राजनीति तो इतनी ताकतवर चीज होती है कि रास्ते निकल ही जाते हैं - और वो तो लालू यादव हैं!
विपक्ष को लालू का इंतजार क्यों?
बिखरे हुए विपक्ष का जो नजारा अदानी ग्रुप के कारोबार पर दिखा है, वो तो 2024 का स्टेटस अपडेट ही बता रहा है. ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस को जिन राजनीतिक दलों से परहेज है, उनका साथ नहीं मिला. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बुलावे पर जिन 16 राजनीतिक दलों के नेता मीटिंग में पहुंचे थे, उनमें आप नेता संजय सिंह ही नहीं बल्कि केसीआर की भारत राष्ट्र समिति की भी नुमाइंदगी रही.
लालू यादव की वापसी से नीतीश कुमार और राहुल गांधी दोनों की राजनीति प्रभावित तो होगीस, लेकिन किस तरह?
अदानी ग्रुप को लेकर जेपीसी की मांग पर कांग्रेस ऐसी अड़ी कि तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट का साथ छूट गया. और बाकियों ने अपनी आंखें ही मूंद ली - अब ये तो नहीं कहा जा सकता कि लालू यादव होते तो ये सब नहीं होता.
कोई किसी की तब तक मदद नहीं कर सकता जब तक कि जरूरतमंद तैयार न हो. कांग्रेस के मामले में भी ऐसा ही है. जब जरूरत होती है, लालू यादव मदद के लिए तैयार रहते हैं. जब कांग्रेस को मदद की जरूरत नहीं होती, लालू यादव चुपचाप देखते रहते हैं.
बिखराव अपनी जगह है लेकिन विपक्षी एकता के लिए उम्मीद की किरण भी मल्लिकार्जुन खड़गे की मीटिंग ही नजर आ रही है. तेलंगाना में हुई केसीआर की रैली में सिर्फ चार नेताओं को बुलाया गया था - अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन और अखिलेश यादव.
और समझ में तो यही आता है कि बाकी किसी को भी बुलाने के काबिल नहीं समझा गया - और उनमें नीतीश कुमार और ममता बनर्जी जैसे विपक्ष के बड़े नाम भी शामिल माने जा सकते हैं. विपक्ष में ये बंटवारा एकता के लिए सबसे ज्यादा घातक है.
अरविंद केजरीवाल तो हमेशा ही थोड़ी दूरी बना कर चलते हैं. ये भी कह सकते हैं कि कांग्रेस भी उनसे दूरी बना कर रखती है - लेकिन अखिलेश यादव का केसीआर के साथ जाना विपक्ष की राजनीति की अलग ही तस्वीर दिखाता है.
विपक्ष की जो तस्वीर नजर आ रही है, उसके कम से कम दो पहलू लगते हैं - या तो केसीआर और केजरीवाल के साथ अखिलेश यादव ने नीतीश कुमार और कांग्रेस वाले खेमे से दूरी बना ली है, या फिर अंदर ही अंदर ऐसी कोई तैयारी चल रही है ताकि बीजेपी को गफलत में रखा जा सके.
और इस हिसाब से देखें तो केसीआर की रैली और भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह से अलग नजारा मल्लिकार्जुन खड़गे की मीटिंग में नजर आना बड़ा सबूत भी है - मतलब, भीतर ही भीतर किसी खास रणनीति पर काम तो चल रहा है, लेकिन हाथी के दांत की तरह खाने और दिखाने के अंदाज अलग रखे जा रहे हैं.
यूपी-बिहार से देश भर में फैल रहे रामचरितमानस विवाद और बिहार में हो रहा जातीय सर्वेक्षण विपक्ष की अलग ही धूरी बना रहा है - ये बीजेपी के लिए मंडल बनाम कमंडल जैसी ही चुनौती है और लालू यादव की इसमें सबसे बड़ी भूमिका हो सकती है.
गांधी परिवार के लिए लालू की अहमियत
अरसे से लालू यादव कांग्रेस के लिए सपोर्ट का सबसे मजबूत खंभा बने रहे हैं. सोनिया गांधी के विदेशी मूल को लेकर जब बवाल शुरू हुआ तो कांग्रेस के नेता ही मुंह मोड़ लिये थे, लेकिन बीजेपी के बवाल मचाने के बावजूद लालू यादव डटे रहे.
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद का एक वाकया आपको जरूर याद होगा. हो सकता है, उसके कुछ राजनीतिक पहलुओं की तरफ ध्यान न गया हो. चुनाव जीतने कर मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी का दिल्ली दौरा पहले ही से चर्चित रहा जिसकी घोषणा तृणमूल कांग्रेस नेता ने एक रैली में ही कर दी थी. रैली में दिल्ली से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये एनसीपी नेता शरद पवार और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम भी जुड़े हुए थे. रैली के बीच में ही ममता बनर्जी ने दोनों नेताओं को कहा कि वे दिल्ली में विपक्षी दलों की बैठक बुलाने की तैयारी करें.
लेकिन ममता बनर्जी दिल्ली आईं भी और कई नेताओं से मुलाकात भी की, लेकिन विपक्षी दलों की कोई बैठक नहीं हुई. जो बैठक हुई वो राहुल गांधी के साथ हुई, ममता बनर्जी के साथ नहीं - शरद पवार ने तो ममता बनर्जी से मुलाकात तक नहीं की जिसे जाते जाते वो बड़े भारी मन से बता भी गयीं.
दिल्ली में रहते हुए भी शरद पवार ने ममता बनर्जी से तो मुलाकात नहीं की, लेकिन लालू यादव से मिलने के लिए उनकी सांसद बेटी मीसा भारती के घर पहुंच गये. मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर साथ की तस्वीरें भी शेयर की गयीं.
उसी दौरान ममता बनर्जी के लिए प्रशांत किशोर विपक्षी दलों के नेताओं से मिल भी रहे थे और दिल्ली में मीटिंग का इंतजाम भी कर रहे थे. शुरू में तो शरद पवार भी शामिल हुए लेकिन सोनिया गांधी का मैसेज लेकर कमलनाथ के मिलते ही, मीडिया के जरिये साफ कर दिया कि कांग्रेस के बगैर विपक्ष का कोई भी मंच खड़ा नहीं हो सकता.
क्रोनोलॉजी भी तो यही समझा रही है, कांग्रेस के खिलाफ ममता बनर्जी के प्रयासों में रोड़ा तो लालू यादव ने ही अटकाया होगा. कांग्रेस को लेकर शरद पवार का नजरिया भी वैसा ही रहा है, लालू यादव का इशारा समझते ही वो भी अपनी तरफ से संकेत दे दिये थे - दोनों में एक कॉमन बात और भी है, राहुल गांधी को लेकर शरद पवार और लालू यादव दोनों की ही राय एक जैसी ही रही है.
बिहार में उपचुनावों के दौरान कांग्रेस के बिहार प्रभारी को लेकर लालू के बयान पर काफी बवाल हुआ, लेकिन फिर लालू यादव ने सोनिया गांधी से बातचीत कर मामला सुलझा लिया. लालू यादव ने कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास को 'भकचोन्हर' बता दिया था.
असल में गांधी परिवार से लालू यादव की नाराजगी कन्हैया कुमार को कांग्रेस ज्वाइन कराने को लेकर रही जिसमें बड़ी भूमिका राहुल गांधी की रही है, दागी नेताओं वाला ऑर्डिनेंस फाड़ने का वाकया तो काफी पुराना हो चुका है.
नीतीश कुमार के साथ क्या होने वाला है?
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा में ज्यादा तो व्यवधान ही नजर आया है. अब तो ये टाइमपास जैसा ही लग रहा है. हो सकता है, नीतीश कुमार ने ये इंतजाम लालू यादव की वापसी तक के लिए कर रखा हो - मान कर चलना होगा कि बिहार की राजनीति में भी लालू यादव के लौटने के बाद परिवर्तन होगा.
रामचरितमानस विवाद तो वैसे भी लालू यादव की राजनीतिक लाइन को सूट करता ही है. ऐसे में जरूरी नहीं कि तुलसीदास के रामचरितमानस पर विवाद के रचयिता चंद्रशेखर प्रसाद के साथ भी वैसा ही व्यवहार हो, जैसा आरजेडी नेता सुधाकर सिंह के मामले में नीतीश कुमार कैंप को अपेक्षा होगी.
नीतीश कुमार के खिलाफ आरजेडी की तरफ से बिहार में जो भी कैंपेन चलाया जा रहा है, ऐसा तो है नहीं कि वो लालू यादव की मर्जी के बगैर चलाया जा रहा होगा - ये तो हर किसी को पता है कि लालू यादव जल्दी से जल्दी तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं. 2020 के चुनाव में भी लालू यादव बिहार में नहीं थे, लेकिन रांची जेल में रहते हुए भी सारे इंतजाम कर चुके थे - एक विधायक के साथ बातचीत के वायरल वीडियो को चाहें तो याद कर सकते हैं.
बेशक बिहार में कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा है, लेकिन लालू यादव कभी नहीं चाहेंगे कि वो किसी भी सूरत में तेजस्वी यादव के लिए चुनौती बने. हो सकता है, लालू यादव के दबाव में कांग्रेस कन्हैया कुमार को बिहार से बाहर रखे, लेकिन जिस तरह से नये कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह एक्टिव नजर आ रहे हैं, गांधी परिवार उस पर रोक के लिए तैयार होने से रहा.
तेजस्वी यादव के राजनीतिक हितों का ख्याल रखते हुए कांग्रेस नेतृत्व के साथ विपक्ष और बिहार की राजनीति में सामंजस्य बैठाना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है - सोनिया गांधी तो एक बार मान भी सकती हैं, लेकिन राहुल गांधी को मनाना काफी मुश्किल है.
रही बात नीतीश कुमार की तो वो पहले ही कह चुके हैं कि समाधान यात्रा के बाद वो देश भर में विपक्ष को एकजुट करने के अभियान पर निकलेंगे - सवाल ये है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के तौर पर देश भ्रमण पर निकलेंगे या राजपाट तेजस्वी यादव के हवाले करके?
25 फरवरी को बीजेपी नेता अमित शाह फिर से बिहार के दौरे पर जा रहे हैं - और उसी दिन महागठबंधन की तरफ से भी पूर्णिया में रैली की घोषणा की गयी है. मान कर चलना होगा, 2024 को लेकर अच्छी जोर आजमाइश देखने को मिलेगी.
...और ऐसे माहौल में अगर लालू यादव की भूमिका तो रिंग मास्टर जैसी ही लगती है.
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