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Updated: 20 दिसम्बर, 2019 09:30 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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What is CAA Protest? पड़ोसी इस्‍लामी देशों से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आने वाले लोगों को नागरिकता देने की व्‍यवस्‍था. लेकिन, अब उसी के नाम पर पूरा देश जल रहा है. जगह जगह पत्थरबाजी हो रही है. आगजनी की जा रही है. हालात कुछ ऐसे हैं कि शांति स्थापित करने में पुलिस को भी कड़ी मशक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा ही. पुलिस प्रदर्शनकारियों (CAA protesters vs Police) को तितर बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दाग रही है. लाठी चार्ज कर रही है. पुलिस एक जगह स्थिति को नियंत्रित करती है. बवाल की खबरें दूसरी जगह से आती हैं. पूरे मामले ने एक अजीब ऊहापोह की स्थिति पैदा कर दी है. भले ही वर्तमान में इस आंदोलन (Anti-CAA Movement) को विपक्ष (Opposition parties on CAA) का समर्थन मिला हो लेकिन देश भर से जैसी खबरें आ रही हैं और जैसा जामिया से लेकर लखनऊ (Violent Protest In Lucknow And Sambhal) और मऊ से लेकर बैगलोर तक इस पूरे मामले को लेकर प्रदर्शनकारियों का रवैया है. शुक्रवार को जामा मस्जिद प्रोटेस्‍ट (Jama Masjid protest) के बाद दिल्‍ली में कई जगहों पर आगजनी की घटना हुई. उत्‍तर प्रदेश के कई जिलों में प्रदर्शनकारियों ने जमकर हिंसा की, जिन्‍हें काबू में लाने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी. नतीजे में 6 लोगों की मौत हुई है. ऐसे में हमारे लिए कहीं से भी गलत ये कहना गलत नहीं है कि CAA को लेकर जारी ये विरोध प्रदर्शन एक नाकाम आंदोलन होने की ओर बढ़ रहा है. जिसका अंत परिणाम सिवाए तबाही और उपद्रव के और कुछ नहीं है.

CAA protest vilence in Delhi and Uttar PradeshCAA आंदोलन में ऐसी तमाम खामियां हैं जिनके चलते ये कभी एक बड़ा और कामयाब आंदोलन नहीं बन सकता

आइये नजर डालते हैं उन बिन्दुओं पर जिनके अवलोकन के बाद खुद बी खुद ये बात स्पष्ट हो जाएगी कि कैसे CAA के विरोध में जारी ये आंदोलन एक कामयाब आंदोलन नहीं है:

नारा नहीं है

एक आंदोलन में नारे की क्या भूमिका होती है यदि सवाल इसपर हो तो हम 2011 के उस इंडिया अगेंस्ट करप्शनआंदोलन का जिक्र कर सकते हैं जिसमें नारे क्रांति की एक बड़ी वजह बने. चाहे लोगों का अन्ना हजारे से प्रेरित होकर 'मैं भी अन्ना' कहना रहा हो या फिर कांग्रेस के विरोध में नारे रहे हों. उस पूरे आंदोलन में नारों का अपना महत्त्व था.

2011 के विपरीत अगर हम अब यानी 2019 में हो रहे Anti CAA आंदोलन पर गौर करें तो इसमें ठोस नारों का आभाव हमें साफ़ साफ़ दिखाई देता है. वर्तमान में जो इक्का दुक्का नारे इस आंदोलन में इस्तेमाल हो रहे हैं वो सरकार के विरोध से ज्यादा कुछ नहीं हैं.

बात अगर उन लोगों की हो जो ये नारे लगा रहे हैं तो हमारे लिए ये बताना भी जरूरी हो जाता है कि सरकार विरोधी नारे लगाने वाले लोगों के अपने राजनीतिक स्वार्थ हैं जिसके दम पर वो अपनी राजनीति परिपूर्ण कर रहे हैं.

नेता/चेहरा नहीं है

आम आदमी पार्टी में रह चुके योगेन्द्र यदाव इस विरोध प्रदर्शन को एक आंदोलन बता रहे हैं. चूंकि बात हमने 2011 के अन्ना आंदोलन से शुरू की थी तो बता दें कि इस आंदोलन में अन्ना हजारे के रूप में एक बड़ा चेहरा आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था. वो जो बताता लोग उसपर अमल करते और इन सब का नतीजा ये निकला कि अन्ना आंदोलन की गिनती आज इस देश के हालिया कामयाब आंदोलन में होती है.

अब आते हैं Anti CAA आंदोलन पर. इस पूरे आंदोलन की जो सबसे बड़ी दिक्कत है वो ये है कि इस आंदोलन में कोई नेता या ये कहें कि बड़ा चेहरा नहीं है. नेता न होने का खामियाजा ये है कि आंदोलन को लेकर जिसके मन में जो आ रहा है वो वैसा कर रहा है और परिणाम ज्यादातर नकारात्मक ही नजर आ रहे हैं.

क्रांतिकारी भाषण नहीं है

नारों और नेता के अलावा भाषण किसी भी आंदोलन की जान होते हैं. Anti CAA आंदोलन को देखें तो क्रांतिकारी भाषणों के तहत भी ये पूरा आंदोलन मात खाता नजर आ रहा है. आंदोलन इसलिए भी नाकाम आंदोलन है क्योंकि भाषणों का आभाव है. अगर भाषण होंगे तो लोगों को भी पता चलेगा कि समस्या क्या है? मुद्दा क्या है? कह सकते हैं कि CAA के विरोध में जारी इस आंदोलन में जब तक क्रांतिकारी भाषण नहीं जुड़ते ये एक अधूरा आंदोलन रहेगा.

मांग में गफलत है

हमने बात की शुरुआत अन्ना आंदोलन से की थी तो बता दें कि उस आंदोलन में आंदोलनकारियों का एजेंडा एकदम स्पष्ट था. कहीं कोई गफलत की स्थिति नहीं थी. आंदोलन में शामिल लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोकपाल की मांग कर रहे थे तो उनके पास उसका पूरा ड्राफ्ट था. वहीं जब हम Anti CAA आंदोलन का रुख करें तो यहां किसी के पास कोई ठोस विकल्प नहीं है. यहां जो लोग जामिया में प्रदर्शन कर रहे हैं उनका मुद्दा अलग है. इसी तरफ संभल और लखनऊ के लोगों का मुद्दा अलग है. बड़ी ही अजीब स्थिति है. ध्यान रहे कि इस आंदोलन में अगर घुसपैठियों की समस्या का जिक्र किया गया था तो कोई ऐसा ड्राफ्ट भी होना चाहिए जो जनता को बताए कि इनके आंदोलन का आधार क्या है. यहां ऐसी सभी चीजें नदारद हैं जो गफलत की स्थिति को जन्म देती हैं और नौबत अराजकता, हिंसा और उपद्रव की आ जाती है.

मीडिया कवरेज के लिए फोकस स्‍पॉट नहीं

किसी भी आंदोलन के लिए सबसे अहम चीज वो स्थान होता है जहां आंदोलन हो रहा होता है और मीडिया उसका कवरेज करने जाती है. बात अगर अन्ना आंदोलन की हो तो पूरा आंदोलन दिल्ली के जंतर मंतर पर चला. मीडिया ने भी आंदोलन का भरपूर कवरेज किया और जो भी नतीजा निकला उसका आधार ठोस था. अब बात अगर हम CAA के विरोध में शुरू हुए इस आंदोलन की करें तो यहां कोई फोकस स्‍पॉट नहीं है.

कभी आंदोलन जामिया में होता है तो कुछ देर बाद सीलमपुर होते हुए मऊ, लखनऊ, संभल, बैंगलोर और मैंगलो पहुंच जाता है. वो तमाम लोग जो इसे एक आंदोलन की तरह देख रहे हैं उन्हें हम बताते चलें कि इनका आंदोलन तब तक कामयाब नहीं है जब तक इसे एक  फोकस स्‍पॉट नहीं  मिल जाता.

प्रदर्शन हिंसक हो रहे हैं

2011 का अन्ना आंदोलन शांति से संपन्न हुआ. आंदोलन का इम्पैक्ट ऐसा था कि सरकार झुकी और नेताओं तक को अपने बचाव में सामने आना पड़ा. इन तमाम बातों के बाद अब बात अगर Anti CAA आंदोलन की हो तो दिल्ली से लेकर संभल, मऊ, लखनऊ, अलीगढ़ जहां जहां भी आंदोलन के नाम पर प्रदर्शन हुए हमें हिंसा दिखी.

जली हुई बसे दिखीं. ट्रेन पर पथराव दिखा और साथ ही दिखा पुलिस का शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए बल का सहारा लेना. CAA के खिलाफ आए लोगों से हम बस इतना ही कहेंगे कि जब तक उनके आंदोलन से हिंसा नहीं जाती और वो शांतिपूर्ण नहीं होते तब तक उनका आंदोलन एक सफल आंदोलन नहीं बन सकता.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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