अब चलिए भारत-पाक जंग की कीमत का अंदाज लगाते हैं
अगर घरेलू दबाव की वजह से भारत - पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव बड़ी जंग में भी तब्दील हो सकता है. ऐसा हुआ तो जान-माल का कितना नुकसान होगा? आर्थिक रूप से इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ेगी.
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आतंकियों को अपनी जमीन पर घुसपैठ करने से रोकने का भारत को पूरा अधिकार है. इसी अधिकार के तहत 28-29 सितंबर की रात को भारतीय सेना ने LOC को पार कर सर्जिकल स्ट्राइक्स में 6 आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया. अब सवाल है इसके बाद क्या? क्या पाकिस्तान बदले में कोई कार्रवाई करेगा? क्या सरहद का ये तनाव बड़ी जंग में तब्दील हो जाएगा?
पाकिस्तान ने बेशक भारत के सर्जिकल स्ट्राइक्स के दावे को खारिज कर दिया. इसे महज क्रॉस बार्डर फायरिंग करार दिया. लेकिन हकीकत ये है कि पाकिस्तान के हुक्मरान और फौज अब बहुत दबाव में हैं. पाकिस्तान मे विपक्ष के नेता और आवाम अब भारत को जवाब देने के लिए पूरा जोर डालेंगे. ठीक वैसे ही जैसे उरी आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए मोदी सरकार पर भारत में हर तरफ से दबाव पड़ रहा था.
याद कीजिए, 2013 में पाकिस्तान ने भारतीय सैनिकों पर LOC पार करने का आरोप लगाया था. ये भी कहा था कि भारतीय सैनिकों की फायरिंग में एक पाकिस्तानी सैनिक मारा गया था. लेकिन भारत के तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल बिक्रम सिंह ने पाकिस्तानी दावे का खंडन किया था. उनकी ओर से कहा गया था कि हमारे जवान LOC क्रॉस नहीं करते और ना ही हमारी ओर से उकसावे वाली कोई कार्रवाई की जाती है. अगर कोई पाकिस्तानी सैनिक मारा गया होगा तो वो जवाबी कार्रवाई के तहत की जाने वाली क्रॉस बॉर्डर फायरिंग में मारा गया होगा. लेकिन 2013 की तुलना में अब स्थिति बिल्कुल विपरीत है.
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भारत LOC पार कर सर्जिकल स्ट्राइक की बात कर रहा है जबकि पाकिस्तान इसका खंडन कर रहा है. पाकिस्तान के मुताबिक भारतीय सैनिकों की ओर से LOC क्रॉस नहीं की गई और दो पाकिस्तानी सैनिकों की मौत क्रॉस बार्डर फायरिंग में हुई. पाकिस्तान इसी स्टैंड पर टिका रहता है तो दोनों देशों के बीच तत्काल किसी बड़े टकराव की संभावना कम ही है.
हां, अगर घरेलू दबाव की वजह से पाकिस्तान की ओर से सरहद पर अब कोई हरकत की जाती है तो दोनों देशों के बीच मौजूदा तनाव बड़ी जंग में भी तब्दील हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो दोनों देशों को आर्थिक दृष्टि से भारी नुकसान सहना पड़ सकता है. दोनों देशों के राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व के जेहन में ये जरूर होगा कि जंग हुई तो जान-माल का कितना नुकसान होगा? आर्थिक रूप से इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ेगी?
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बड़ा सवाल ये भी है कि जंग से आर्थिक मोर्चे पर होने वाले नुकसान को सहने के लिए बेहतर स्थिति में कौन सा देश है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही जर्जर है और हाल के वर्षों में उसकी पूरी कोशिश इसे स्थिरता देने की रही है. ऐसी स्थिति में पाकिस्तान क्या भारत के साथ बड़ी जंग का जोखिम मोल लेना चाहेगा.
टकराव की आर्थिक कीमत की बात की जाए तो जहां तक दोनों देश के बीच कारोबार का सवाल है, वो इतना बड़ा नहीं है कि उसे लेकर ज़्यादा कोई फिक्र की जाए. लेकिन मौजूदा हालात जारी रहते हैं तो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा.
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अनुमानों के मुताबिक करगिल जंग की कीमत भारत को 10,000 करोड़ रुपए पड़ी थी. और उसके बाद रक्षा बजट में 18 फीसदी की बढ़ोतरी की गई. 1998-99 में रक्षा बजट 39,897 करोड़ रुपए था तो करगिल युद्ध वाले वर्ष 1999-2000 में इसे 47,071 करोड़ रुपए किया गया. जाहिर है कि रक्षा बजट में बढ़ोतरी करने के लिए दूसरे मंत्रालयों के आवंटन और विकास कार्यक्रमों के लिए रकम में कटौती करनी पड़ी. किसी विकासशील देश के लिए ऐसा करना कितना भारी हो सकता है, ये समझा जा सकता है.
अगर अब जंग होती है, चाहे वो पारंपरिक हथियारों से लड़ी जाए या न्यूक्लियर वॉरहेड्स के साथ. कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता कि इंसानी जानों के नुकसान के साथ आधारभूत ढांचे, पर्यावरण और पुनर्वास पर होने वाले खर्च के तौर पर कितनी बड़ी कीमत चुकानी होगी? पारंपरिक युद्ध में 50,000 गोलों और आर्टिलरी पर ही मोटा खर्च होता है. अब कल्पना कीजिए कि न्यूक्लियर जंग होती है तो आर्थिक रूप से उसकी मार कितनी बड़ी होगी?
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