तो क्या, पीएम मोदी की अनुपस्थिति में भी भाजपा इतनी ही मजबूत रह पाएगी?
आज भाजपा की जो स्थिति है उसे देखकर कहा जा सकता है कि वहां जो कुछ हैं मोदी ही हैं मगर तब का क्या जब वो न होंगे. क्या वर्तमान भाजपा ऐसी ही रहेगी या फिर उसने कुछ बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे. ऐसे बदलाव जिनका उद्देश्य पार्टी को फायदा देना न होगा.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र को भारत जैसे विशाल देश का प्रधानमंत्री बने 3 साल हो चुका है. इन तीन सालों में बहुत कुछ बदला है. तमाम अटकलों को पीछे छोड़ते हुए, आज भाजपा उस मुकाम पर है जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. बिहार की राजनीति में जिस प्रकार से बीजेपी ने वापसी की है और सत्ता पर अपनी पकड़ बनाई है, उस पर इंडिया- यूएस के एक शीर्ष थिंक टैंक का कहना है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के स्वर्ण काल का प्रारंभ किया है. 'कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस' में साउथ एशिया प्रोग्राम के डायरेक्टर एवं वरिष्ठ फेलो मिलान वैष्णव ने एक संपादकीय में कहा है कि, 'ताजा उथल-पुथल इस बात की ओर इशारा कर रही है कि नेहरू-गांधी परिवार की कांग्रेस पार्टी द्वारा लंबे समय से नियंत्रित देश में अब भाजपा राजनीति का नया केंद्र है'.
जो आज पार्टी की हालत है उससे ये बात साफ है कि भविष्य में पार्टी को कई मुसीबतें उठानी होंगी
इस एडिटोरियल के अनुसार, 2019 में देश में होने वाले चुनावों के मद्देनजर भाजपा न केवल एक बड़ी पार्टी है. बल्कि वह शक्तिशाली राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत करने की दिशा में भी 'बेहद तेज गति' से काम कर रही है और आगे बढ़ रही है. इस संपादकीय में, वैष्णव ये भी लिखते हैं कि, 'चूंकि भाजपा सरकार के लगातार मजबूत होने से नीतिगत स्थिरता एवं राजनीतिक मजबूती के संकेत मिल रहे हैं लेकिन इसके साथ ही भारत में लोकतांत्रिक संतुलन को लेकर भी चिंताएं पैदा हो रहीं हैं' वैष्णव का मानना है कि उनकी व्यापार-अनुकूल नीतियां, राष्ट्रवादी बयानबाजी और उनकी आकांक्षा से भरी अपील युवाओं में उत्साह भरती है और इसके जरिए मोदी अपनी पार्टी को ऐतिहासिक चुनावी जीत की ओर ले गए हैं.
भारत और अमेरिका के राजनीतिक संबंधों को समझने वाले एक विशेषज्ञ द्वारा कही गयी ये बातें, किसी भी आम भारतीय और भाजपा से जुड़े किसी भी व्यक्ति के लिए एक बहुत अच्छी खबर है. एक ऐसी खबर, जो उसे खुश करने के लिए काफी हैं. हो सकता है ये बातें पार्टी के किसी सपोर्टर को खुश कर दें मगर हकीकत ये है कि आज मोदी भाजपा को लेकर जिस मुकाम पर पहुंच गए हैं उससे सबसे ज्यादा मुसीबत खुद पीएम मोदी को है.
एक समय औसत स्थिति में रहने वाली भाजपा को मोदी द्वारा फिल्हाल बहुत ऊपर लाया गया है. कहा जा सकता है कि मोदी ही इस सल्तनत के बादशाह हैं. एक ऐसा बादशाह जिसके सामने इस समय सबसे बड़ा संकट इस बात का है कि, उसके बाद, उसकी बनाई हुई सल्तनत का क्या होगा. क्या इस बादशाह की सल्तनत ऐसे ही बरकरार रहेगी या फिर इसमें कुछ बड़े फेर बदल देखने को मिलेंगे.
चूंकि सारे अहम फैसले खुद मोदी ले रहे हैं तो पार्टी में, एक समय बाद आंतरिक मतभेद होना लाजमी है
इस विषय पर चिंतन करने के पश्चात, बात अपने आप साफ हो जाती है कि मोदी के बाद उनकी ये सल्तनत शायद इस तरह का रह पाए. निस्संदेह ही इस सल्तनत का हश्र भी वैसा ही होगा जैसा अकबर और नेपोलियन का हुआ, जो एक समय के बाद बिखरेगी और फिर बिखरती ही चली जाएगी.
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. इस बात को समझने के लिए हम कांग्रेस को बतौर उदाहरण पेश कर सकते हैं. उस दौर को देखिये जब इंदिरा थीं. एक ऐसा दौर जब इस देश में एक नारा बहुत ही जोर शोर से गूंजा था कि 'इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया' इसे अगर आज के सन्दर्भ में देखें तो मिलता है कि जैसी स्थिति तब थी कुछ वैसी ही स्थिति आज है, बस नाम में मामूली फेर बदल देखने को मिल रहा है.
तब इंदिरा थीं, आज मोदी हैं. तब का नारा अब 'इंडिया इज मोदी, मोदी इज इंडिया' में बदल चुका है. इंदिरा से पहले और इंदिरा तक कांग्रेस एक थी लेकिन इंदिरा के बाद कांग्रेस अलग-अलग धड़ों में बंट गयी और उसके कई रूप सामने आ गए. आज यही स्थिति भाजपा की है शायद मोदी के बाद आज की भाजपा कई धड़ों में बंट जाए जिसमें एक धड़ मोदी को पसंद करे, एक धड़ मोदी की विचारधारा को नजरंदाज कर अपने ढर्रे पर काम करे.
ये बात किसी से छुपी नहीं है कि आज पार्टी में सभी महत्वपूर्ण फैसले मोदी द्वारा लिए जाते हैं. ये मोदी का व्यक्तित्व ही है कि, जनता को संबोधित करते हुए जैसे ही वो बिना भेद भाव के अपने भाषणों में, सवा सौ करोड़ देश वासियों को एक मंच पर लाकर खड़ा करते हैं, देश की जनता सब कुछ भूल के मन्त्र मुग्ध हो जाती हैं. कहा जा सकता है कि यही मोदी मंत्र है, यही मोदी लहर है और यही आम जनता के बीच मोदी की लोकप्रियता का कारण है.
आज पार्टी उस मुकाम पर पहुंच गयी है जहां उसे अपने से जुड़े हर व्यक्ति की सोच को तरजीह देनी है
मोदी की ये सफलता खुद मोदी के लिए कितनी खतरनाक है, इसे इससे भी समझा जा सकता है कि आज पार्टी में 'वन मैन शो' चल रहा है. पार्टी से जुड़े सारे महत्वपूर्ण फैसले मोदी खुद ले रहे हैं. वो टिकट बांट रहे हैं, टिकट काट रहे हैं. विभागों से लेकर मंत्रालयों तक सबका बटवारा खुद मोदी कर रहे हैं. ऐसे में और किसी के पास निर्णय लेने का अधिकार ही नहीं है. अब एक ऐसे समय की कल्पना करिए जब ये न हों, या राजनीति से दूरी कर लें. तब उस स्थिति में निश्चित तौर पर, पार्टी की बातें खुद पार्टी और पार्टी से जुड़े नेताओं तक को नहीं पता होंगी.
कहा जा सकता है कि यदि मोदी ने अपने कद के मुकाबले पार्टी के कद को तरजीह दी होती तो हालात ऐसे न होते. तब सच में सबका साथ, सबका विकास की अवधारणा चरितार्थ होती और भविष्य में होने वाली दिक्कतों का स्तर कम होता. इससे न सिर्फ पार्टी को बल मिलता और वो मजबूत होती बल्कि पार्टी को कई अन्य विकल्प भी मिल जाते.
बहरहाल, अंत में यही कहा जा सकता है कि बीते तीस सालों में बहुमत हासिल करने वाली पहली पार्टी बन मोदी ने भाजपा के लिए स्वर्णकाल का प्रारंभ कर दिया है. मगर अब ये पार्टी के लिए भी जरूरी हो गया है कि कैसे उसे मोदी की उम्मीदों पर खरा उतरना है.
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