संसद के मॉनसून सत्र में हंगामा ज्यादा होगा या विपक्ष का बहिष्कार
जीएसटी पर जश्न का विपक्ष ने बहिष्कार किया. हालांकि बहिष्कार करने वालों में पूरा नहीं बल्कि बंटा हुआ विपक्ष था. बहिष्कार न करने वाले तबके में तब जेडीयू नहीं था, लेकिन उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के समर्थन में वो भी आ गया है.
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नाम लेना जरूरी कई बार जरूरी नहीं होता. बगैर नाम लिये भी बहुत कुछ कहा जा सकता है. दिग्विजय सिंह ने गुजरात को लेकर एक ट्वीट किया था. अपने ट्वीट में दिग्विजय ने दो नाम लिये लेकिन वो नहीं जो निशाने पर है.
At least you should have seen what he did to Gujarat Leaders who supported him. From Keshu Bhai to Harendra Pandya the list is endless.
— digvijaya singh (@digvijaya_28) July 15, 2017
आसानी से समझा जा सकता है कि कांग्रेस नेता के ट्वीट में निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं - लेकिन पूछा जाये तो दिग्विजय का सीधा सा जवाब होगा - मैंने तो किसी का नाम लिया नहीं. सही भी है, बगैर नाम लिये भी तो बात वहीं पहुंचती है जो उसकी मंजिल है. फिर नाम में क्या रखा है?
प्रधानमंत्री मोदी भी अक्सर ये तरीका अपनाते हैं, भले ही उन्हें किसी का काम बताना हो या कारनामा. बात श्मशान की हो या कब्रिस्तान की. या फिर, गोरक्षकों के उत्पात की ही बात क्यों न हो. बगैर किसी का नाम लिये ही प्रधानमंत्री मोदी ने जीरो टॉलरेंस की बहस को आगे बढ़ाया है.
जीरो टॉलरेंस
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का ही एक और ट्वीट काबिले गौर है. दिग्विजय सिंह राजस्थान में एक मामले को सीबीआई को सौंपने की बात कर रहे हैं.
राजस्थान सरकार के अड़ियल रवैये पर मुझे आश्चर्य है। सीबीआई को सौंपने मैं क्या आपत्ति है? जबकि राजस्थान का संपूर्ण राजपूत समाज आंदोलित है।
— digvijaya singh (@digvijaya_28) July 16, 2017
जबकि छोटे छोटे प्रकरणों में सीबीआई को सौंप दिया जाता है।
— digvijaya singh (@digvijaya_28) July 16, 2017
ये बात उसी सीबीआई की हो रही है जिसकी प्राथमिकी के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है - और सत्ताधारी महागठबंधन को लेकर लगातार बैठकों का दौर चल रहा है. सीबीआई के एक्शन को लालू और उनका परिवार राजनीतिक साजिश और बदले की भावना से कार्रवाई बता रहा है - दिग्विजय सिंह की पार्टी कांग्रेस के नेता बार बार लालू के घर पहुंच कर समर्थन जता रहे हैं. लालू के साथ साथ बिहार कांग्रेस के नेता भी सीबीआई की कार्रवाई के लिए प्रधानमंत्री मोदी को हर संभव भला-बुरा कह रहे हैं. दिग्विजय सिंह तो नाम लेने से बच रहे हैं, अशोक चौधरी को तो इससे भी परहेज नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी लालू को फोन कर मुसीबत की घड़ी में साथ होने का अहसास दिला चुकी हैं, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है. तेजस्वी के मामले में नीतीश कुमार साफ कर चुके हैं कि वो अपने जीरो टॉलरेंस के रवैये पर कायम रहेंगे. बाद में सरकारी कार्यक्रम में नीतीश के साथ तेजस्वी ने आने से भले ही परहेज किया लेकिन कैबिनेट की बैठक से निकलने के बाद तेजस्वी ने भी भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की ही बात की थी. संसद के मॉनसून सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक में मोदी ने भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं के खिलाफ एकजुट होने की अपील की है. मोदी की इस अपील में भी अंदाज वैसा ही है जैसा आतंकवाद के पनाहगार मुल्कों के खिलाफ लामबंद होने की होती है. वहां निशाने पर पाकिस्तान होता है, यहां लालू प्रसाद और उनका परिवार नजर आता है.
सार्वजनिक जीवन का स्वच्छता अभियान...
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बारे में मुख्यतौर पर तीन बातें कहीं:
1. देश को लूटनेवालों के खिलाफ जब कानून अपना काम करता है तो राजनीतिक षडयंत्र की बात करके बचने का रास्ता खोजने वालों के विरुद्ध एकजुट होना होगा.
2. सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता के साथ ही भ्रष्ट नेताओं पर कार्रवाई आवश्यक है. हर दल ऐसे नेताओं की पहचान कर अपने दल की राजनीतिक यात्रा से अलग करे.
3. कई दशकों से नेताओं की साख हमारे बीच के ही कुछ नेताओं के बर्ताव की वजह से कटघरे में है. हमें जनता को भरोसा दिलाना होगा कि हर नेता दागी नहीं है.
जाहिर है बगैर नाम लिये प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे विपक्ष को मैसेज देने की कोशिश की. मोदी ने उन्हें भी आगाह किया जिनके बारे में उनकी सोच है कि वो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और उन्हें भी जिन्हें वो सपोर्ट करते देख रहे हैं.
हंगामा या बहिष्कार
जीएसटी पर जश्न का विपक्ष ने बहिष्कार किया. हालांकि बहिष्कार करने वालों में पूरा नहीं बल्कि बंटा हुआ विपक्ष था. बहिष्कार न करने वाले तबके में तब जेडीयू नहीं था, लेकिन उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के समर्थन में वो भी आ गया है. जीएसटी पर जश्न में हंगामे का स्कोप नहीं था, इसलिए विपक्ष ने बहिष्कार का रास्ता अख्तियार किया. मॉनसून सत्र में तो हंगामा और बहिष्कार दोनों का विकल्प खुला हुआ है.
मॉनसून सत्र में कई बिल पेश की जानी हैं जिन्हें लेकर सरकार प्रयासरत रहेगी. मगर, ऐसे ज्वलंत मुद्दे भी हैं जिनको लेकर विपक्ष घेरने की कोशिश करेगा. कश्मीर का मसला बजट सत्र में भी छाया रहा. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का इल्जाम रहा कि देश का ताज जल रहा है और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. अब तो अमरनाथ यात्रियों पर हमले के बाद मामला और भी आगे बढ़ चुका है. ऊपर से जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का वो बयान कि अब कश्मीर मामले में चीन भी हस्तक्षेप की कोशिश कर रहा है - मामले को और पेंचीदा बना रहा है. किसानों का मुद्दा तो कांग्रेस का फेवरेट शगल रहा है - और मॉब लिंचिंग से बड़ा इस वक्त और भी कोई मुद्दा है क्या?
लालू और उनके परिवार के खिलाफ जांच एजेंसियों की कार्रवाई का विरोध कांग्रेस के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस भी कर रही है. मायावती और मुलायम सिंह यादव तो पुराने पीड़ित रहे हैं, केजरीवाल को राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस ने भले ही अछूतों जैसा बर्ताव किया हो, बात जब सीबीआई के दुरुपयोग पर हंगामे या बहिष्कार की होगी तो आम आदमी पार्टी वैसे ही साथ नजर आएगी जैसे मीरा कुमार को समर्थन देने के मामले में.
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