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Updated: 27 मई, 2017 02:16 PM
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26 मई को मोदी सरकार तीन साल पूरे होने पर जश्न के बीच 17 दलों के नेता उसे घेरने की रणनीति बना रहे थे - और इसकी सूत्रधार थीं - कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी. सोनिया का न्योता पाकर अखिलेश यादव और मायावती जैसे एक दूसरे के कट्टर दुश्मन भी दिल्ली पहुंच गये, लेकिन नीतीश कुमार पटना में ही जमे रहे. नीतीश ने सोनिया के भोज में गैरमौजूदगी के सवालों को तो सिरे से खारिज कर दिया, पर लगे ये भी बता दिया कि 24 घंटे बाद वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंच में पक्के तौर पर शामिल होंगे. नीतीश ने जिस लंच का जिक्र किया वो मोदी ने मॉरिशस के पीएम के सम्मान में दिया है - और नीतीश को भी उसका न्योता भेजा था.

वो थाली, वो डीएनए

प्रधानमंत्री मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सियासी रिश्तों की जब भी बात चलेगी - वो थाली के किस्से और डीएनए की बातें बरबस ही याद आया करेंगी. जरा बिहार चुनाव को भी एक बार फिर याद कीजिए. मुजफ्फरपुर की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश पर इल्जाम लगाया कि नीतीश ने एक बार उनके सामने से खाने की थाली खींच ली थी. इसके साथ ही मोदी ने ये शक भी जता डाला कि शायद उनके डीएनए में ही कोई खोट है. नीतीश ने इसे हाथों हाथ लिया और बिहार के नाम पर लोगों को जुटाकर डीएनए सैंपल की ढेर लगा दी, फिर उन्हें दिल्ली भी भेजा. इतना ही नहीं इसी बात को लेकर पटना में स्वाभिमान रैली बुलाई गई जिसमें सोनिया गांधी भी शामिल हुईं.

लेकिन इस साल जनवरी में मोदी और नीतीश की जुगलबंदी की भी चर्चा रही. पटना में गुरु गोविंद सिंह की 350 जयंती के मौके पर आयोजित प्रकाश उत्सव समागम में दोनों ने मंच तो शेयर किया ही एक दूसरे के प्रति बिलकुल बदले नजर आये. नीतीश ने गुजरात में शराबबंदी लागू करने के लिए मोदी की तारीफ की तो मोदी ने भी नीतीश की पहल पर कसीदे पढ़े.

narendra modi, nitish kumarकहीं पे निगाहें कहीं पे निशाने...

ये सब ज्यादा खास इसलिए भी लग रहा था क्योंकि बाकियों से अलग लाइन लेते हुए नीतीश ने मोदी के नोटबंदी के फैसले का सपोर्ट किया था. एक बार फिर नीतीश और मोदी के रिश्ते के नये मोड़ पर पहुंचने को लेकर अटकलें शुरू हो गयी हैं जब नीतीश ने सोनिया की थाली ठुकराते हुए मोदी के लंच को तरजीह दी है.

नीतीश के प्रति हमेशा तीखे और हमलावर रहे सीनियर आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद की टिप्पणी है, "संभव है नीतीश को प्रधानमंत्री का लंच ज्यादा जायकेदार और क्षुधावर्धक लगा होगा."

क्या ये सियासत की नई इबारत है

सिर्फ नोटबंदी ही नहीं ऐसे कई मौके देखे गये हैं जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग स्टैंड लिया है. नतीजा ये भी हुआ है कि नीतीश को अक्सर महागठबंधन पार्टनर आरजेडी नेताओं के तीर भी झेलने पड़े हैं. अब तो लगने लगा है कि नीतीश इन बातों से ऊबने लगे हैं और यही वजह है कि कोई दूसरा रास्ता अख्तियार करने का संकेत दे रहे हैं.

कभी कमल के फूल में रंग भर कर तो कभी बीजेपी नेता सुशील मोदी को चूड़ा दही खिलाने के लिए घर बुलाकर नीतीश ऐसी अटकलों को हवा देते रहे हैं. जाहिर है नीतीश भी कोई सख्त मैसेज देना तो चाहते ही होंगे.

चारा घोटाले के मामले में लालू को सुप्रीम कोर्ट से झटका ही लगा है. खुद लालू प्रसाद और उनके बेटे-बेटी सब के सब बड़े जमीन घोटाले के घेरे में हैं. लालू की बेटी मीसा भारती के सीए को गिरफ्तार किया जा चुका है और उन्हें भी नोटिस देकर तलब किया गया है. ऐसे में जबकि लालू और उनका परिवार जांच एजेंसियों के घेरे में है और तभी शहाबुद्दीन से जेल से बातचीत का टेप सामने आता है, नीतीश के लिए दिक्कत की बात तो है ही. शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने पर नीतीश सरकार की सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कितनी किरकिरी हुई थी सबने देखा ही है.

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ से एक जेडीयू नेता की बातचीत इस मामले में बहुत प्रासंगिक है. जेडीयू के इस गुमनाम नेता का कहना है, "हकीकत तो ये है कि लालू और उनके परिवार के आर्थिक घपले और जेल में बंद गैंगस्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन से उनका रिश्ता - ये ऐसी बातें हैं जो सरकार की छवि को खराब कर रही हैं. नीतीश ने लंच से दूरी सोनिया नहीं बल्कि लालू के कारण बनायी."

बात में दम तो है. लेकिन सच ये भी है कि नीतीश को लालू के चलते सोनिया गांधी से दूरी बनाना काफी मुश्किल होगा. ये लालू ही हैं जिन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठने पर खुल कर साथ दिया था. नीतीश को महागठबंधन की ओर से सीएम कैंडिडेट बनवाने में भी कांग्रेस की ही भूमिका सामने आयी थी.

तो क्या वाकई नीतीश सोनिया के लंच में हिस्सा न लेकर सिर्फ लालू को कोई मैसेज देना चाहते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि नीतीश इसी बहाने सोनिया और राहुल गांधी को भी कुछ संदेश देने की कोशिश कर रहे हों - मसलन, कोई भी उन्हें हल्के में न ले.

सियासत में विकल्प हमेशा खुले रहते हैं. वैसे भी जब नीतीश इतनी लंबी दुश्मनी भुलाकर लालू से दोस्ती कर सकते हैं तो क्या उसका उल्टा नहीं संभव है. बीजेपी से भी एक बार फिर हाथ मिलाने में बुराई क्या है? वैसे बीजेपी को भी तो नीतीश की उनसे ज्यादा जरूरत है. क्या बगैर नीतीश की मदद के बीजेपी बिहार में गोल्डन एरा वाला मुकाम हासिल कर सकेगी?

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