डीके शिवकुमार या सिद्धारमैया? कहीं कर्नाटक में राजस्थान जैसे हालात न हो जाएं!
कर्नाटक में भले ही कांग्रेस पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की हो लेकिन हाई कमांड और राहुल गांधी के सामने जो बड़ा प्रश्न है, वो ये कि राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा? कर्नाटक में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच जैसा गतिरोध चल रहा है कांग्रेस के सामने चुनौतियों का पहाड़ है.
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2024 के आम चुनावों से पहले 224 सीटों में से 135 सीटें जीतकर भले ही मृत्युशैया पर पड़ी कांग्रेस ने संजीवनी हासिल कर ली हो. मगर एक सवाल जो अब भी तमाम पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के सामने है, वो ये कि कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? चुनाव के ठीक बाद कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री को लेकर सस्पेंस बढ़ने के साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच सत्ता के बंटवारे को लेकर दरार पैदा हो गई है.
बताते चलें कि तमाम तरह के विवाद के बीच पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सत्ता-साझाकरण का फॉर्मूला पेश किया था. सिद्धारमैया द्वारा कहा गया था कि, उनकी उम्र बढ़ रही है, वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और कम से कम अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस सरकार को चलाना चाहते हैं. हालांकि, डीके शिवकुमार ने सत्ता-साझाकरण के फार्मूले को खारिज कर दिया और राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मामलों का हवाला दिया.
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया का गतिरोध कहीं कर्नाटक में कांग्रेस को मुसीबत में न डाल दे
ध्यान रहे छत्तीसगढ़ में कुर्सी के चक्कर में जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच रार देखने को मिल रही है. तो वहीं राजस्थान में कुर्सी की जो लड़ाई सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच जारी है, वो किसी परिचय की मोहताज नहीं है.
जिक्र कर्नाटक और वहां कांग्रेस पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री के चयन का हुआ है तो बताते चलें कि दोनों ही वरिष्ठ नेताओं डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच जैसा गतिरोध चल रहा है उसने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को मुसीबत में डाल दिया है. पार्टी आलाकमान इस बात को लेकर दुविधा में है कि अगर डीके शिवकुमार को कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) का नेता चुना जाता है तो सिद्धारमैया को कैसे समायोजित किया जाए.
कर्नाटक की सियासत को समझने वाले इस बात पर बल दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद के लिए डीके शिवकुमार की दावेदारी इस लिए भी पक्की है, क्योंकि उन्होंने पिछले तीन सालों में पार्टी को फर्श से उठाकर अर्श पर पहुंचाया है. कहा ये भी जा रहा है कि कर्नाटक में कांग्रेस आज सरकार बनाने की पोजीशन पर पहुंची है तो इसकी एकमात्र वजह वो मेहनत है जो गुजरे सालों में डीके शिवकुमार ने की.
अगर डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद से वंचित किया जाता है, तो इससे पार्टी कार्यकर्ताओं को गलत संदेश जा सकता है क्योंकि एक ऐसी कहानी बनाई गई है कि जिसमें कहा गया है कि पार्टी हमेशा अपने वफादारों के साथ है और जो भी फैसले पार्टी द्वारा लिए जाते हैं वो वफ़ादारों को ध्यान में रखकर हो होते हैं.
चूंकि अभी डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया को लेकर फैसला आना है इसलिए सबकी नजर हाई कमांड पर है. चाहे वो जनता हो या फिर पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स सभी ये जानने को आतुर हैं कि क्या पार्टी डीके शिवकुमार को उनकी वफादारी का फल देगी? या फिर एक बार फिर सिद्धू मैजिक चलेगा और सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनने में कामयाब होंगे?
मुख्यमंत्री की रेस में क्या हैं वो बातें जो डीके शिवकुमार का पलड़ा भारी करती हैं.
पैसे से बेहद मजबूत होने के अलावा डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले एक बड़े नेता हैं. जिनकी विधायकों में मजबूत पकड़ है. डीके शिवकुमार के बारे में एक रोचक तथ्य ये भी है कि उन्हें एक ट्रबल शूटर के रूप में जाना जाता है. ध्यान रहे केपीसीसी की अपनी अध्यक्षता में, उन्होंने पहली बार अपनी पार्टी को सबसे अधिक सीटों पर जीत हासिल करवाई है.
चूंकि हाई कमांड के बीच भी डीके शिवकुमार एक बड़े चेहरे के रूप में देखे जाते हैं इसलिए संभावना है कि पार्टी मुख्यमंत्री का भार उनके कंधों पर डाल दे.
वहीं तमाम कयासों के बीच डीके शिवकुमार मीडिया से मुखातिब हुए हैं और अपने को वन मैन आर्मी बताते हुए इस बात पर बल दिया कि मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी इसलिए है क्योंकि उनके अकेले की बदौलत कर्नाटक में कांग्रेस 135 सीटें जीतने में कामयाब हुई है.
बातें को कर्नाटक में सिद्धारमैया की दावेदारी को देती हैं मजबूत आधार
डीके शिवकुमार भले ही विधायकों के बीच लोकप्रिय हों. लेकिन जब हम कर्नाटक चुनाव और फिर आए नतीजों को जनता के परिदृश्य में देखें। तो कर्नाटक में सिद्धारमैया जनता के बीच खासे लोकप्रिय हैं. जनता के बीच सिद्धारमैया क्यों पसंद किये जाते हैं? इसकी भी वजह कम दिलचस्प नहीं है, दरअसल सिद्धारमैया अहिन्दा के प्रचारक हैं.
बताते चलें कि अहिंदा में अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और एससी एंड एसटी शामिल हैं और इस बार के चुनाव में इस वर्ग का पूरा वोट कांग्रेस को गया है. बात आगे बढ़े उससे पहले कर्नाटक के परिदृश्य में हमें इस बात को भी समझना होगा कि, भले ही डीके शिवकुमार के समर्पित फॉलोवर्स हों. लेकिन जब बात एक राज्य के रूप में कर्नाटक की आती है तो सिद्धारमैया के फॉलोवर्स पूरे राज्य में हैं जो सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.
डीके शिवकुमार जहां केवल पुराने मैसूर क्षेत्र जैसे रामनगर, कनकपुरा तक सीमित हैं. तो वहीं जब हम सिद्धारमैया को देखते हैं तो इनकी पकड़ कोस्टल कर्नाटक के अलावा उस हिस्से में भी है जो कर्नाटक को महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश से जोड़ता है.
क्यों पार्टी सिद्धारमैया के पक्ष में ले सकती है फैसला
इस बात में कोई शक नहीं है कि कर्नाटक में मोदी मैजिक अपना जलवा बिखेरने में नाकाम रहा है. ऐसे में आज नहीं तो कल भाजपा अपनी इस बेइज्जती का बदला ले सकती है. और क्योंकि डीके शिवकुमार पर पहले ही ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग केस के तहत अपना शिकंजा कसा हुआ है, उनकी गिरफ्तारी किसी भी क्षण हो सकती है. इसलिए अगर हाई कमांड डी के शिवकुमार की जगह सिद्धारमैया को तरजीह देता है तो अपने को बड़े संकट से बचा सकता है.
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