Maharashtra CM कौन बनेगा? इस कुर्सी के झगड़े का अपना इतिहास है
महाराष्ट्र चुनाव (Maharashtra Assembly Election) में भाजपा-शिवसेना (BJP-Shiv Sena) को बहुमत तो मिल गया है, लेकिन मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) पद को लेकर पेंच फंस गया है और सरकार नहीं बन पाई है. वैसे महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर झगड़ा हमेशा से रहा है.
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महाराष्ट्र चुनाव (Maharashtra Assembly Election) के नतीजे आए करीब दो हफ्ते बीत चुके हैं और सरकार बनाने में महज दो दिन का वक्त बचा है. हालांकि, अभी तक शिवसेना और भाजपा (BJP-Shiv Sena) के बीच ये तय नहीं हो सकता है कि मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) कौन बनेगा. शिवसेना चाहती है कि आधे समय तक यानी ढाई साल (50-50 Formula) तक उनका मुख्यमंत्री बने, जबकि भाजपा को शिवसेना की ये मांग मंजूर नहीं है. सारा मामला मुख्यमंत्री के पद पर आकर अटका हुआ है. वैसे महाराष्ट्र की राजनीति में मुख्यमंत्री के पद को लेकर जैसी उठा-पटक देखने को मिल रही है, ये महाराष्ट्र का चरित्र है. अगर इतिहास के पन्ने पलटें तो मिलेगा कि महाराष्ट्र में हर चुनाव में मुख्यमंत्री पद को लेकर झगड़ा हुआ है. तमाम कोशिशों के बाद अगर कोई मुख्यमंत्री बना थी, तो वह ज्यादा समय तक टिक नहीं सका. आपको बता दें कि देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है.
मौजूदा हालात में महाराष्ट्र (Maharashtra Assembly Election) में राजनीतिक पार्टियों के पास दो दिन बचे हैं. 9 नवंबर तक अगर सरकार नहीं बनाई जा सकी, तो राज्य में अन्य कोशिशें शुरू हो जाएंगी. सबसे पहले तो देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा. फिर महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) उन्हें केयरटेकर सीएम नियुक्त करेंगे और सरकार बनाने की संभावनाएं तलाशने को कहेंगे. इसके तहत पहले तो सबसे बड़ी पार्टी को बुलाकर उससे सरकार बनाने की संभावनाओं पर बात की जाएगी और फिर विपक्ष की पार्टियों को भी बुलाकर उनसे बात की जाएगी. इन सबके बाद गवर्नर (Maharashtra Governor) की ओर से एक रिपोर्ट दी जाएगी और उसमें महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन (President Rule) लगाने का सुझाव दिया जा सकता है. हालांकि, इसकी नौबत आने की गुंजाइश कम है. क्योंकि समय रहते यदि नई विधानसभा का गठन नहीं होता है, तो नए विधायकों की शपथ भी नहीं होगी. और ऐसा कोई भी नहीं चाहेगा.
हमेशा की तरह इस बार भी महाराष्ट्र में लड़ाई मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर हो रही है.
1999 में 11 दिन लग गए थे सरकार बनाने में
ये बात 1999 की है. तब एनसीपी अभी नई-नई पार्टी बनी थी. एनसीपी और कांग्रेस ने वो चुनाव अलग-अलग लड़ा था. वहीं दूसरी ओर शिवसेना-भाजपा पुनर्चुनाव के लिए वोट मांग रहे थे. 7 अक्टूबर को नतीजे घोषित हो गए. एनसीपी को 58 सीटें मिलीं, कांग्रेस को 75 सीटें मिलीं और भाजपा-शिवसेना के गठबंदन को 125 सीटें मिलीं, जिसमें 69 शिवसेना ने जीतीं, जबकि 56 भाजपा के खाते में गईं. तत्कालीन गवर्नर पीसी एलेक्जेंडर ने पहले भाजपा-शिवसेना के गठबंधन को बुलाया और सरकार बनाने की संभावनाओं पर बात की, लेकिन बहुमत ना होने की वजह से वह सरकार नहीं बना सके. इसके बाद कांग्रेस और एनसीपी को साथ लाने की कोशिशें शुरू हुईं. 18 अक्टूबर को कांग्रेस ने एनसीपी और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई और विलासराव देशमुख ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. सरकार बनाने में 11 दिन लग गए.
2004 में जब 16 दिन लगे सरकार बनाने में
ये बात 2004 की है, जब 2019 की तरह ही दो गठबंधनों ने चुनाव लड़ा था. 16 अक्टूबर को नतीजे आ गए थे. कांग्रेस और एनसीपी ने 140 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा-शिवसेना के खाते में 126 सीटें आईं. वैसे तो कांग्रेस-एनसीपी के पास उस समय भी सरकार बनाने के लिए कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन था, लेकिन एक दिक्कत थी. एनसीपी ने 71 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 69. इस तरह एनसीपी ने मुख्यमंत्री पद की मांग कर ली, क्योंकि ये सामान्य सी बात थी कि जिसके पास अधिक सीटें हैं वही मुख्यमंत्री पद लेगा. लगभग वैसी ही स्थिति, जैसी इस समय महाराष्ट्र में है. ऐसे में बहुमत होने के बावजूद बहुत दिनों तक सरकार नहीं बन सकी, जैसा कि इस बार भी महाराष्ट्र में हो रहा है. बहुमत तो है, लेकिन सीएम की सीट पर बात नहीं बन पा रही और सरकार नहीं बन पा रही है. आखिरकार 16 दिनों के संघर्ष के बाद कांग्रेस और एनसीपी में समझौता हो गया और विलासराव देशमुख ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि, दोनों के बीच जो फॉर्मूला तय हुआ, उसके तहत बंटवारे में काफी समय लगा और 13 दिनों तक कैबिनेट नहीं बन सकी. हालांकि, गर्वनर मोहम्मद फैजल ने कांग्रेस और एनसीपी को अपने मतभेदों से निपटने का समय दिया और इंतजार किया.
अब अगर इतिहास को देखें तो एक बात तो साफ हो जाती है कि मुख्यमंत्री के पद को लेकर महाराष्ट्र में हमेशा से ही विवाद होता रहा है. इस बार भी मुख्यमंत्री का पद ही है जो सरकार बनाने की राह में रोड़ा बना हुआ है. भाजपा-शिवसेना के पास बहुमत है, एनसीपी ने पहले ही कह दिया है कि वह विपक्ष में बैठेगी, लेकिन शिवसेना है कि ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री का पद लिए बिना मानने को तैयार नहीं है. भाजपा भी ऐसे किसी फॉर्मूले में नहीं पड़ना चाहती है क्योंकि एक बार यूपी में मायावती ने भाजपा को धोखा दिया था और दूसरी बार कर्नाटक में कुमारस्वामी ने. ऐसे में दो बार धोखा खा चुकी भाजपा फिर से उसी रास्ते पर नहीं चलता चाहती है.
जानकारी के लिए: सिर्फ 2 मुख्यमंत्री ही कार्यकाल पूरा कर सके हैं
महाराष्ट्र की राजनीति में अब तक सिर्फ दो मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) हुए हैं, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है. दूसरे हैं देवेंद्र फडणवीस और पहले थे वसंतराव नाइक. महाराष्ट्र में अधिकतर समय कांग्रेस की सत्ता रही है. कभी 50-50 फॉर्मूले के चलते, तो कभी नाकामी की वजह से या फिर कुछ बार केंद्र में बुला लिया जाने के चलते महाराष्ट्र में एक ही कार्यकाल में दो या दो से अधिक मुख्यमंत्री रहे. महाराष्ट्र में सबसे अधिक समय तक वसंतराव नाइक ही मुख्यमंत्री रहे. वह पहली बार 5 दिसंबर 1963 को मुख्यमंत्री बने, दूसरी बार 13 मार्च 1972 को सीएम बने. तीसरी बार वह 13 मार्च 1972 से 20 फरवरी 1975 तक मुख्यमंत्री रही. वह कुल 11 साल 77 दिनों तक लगातार मुख्यमंत्री रहे. वसंतराव के बाद अब देवेंद्र फडणवीस ने भी वही कीर्ति हासिल कर ली है, लेकिन लग रहा है इस बार वैसा नहीं होगा. जैसे हालात महाराष्ट्र में हैं, ये तो तय है कि एक मुख्यमंत्री पूरे समय तक सत्ता में नहीं रह सकेगा, किसी न किसी फॉर्मूले के तहत की सरकार बनेगी, भले ही वह 50-50 हो या फिर 30-70.
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