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Updated: 25 मई, 2017 06:24 PM
स्वाति चतुर्वेदी
स्वाति चतुर्वेदी
 
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आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों गायक अभिजीत भट्टाचार्य, सोनू निगम, अभिनेता अजय देवगण, अनुपम खेर, रणदीप हुड्डा और क्रिकेटरों गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग तक खुलेआम महिलाओं के प्रति अपनी कुंठा, कट्टर सोच और यहां तक की हिंसा भड़काने वाले बयानों के साथ ट्विटर ट्रोल के एक नए रोल में सामने आए हैं?

तो इसका सटीक जवाब ये है कि इस राष्ट्रभक्ति के दौर में कट्टर होना ही सबसे फायदे का सौदा है.

अभिजीत और सोनू निगम जैसे खाली बैठे लोगों के लिए ये एक सुनहरा मौका है कि वो पेड ट्रोल्स का ध्यान अपनी तरफ खींच सकें. ये ट्रोल किसी भी डी ग्रेड या फिर बिग बॉस टाइप सेलिब्रिटी को हैश टैग और ट्रेंड कराने के लिए बेकरार रहते हैं.

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उदाहरण के लिए, अभिजीत को ही देख लें. अभिजीत का ट्विटर अकाउंट जेएनयू की छात्र नेता और पूर्व जेएनयूएसयू उपाध्यक्ष शेहाला राशिद के खिलाफ भद्दे और अश्लील कमेंट की पूरी एक श्रृंखला पोस्ट करने के बाद बंद कर दिया गया है. अभिजीत ने रशीद के बारे में अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा था- 'इस बात की अफवाह है कि उसने एक क्लांइट से दो घंटे के लिए पैसा लिया था लेकिन वो उसे खुश नहीं कर पाई थी... ये एक बड़ा रैकेट है'. ऐसा नहीं है कि अभिजीत ने ये पहली बार किया है. मैं खुद उनके ऑनलाइन पीड़ितों में से एक रही हूं.

इसी तरह अभी कुछ दिन पहले सोनू निगम ने अज़ान के समय लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर ट्वीट करके हंगामा मचाया था. और अभिजीत के सपोर्ट में उन्होंने ट्विटर से अपना अकाउंट भी डिलीट कर दिया है. लेकिन अपना ट्विटर अकाउंट डिलीट करने के पहले उन्होंने भी अरुंधति रॉय और शेहाला राशिद के खिलाफ खुब आग उगली थी.

लेकिन दोष सिर्फ डी-ग्रेड लोगों को ही क्यों देना जब अहमदाबाद से सांसद और अभिनेता परेश रावल ने इस आग को हवा दी. परेश रावल ने ट्विटर की तमीज को ताक पर रखकर प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय के खिलाफ लोगों को भड़काने का काम किया है. सोशल मीडिया पर अरुंधति रॉय के खिलाफ नफरत की आग को भड़काने के आगे परेश रावल ने सांसद बनने के समय लिए गए अपने शपथ को भी दरकिनार कर दिया.

परेश रावल संसद की अपनी पहली पारी में ना के बराबर असर छोड़ पाए हैं. लेकिन चर्चा इस बात की है कि रावल की निगाहें अब गुजरात पर टिकी हैं, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. उनको गुजरात विधानसभा में एक प्रतिष्ठित पद पाने के सपने देख रहे हैं. और उन्हें ये बात बहुत अच्छे से समझ आ गई है कि इस पद को पाने की पहली सीढ़ी दस मुंह वाले ट्रोल हैं.

सोशल मीडिया के जरिए मेनस्ट्रीम मीडिया को बाईपास करने की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति से बीजेपी बखुबी वाकिफ है. जब खुद पीएम का ट्विटर अकाउंट 60 से ज्यादा ट्रोल प्रोफाइल को फॉलो करते हैं तो फिर अरूंधति रॉय को शील्ड के तौर पर इस्तेमाल किए जाने से बेहतर भला और क्या होगा. और अगर ट्रोल ब्रिगेड ने परेश रावल को उनके ट्वीट के बाद एक राष्ट्रवादी हीरो के तौर पर मशहूर कर दिया तो फिर इससे अच्छी खबर क्या होगी?

अजय देवगन का मामला लेते हैं तो अजय देवगन तम्बाकू उत्पादों का समर्थन करते हैं और रेडियो के विज्ञापनों में लोगों से 'केसरिया' बोलने के लिए कहते हैं. मजेदार बात तो ये है कि पनामा पेपर में नाम आने के बावजूद अजय देवगन और पीएम मोदी की कई बार बैठक हुई है. इसके पीछे का कारण है कि अजय देवगन ने सार्वजनिक रूप से नोटबंदी का समर्थन किया था. यही नहीं साथ में उन्होंने दावा भी किया था कि नोटबंदी की वजह से उनकी फिल्म शिवाय को ज्यादा खरीददार नहीं मिले इस बात से भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.

साफ है कि सरकार की आंखों का तारा बनकर रहने पर दोनों हाथों में लड्डू होगा इस बात की गारंटी है. यही कारण कि शायद भारत में 'बढ़ती असहिष्णुता' के विरोध में अपने पुरस्कार वापस लौटाने वाले लेखकों और कलाकारों के विरोध में 'सहिष्णुता मार्च' निकालने वाले अनुपम खेर को पिछले साल पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

अनुपम खेर की पत्नी किरण खेर भाजपा सांसद हैं. और खुद अनुपम खेर ने मोदी के खिलाफ बोलने कई पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को ट्विटर पर ट्रोल किया है. लगता है कि अनुपम खेर की नजर संसद में नामांकित कोटा सीट पर है जो सरकार के हाथों में है.

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साफ है कि तथाकथित 'राष्ट्रवादी/हिंदुत्व' होने के अपने फायदे हैं. शायद यही वजह है कि गौतम गंभीर और वीरेंद्र सहवाग जैसे क्रिकेटरों ने कारगिल शहीद की 20 वर्षीय, कॉलेज जाने वाली बेटी गुरमेहर कौर के खिलाफ ऑनलाइन हमला करने से परहेज नहीं किया. और यही नहीं उनके नेतृत्व में अभिनेता रणदीप हुड्डा ने भी गुरमेहर को ट्रोल करने की गंगा में हाथ धो लिया.

कौर का अपराध क्या था? सिर्फ ये कि वो युद्ध से नफरत करती है. सीमा पार से आने वाली आतंकवादी गोलियों के कारण अपने पिता को खोने के बावजूद वो भारत-पाक के बीच युद्ध नहीं चाहती.

लेकिन सिर्फ इसी वजह से वो सोशल मीडिया पर भयानक तरीके से ट्रोल की गई. लोगों ने उसकी देशभक्ति पर सवाल खड़ा कर दिया. गौतम गंभीर ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए तिरंगे की तुलना 'एक कफन' से की थी जिसका प्रयोग जम्मू और कश्मीर में 'राष्ट्रविरोधी' को लपेटने और उन्हें शर्मिन्दा करने के लिए किया जाना चाहिए.

पद्म पुरस्कार, विभिन्न कमिटियों में आराम का पद और राज्य सभा के नामांकन; दिग्गज मंत्रियों से समय-समय पर पर्सनल मीटिंग और सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाना, आखिर रिटायरमेंट के बाद सेलिब्रिटी लोगों को अपना करियर प्लान करना होता है ना. ये सब उसके लिए एक तैयारी है बस.

ट्रोल कहीं नहीं जाने वाले. वो यहीं रहेंगे और ट्रोल करते रहेंगे. इनके और खूंखार और भयानक होने का इंतजार कीजिए.

( Dailyo.in से साभार )

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