मौलवी साहब के फतवे में साजिश की बू आ रही है !
मौलवी साहब को धर्म के मार्ग पर चलने का इतना ही शौक है तो उन्हें उन मुसलमानों के लिए कुछ करना चाहिए जो आज भी बहुतायत में गरीबी रेखा के नीचे रह कर संघर्ष कर रहे हैं.
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मुसलमान बड़ी जज़्बाती कौम है. अभी भले ही अगले की बात झट से बाहर न निकली हो मगर गाहे बगाहे इनकी भावना पहले से आहत हो जाती है. गुजरे जमाने के मशहूर प्ले बैक सिंगर सोनू निगम कई दिनों से खालीपन की मार झेल रहे थे. अरिजीत सिंह, मीका, हनी सिंह, बेनी दयाल, मोहित चौहान, बादशाह और अंकित तिवारी की वजह से, न उन्हें नींद आ रही थी, न चैन आ रहा था. कुल मिला के सोनू सोने की कोशिश करते मगर सोनू का सोना नो कह देता. अपने खालीपन में सोनू को बड़ी कस के इच्छा हुई कि वो भी कुछ खास लोगों की तरह सोशल मीडिया के दो सबसे बड़े प्लेटफार्म ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड करें.
फिर क्या था. सोनू सोचते गए, सोचते रहे और इस नतीजे पर पहुंचे कि चलो कुछ ऐसा तूफानी किया जाये कि सोशल से लेके मेनस्ट्रीम मीडिया तक सोनू का सोना एक नेशनल समस्या बन जाये. उन्होंने इस महत्वपूर्ण परियोजना को अंजाम देने के लिए अज़ान का सहारा लिया. उसके बाद जो हुआ, जैसा भी हुआ वो ट्विटर से लेके फेसबुक तक हमारे सामने है.
बहरहाल, सोनू के सोने और अज़ान से उत्पन्न हंगामे के बाद कहानी में ट्विस्ट तब आया जब पश्चिम बंगाल के एक मोलवी ने अपना रोष प्रकट करते हुए सोनू के स्टेटमेंट की कड़े शब्दों में निंदा की. मोलवी ने ये फ़तवा दे दिया कि जो कोई भी व्यक्ति सोनू को गंजा करेगा वो उसे दस लाख रुपया देंगे. सोनू बिल्कुल खाली थे और उन्हें ट्रेंड में बने रहना था. उन्होंने मौलवी साहब की भावना का पूरा सम्मान करते हुए, पहले मीडिया को बुलाया फिर प्रेस कांफ्रेंस कर खुद अपने हेयर स्टाइलिस्ट आलिम हकीम से बाल ट्रिम करवाए. बंगाली मौलवी साहब को ठेंगा दिखाते हुए, सोनू ने उन्हें अपनी शर्त पूरी करने को कहा.
टोपी पहनाने के मामले में मौलवी साहेब सोनू से भी बड़े वाले निकले. उन्होंने 10 लाख देने से मना करते हुए ये कहा कि सोनू ने शर्त पूरी नहीं की. हेड शेव से पहले उन्हें पहले चप्पल जूतों की माला पहननी थी और फिर समुदाय विशेष से माफी मांगना था.
आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है. बीते कई दिनों से सुर्खियों से गायब सोनू इस मामले के चलते दोबारा फिर सुर्खियों में आ चुके हैं. मौलवी साहब को भी लोग पहचानने लगे हैं, उन्हें भी पब्लिसिटी मिल गयी है. मगर इस देश के मुसलमानों का क्या? वो मुसलमान जो आज भी अपने मौलवी की बात और खासकर उसके फतवों को पत्थर की लकीर मानते हैं. कह सकते हैं कि आज हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें कोई भी इंसान गोल टोपी लगाकर, दाढ़ी रखने के बाद, पैजामा या पतलून ऊंची करके फतवे दे सकता है.
व्यक्तिगत रूप से मुझे मौलवी साहब के फतवे में साजिश की बू आ रही है. एक ऐसी बू जिसने मेरी नाक के बाल जलाकर राख कर दिए हैं. मौलवी साहब के फतवे वाले केस में मुझे दो बातें नजर आ रही हैं. पहली ये कि या तो मौलवी साहेब के पास उल्टे सीधे फतवे के लिए विदेशों से फंडिंग हो रही है. दूसरी ये कि या तो मौलवी साहब के पास नोटबंदी से पहले के 1000 और 500 के नोट होंगे जो वो धर्म के मार्ग पर खर्च करना चाह रहे थे और जाने अनजाने सोनू ने उन्हें मौका दे दिया.
अंत में इतना ही कि यदि मौलवी साहब को धर्म के मार्ग पर चलने का इतना ही शौक है तो उन्हें उन मुसलमानों के लिए कुछ करना चाहिए जो आज भी बहुतायत में गरीबी रेखा के नीचे रह कर संघर्ष कर रहे हैं. हां गरीबी रेखा के नीचे रह रहे वही मुसलमान जो रोड के किनारे इस अप्रैल की दोपहरी में पंचर जोड़ रहे हैं. टाट के पर्दों के पीछे गोश्त काट रहे हैं. सलमान शाहरुख और ऋतिक रोशन के पोस्टर संग दाढ़ी और बाल बना रहे हैं. मैं वाकई खुश होता अगर मौलवी साहब हकीकत में कुछ करते.
अब क्या कहूं मौलवी साहब की बातें भी मुझे जन धन खाते में 15 लाख जैसी ही दिख रही हैं जिससे मुझे खीझ हो रही है. वो बातें जिससे उत्पन्न रोष के चलते मेरी फेसबुक प्रोफाइल काले रंग के अक्षरों से पटी पड़ी है जिसपर लोग अपना गुस्सा निकाल रहे हैं और जीतते हारते हुए वापस अपने घर की तरफ कूच कर रहे हैं.
मैं मोलवी साहब से बस एक बात कह कर अपनी बात खत्म कर रहा हूं. मौलवी साहब आपके टूथ पेस्ट में नमक नहीं है, अगर नमक होता तो आप उस अल्लाह से जरूर डरते जिसकी ठेकेदारी का जिम्मा अब आप और आप जैसों ने अपने कंधे पर उठा लिया है. मार्क्स ने तो धर्म को अफ़ीम कहा था. आपने तो इसे हेरोइन बना के हमें चटा दिया और इस इन्टॉलरेंस के दौर में अपनी हरकतों से दोबारा शर्मिंदा कर दिया.
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