उत्तर प्रदेश: बुआ-भतीजा मिलकर कांग्रेस को महागठबंधन से अलग क्यों रखना चाहते हैं
अब बुआ-भतीजे को लगने लगा है कि उन्हें भाजपा को हराने के लिये गठबंधन की कुंजी मिल गई है और इसमें कांग्रेस के लिए कोई जगह नहीं है.
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एक तरफ जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस महागठबंधन बनाने की हर सम्भव कोशिश कर रही है वहीं इसके लिए उत्तर प्रदेश से अच्छे संकेत नहीं आ रहे हैं. बुआ यानी बसपा सुप्रीमो मायावती और भतीजा यानी सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
मायावती के अनुसार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की गलत आर्थिक नीतियों पर ही मोदी सरकार आगे बढ़ रही है, जिसकी वजह से पेट्रोल-डीजल के दाम में इस तरह की बढोत्तरी हुई है. वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव के अनुसार जो भी पार्टियां केंद्र में रही हैं वो ही इसके लिए जिम्मेदार हैं. पिछली बार कांग्रेस ने पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाये जिसके कारण भाजपा को केंद्र में सरकार बनाने का मौका मिला. मतलब साफ है बसपा और सपा दोनों ने ही कांग्रेस को इसके लिए जिम्मेदार माना चाहे मंशा जो भी हो.
सपा और बसपा का साथ आना कांग्रेस के लिए अच्छी खबर नहीं है
अभी दस सितंबर को कांग्रेस द्वारा भारत बंद के आह्वाहन पर जहां 20 पार्टियों ने हिस्सा लिया वहीं बसपा और सपा की तरफ से किसी भी प्रतिनिधि ने भाग नहीं लिया था. तो सवाल तो उसी दिन से उठने लगे थे.
- आखिर क्यों उत्तर प्रदेश के इन दो महत्वपूर्ण दलों ने अपने आप को इस बंद से अलग क्यों रखा?
- कहीं सत्ता के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले यूपी में सीटों का बंटवारा दबाव के तहत उठाया गया कदम तो नहीं है?
- कहीं मायावती यह दिखाने की कोशिश तो नहीं कर रहीं कि प्रदेश में उनकी भूमिका एक कप्तान की तरह है और खेल के सभी नियम भी वही तय करेंगी?
- कहीं मायावती ने इस साल के आखिर में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में ज़्यादा सीटें लेने के लिए चाल तो नहीं चली है?
- कहीं मायावती के दिमाग में ये बात तो नहीं है कि ज़्यादा राज्यों में वो बसपा की उपस्थिति दर्ज़ कराए तथा अपना वो राष्ट्रीय पार्टी का तमगा बरकरार रखे ताकि अगर 2019 में गैर भाजपा गठबंधन बनाने की नौबत आए तो वो सबसे आगे अपनी उम्मीदवारी पेश कर सकें?
खैर, कारण चाहे जो भी हो कांग्रेस के लिए शुभ संकेत तो नहीं ही है. वैसे भी उत्तर प्रदेश की 80 लोक सभा सीटों में पिछली बार कांग्रेस को 2 ही पारम्परिक सीटों- अमेठी और रायबरेली पर जीत हासिल हुई थी. दरअसल उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनावों के नतीजों ने भी सपा-बसपा के गठबंधन को काफी हद तक ये विश्वास दिलाया है कि वो बिना कांग्रेस के ही भाजपा को पटखनी देने में सक्षम हैं. गोरखपुर और फूलपुर में कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं थी. हालांकि कैराना में कांग्रेस ने सपा-बसपा-आरएलडी के उम्मीदवार को समर्थन दिया था. वहीं 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन के बुरे अनुभव के बाद अखिलेश यादव को भी लगने लगा है कि कांग्रेस को साथ लेने में कोई फायदा नहीं है. अब शायद बुआ-भतीजे को लगने लगा है कि उन्हें भाजपा को हराने के लिये गठबंधन की कुंजी मिल गई है और इसमें कांग्रेस के लिए कोई जगह नहीं है.
अब चूंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के साथ भी महागठबंधन बनाने के लिए व्याकुल है, उनके पीछे चलने के भी संकेत दे चुका है. ऐसे में बुआ-भतीजे ने मिलकर कांग्रेस के लिए एक नई चुनौती पेश कर दी है.
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