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Updated: 08 अगस्त, 2016 11:45 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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सितंबर 11, 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले की जांच के लिए अमेरिकी संसद ने कांग्रेशनल कमेटी बनाई. कमेटी ने 6 महीने बाद 2002 में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश को अपनी अग्रिम रिपोर्ट सौंप दी. रिपोर्ट के एक अंश को देखकर बुश के होश उड़ गए और उन्होंने कमेटी की रिपोर्ट से उस अंश को संवेदनशील और गोपनीय करार देते हुए निकाल फेंका. रिपोर्ट का यह अंश कुल 28 पन्नों में दर्ज था लिहाजा इसे ‘दि मिसिंग 28 पेजेस’ के नाम से जाना गया. यहीं से शुरूआत हुई एक कॉस्पिरेसी थ्योरी की. बुश सरकार पर आरोप लगा कि उसने इन पन्नों को रिपोर्ट से इसलिए गायब कर दिया क्योंकि यहां हमलों के लिए जिम्मेदार अलकायदा का साउदी अरब की सरकार से रिश्तों का जिक्र था. ये पन्ने गायब न होते तो 9/11 हमलों के लिए साउदी अरब को जिम्मेदार ठहराया जाता. अब इन पन्नोें को रिलीज कर दिया गया है.

अमेरिकी संसद से लेकर मौजूदा चुनाव प्रचार में इन गायब पन्नों से राजनीति गरमा रही है. रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप से लेकर पार्टी की तरफ से दौड़ में शामिल हुए टेड क्रूज के प्रचार में इन 28 पन्नों को जनता के सामने लाने की अपील की गई थी. डोनाल्ड ट्रंप का दावा रहा है कि इन 28 पन्नों के तथ्य से देश को पता चल जाएगा कि 9-11 हमलों का असली गुनहगार कौन है. लिहाजा इन 28 गायब पन्नों पर से सस्पेंस उठाकर इन हमलों में शिकार लोगों और उनके परिवार वालों को न्याय दिया जा सकता है.

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अब सवाल यह है कि आखिर 9-11 हमलों के बाद जब तत्कालीन राष्ट्रपति बुश आतंक के खिलाफ युद्ध घोषित करते वक्त दावा कर रहे थे कि उनके इस युद्ध में दुनिया का कोई देश या तो उनके साथ हो सकता है या फिर उनके विरोध में. और यह कि विरोध में रहने वाला देश अमेरिका का दुश्मन माना जाएगा. ऐसी स्थिति में जब अमेरिकी संसद में हमले की जांच करते हुए अग्रिम रिपोर्ट तैयार हुई तो उसी बुश सरकार को उस रिपोर्ट में ऐसा क्या मिल गया कि पूरी रिपोर्ट को न सिर्फ दरकिनार कर दिया गया बल्कि उसे अति संवेदनशील करार देते हुए इन 28 पन्नों को गोपनीय करार दिया गया.

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 राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की हमलों के वक्त की हाल में जारी तस्वीर

गौरतलब है कि अमेरिकी मीडिया में लगातार यह कयास लगता रहा कि पहले जॉर्ज बुश सरकार और फिर बराक ओबामा की सरकार ने इन दस्तावेजों को लगातार गोपनीय बनाए रखा. आरोप का कारण बताया गया कि इनमें वो साक्ष्य मौजूद थे जिससे हमलों के लिए साउदी अरब की सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता था. लिहाजा अमेरिकी सरकार के ऊपर ही सीधे 9-11 हमलों की जांच में लीपा-पोती का आरोप लगा और माना गया कि वह अमेरिका-साउदी रिश्तों को बरकरार रखने के लिए रिपोर्ट से गायब पन्नों की सुध नहीं ले रहा है. आपको याद होगा 2004 में आई विस्तृत 9-11 कमीशन रिपोर्ट में सउदी अरब सरकार की हमलों में किसी तरह की भूमिका को नकार दिया गया था. यहां मिस्ट्री तब पैदा होती है जब अमेरिकी सरकार ने संसद के दबाव के बाद कुछ एडिटिंग करते हुए विवादित पन्नों को जोड़ दिया था.

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अब 14 साल बाद जारी हुए इन पन्नों में कहा गया है कि सितंबर 11 के हमलों में शामिल हुए कुछ साउदी पायलट हमले से पहले साउदी सरकार के आला अधिकारों के संपर्क में थे. इन पन्नों में उन सभी लोगों के नाम पता भी दर्ज हैं जिन्होंने इन पायलटों की अमेरिका में रहने में मदद की थी.

आपको याद होगा कि अमेरिका पर इन हमलों के बाद उसने ईराक और अफगानिस्तान में अल-कायदा और उसके तालिबानी गठजोड़ पर जमकर बमों की बारिश की. अमेरिका की कोशिश लगातार यही रही कि वह हमलों के लिए जिम्मेदार अल-कायदा और ओसामा बिन लादेन को इसी सजा दे. अलकायदा को नुकसान पहुंचाने के बाद अमेरिका ने लगभग एक दशक से ज्यादा समय बाद उसके मुखिया ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में खोज कर मार गिराया. लादेन के मारे जाने के बाद अमेरिकी सरकार ने इसे अमेरिका के गुनहगारों को सजा दे देने की बात कही.

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 बराक ओबामा

अब जिस तरह के आरोप अमेरिकी सरकार पर इस रिपोर्ट के चलते लग रहे हैं उससे तो संकेत यही मिल रहा है कि इन हमलों के लिए जिम्मेदार असली गुनहगार अभी भी महफूज हैं. इसके साथ ही उन गुनहगारों को बचाने की कोशिश भी की जा रही है.

गौरतलब है कि कुछ प्रकाशित खबरों में यह दावा भी किया जा रहा है कि इन पन्नों में वह जानकारी मौजूद नहीं है जिससे 9-11 हमलों के लिए सउदी अरब सरकार को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. हकीकत यह भी है कि हवाई जहाज से किए गए इन हमलों में 19 पायलट में 15 साउदी अरब के नागरिक थे और इनमें अधिकांश ऐसे पायलट थे जो पहले कभी अमेरिका नहीं गए थे. लिहाजा संभावना जताई गई कि जांच के गायब पन्नों में साउदी अरब की सरकार और ओसामा बिन लादेन के बीच गठजोड के जिस खुलासे की उम्मीद थी वह नहीं हुआ.

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ऐसी यदि हुआ होता तो 9-11 को आतंकी हमलों से अलग साउदी अरब का अमेरिका पर हमला तक करार दिया जा सकता था. जिसके बाद अमेरिकी सरकार को अपने सबसे करीबी मित्र देश सऊदी अरब को अपना दुश्मन मुल्क घोषित करना पड़ता. और हमलों में शिकार लोगों और उनके परिवार के नुकसान की भरपाई के लिए उसे साउदी अरब से मुआवजा वसूलना होता. साथ ही अमेरिकी सरकार और बाजार की संपत्ति के नुकसान की भरपाई (वॉर रिपैरेशन) भी साउदी सरकार को करनी पड़ती.

अब इन आरोपों में जरा भी सच्चाई मान ली जाए तो मतलब साफ है कि अमेरिका खुद नहीं चाहता कि 9-11 हमलों के असली गुनहगारों का नाम कभी बाहर आए. इसके लिए वह अपने उन देशवासियों की उम्मीद को भी नजरअंदाज कर सकता है जो बीते 15 साल से आतंक के खिलाफ इस जंग में इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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