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Updated: 21 जुलाई, 2015 01:37 PM
सुरुचि मजूमदार
सुरुचि मजूमदार
  @suruchi.mazumdar
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चीन की मीडिया अब भारत की राजधानी नई दिल्ली से आगे जाकर आंध्र प्रदेश या गुजरात की खबरों में भी क्यों दिलचस्पी दिखाने लगी है? लंबे समय तक बीजिंग का रिश्ता दिल्ली तक ही सीमित था. उनमें भी खासकर केवल उन विषयों तक जिसपर चीन की दिलचस्पी होती थी. लेकिन अब चूकि चीन के कई प्रांत बिजनेस के लिए भारत के अन्य राज्यों में झांकने लगे हैं. इसलिए वहां की मीडिया के लिए बड़ी खबरें अब केवल सीमा विवाद या दलाई लामा तक सीमित नहीं रह गए हैं.

चीन की समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुंबई ब्यूरो के मुख्य संवाददाता तांग लु के अनुसार 10 साल पहले तक चीन के कई लोग गुजरात या आंध्र प्रदेश जैसे भारतीय राज्यों के नाम से परिचित नहीं थे. लेकिन अब वहां भारत के राज्य सरकारों के बारे में लोगों के बीच काफी दिलचस्पी है.

सरकारी नियंत्रण के बावजूद चीन के पास एशिया की सबसे विविध मीडिया है. चीन के ही अलग-अलग शहरों में व्यवसायिक तौर पर सफल बड़े-बड़े मीडिया समूह हैं. पारंपरिक तौर पर भारत से जाने वाली खबरें चीन से जुड़े मुद्दों पर होती थीं. लेकिन अब यह परिस्थिति बदली है. दोनों देशों के राज्यों के बीच बन रहे नए समीकरण अब मीडिया में जगह पाने लगे हैं.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पिछले साल भारत दौरे के बाद अहमदाबाद-ग्वांगझू, दिल्ली-बीजिंग, बेंगलुरू-चेंगडु और कोलकाता-कुनमिंग को 'सिस्टर-सिटी' के तौर पर आगे बढ़ाने का फैसला लिया गया. यह सभी शहर व्यापार, पर्यटन और दूसरे क्षेत्रों में एक-दूसरे को सहयोग देंगे. चीन की विभिन्न प्रांतों की सरकारों ने भी भारतीय राज्यों में इंफ्रास्ट्रक्चर को और विकसित करने के लिए निवेश बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई है.

सिन्हुआ ने इस साल बीजिंग में चीन के उप प्रधानमंत्री वांग यांग की आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से मुलाकात को प्रमुखता से कवर किया. यहां तक कि सिन्हुआ ने नायडू का इंटव्यू भी किया. साथ ही, इसी साल चेन्नई-चोंगपिंग, हैदराबाद-क्वींगडाओ और औरंगाबाग-डुनहुआंग को 'सिस्टर सिटी' की सूची में शामिल किया गया.

नई दिल्ली में स्थित इंस्ट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के सहायक निदेशक जैबिन टी जैकब के अनुसार, नई दिल्ली और भारतीय राज्य अब चीन के राज्यों के करीब जाने की महत्ता समझने लगे हैं. चीन के विकास में उसके प्रांतों की अहम भूमिका है.

हाल तक चीनी मीडिया भी भारतीय राज्यों और यहां के स्थानीय अखबारों में छपने वाली खबरों को कम महत्व देता था. हालांकि चीन की यही मीडिया अन्य देशों के घरेलू मुद्दों को गहराई से कवर करती रही थी. पिछले एक दशक में चीन के बड़े मीडिया घरानों जैसे सीसीटीवी टेलीविजन नेटवर्क, सिन्हुआ और अन्य ने बाहर जाकर अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और अरब देशों में अपने पांव पसारने शुरू किए. स्पेनिश या फ्रेंच बोले जाने वाले देशों में भी सिन्हुआ जैसे एंजेसियों ने स्थानीय खबरों को कवर किया. लेकिन भारत इन सबके बीच चीनी मीडिया के लिए राजनैतिक रूप से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रहा.

चीन की मीडिया ने मुख्य तौर पर देश की साफ छवि पेश करने के इरादे से विदेशों में अपने पांव पसारे. लेकिन अमेरिका जैसी जगहों यह प्रयास बहुत सफल नहीं रहा जहां उसे स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरा समझा गया. चीन की सरकार ने पूरे विश्व में अपने देश की मीडिया को बढ़ावा देने के लिए 2009 में करीब 8.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया. सिन्हुआ अभी 130 से ज्यादा देशों में कई भाषाओँ में खबरों को प्रकाशित करता है.

अब हालांकि दशकों की उदासीनता के बाद चीनी मीडिया की नजरें भारतीय बाजार पर है. चीन के साप्ताहिक टैबलॉयड 'चाइना डेली एशिया विकली' का वितरण सिंगापुर, बैंकॉक और सियोल के साथ-साथ मुबंई और दिल्ली में भी होने लगा है. दो साल पहले 2013 में इस अखबार ने दावा किया कि 2010 में इसकी शुरुआत से तब तक भारत में 40,000 प्रति बांटी जा चुकी थीं. ऐसे ही वर्ष-2012 में भी हांगकांग में स्थित सिन्हुआ के ब्यूरो ने एशिया पैसिफिक डेली नाम की वेबसाइट शुरू की, जहां भारत के स्थानीय खबरों के प्रमुखता दी जाती है. चीन रेडियो भी हिंदी और तमिल भाषा में अपनी सेवाएं प्रसारित करता है.

चीन के फिलहाल दिल्ली और मुंबई में एक दर्जन से ज्यादा पत्रकार हैं. सिन्हुआ और सीसीटीवी भी भारतीय पत्रकारों के साथ मिलकर बड़े पैमान पर यहां काम कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के प्रधानमंत्री थे, तब 2011 के अपने चीन के दौरे में उन्होंने वहां के कुछ चुनिंदा पत्रकारों को संबोधित किया. तभी गुजरात और ग्वांगडोंग को भी 'सिस्टर प्रांत' के तौर पर विकसित करने की बात भी हुई.

भारत के साथ सीमा विवाद भले ही चीन में एकमात्र बड़ी खबर नहीं रह गई हो और भारतीय राज्य वहां के आकर्षण के नए केंद्र बन रहे हैं. लेकिन क्या इसका मतलब यह निकाला जाना चाहिए बीजिंग के साथ रिश्ते अच्छे हो रहे हैं. इस सवाल का जवाब अब भी मिलना बाकी है.

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लेखक

सुरुचि मजूमदार सुरुचि मजूमदार @suruchi.mazumdar

लेखिका एक भारतीय पत्रकार हैं. और हाल ही में उन्होंने सिंगापुर के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से कम्यूनिकेशन में पीएचडी की है.

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