पाकिस्तान को अचानक हाफिज सईद बोझ क्यों लगने लगा?
पाकिस्तान का कहना है कि हाफिज सईद के साथ साथ लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराना आसान है, लेकिन इसके लिए सिर्फ वही जिम्मेदार नहीं है.
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संयुक्त राष्ट्र में भारतीय अधिकारी द्वारा खुद को टेररिस्तान कहे जाने पर पाकिस्तान ने कड़ा ऐतराज जताया था. कश्मीर का मुद्दा उठाने के साथ ही पाकिस्तान ने भारत पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का इल्जाम लगाया. अपनी बात सही साबित करने के लिए पाकिस्तान ने जो तस्वीर पेश की वो फर्जी निकली.
पाकिस्तान लगातार आतंकवाद को संरक्षण देने के भारत के आरोपों को नकारता रहा है, लेकिन अब वो मान रहा है कि हाफिज सईद और दूसरे दहशतगर्द उस पर बोझ बन चुके हैं. सवाल ये उठता है कि आखिर पाकिस्तान ऐसा करने को क्यों मजबूर हुआ है? ऐसा चीन के चलते हुआ है या फिर अमेरिका को ब्लैकमेल करने की कोशिश है?
'टेररिस्तान' का इकबाल-ए-जुर्म
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने आतंकवाद को संरक्षण देने के भारत के आरोपों को एक तरीके से स्वीकार कर लिया है. पाकिस्तान का कहना है कि हाफिज सईद के साथ साथ लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराना आसान है, लेकिन इसके लिए सिर्फ वही जिम्मेदार नहीं है.
न्यूयॉर्क में एशिया सोसायटी में ख्वाजा आसिफ ने साफ लफ्जों में कहा - पाकिस्तान ये स्वीकार करता है कि ये सभी बोझ हैं, लेकिन इससे निजात पाने के लिए हमें वक्त चाहिये.
तो पाक कोई काम अकेले नहीं करता...
क्या पाकिस्तान को ऐसी बातें संयुक्त राष्ट्र में भारत द्वारा घेर लिये जाने पर कहनी पड़ी? क्या अंतर्राष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान को झुकना पड़ा है? या कहीं चीन के बहकावे में आकर पाकिस्तान ने अमेरिका को निशाना बनाया है? या फिर अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस की दक्षिण एशिया यात्रा के दौरान वो जानबूझ कर अमेरिका को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा है? ऐसे कई सवाल हैं जो पाकिस्तानी विदेश मंत्री के बयान के बाद अपनेआप उठने लगे हैं.
भारत दौरे पर आये अमेरिकी रक्षा मंत्री ने भी पाकिस्तान को दहशतगर्दी के मामले में चेतावनी दी थी. ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में चीन में भी पाकिस्तान के खिलाफ आवाज उठी. सम्मेलन का होस्ट होने के बावजूद चीन मुहं देखता रह गया. हाल फिलहाल अमेरिका ने भी पाकिस्तान के खिलाफ पहले के मुकाबले सख्त रूख अख्तियार किया हुआ है. जेम्स मैटिस के अफगान दौरे पर पहुंचे ही थे कि काबुल एयरपोर्ट पर 20 से 30 रॉकेट दागे गये. माना जा रहा है कि निशाने पर नाटो का बेस कैंप था जो एयरपोर्ट के पास ही है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हमले की जिम्मेदारी तालिबान ने ली है और उसकी ओर से कहा गया है कि उसका निशाना अमेरिकी रक्षामंत्री मैटिस ही थे.
हाफिज सईद को संरक्षण देने की बात मानने के साथ ही पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने अमेरिका को भी लेपेटे में ले लिया है.
'कभी अमेरिका का चहेता था हाफिज सईद'
एशिया सोसायटी में पाक विदेश मंत्री आसिफ ने कहा - 'हमें हक्कानी या हाफिज सईद के लिए दोषी मत ठहराइए. ये वे लोग हैं जो बीस साल पहले आपके चहेते हुआ करते थे.'
This #UNGA guest wont mince words: after US left 30 yrs ago "we went to hell" & are "still burning" #Asiasocietylive pic.twitter.com/yCO5BzqJ8r
— Tom Nagorski (@TomNagorski) September 26, 2017
एक रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि आसिफ यहीं नहीं रुके, बोले - 'तब व्हाइट हाउस इनकी अगवानी किया करता था.'
आखिर पाक को क्यों खतरा लगने लगा?
वैसे ये अंतर्राष्ट्रीय दबाव ही रहा है कि पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने हाफिज सईद की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग को मान्यता देने से इंकार कर दिया है. हाफिज सईद की ओर से चुनाव आयोग को अपनी पार्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए अर्जी दी गयी थी, लेकिन सरकार के कहने पर आयोग ने उसे खारिज कर दिया.
पाक चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों चुनावों के दौरान मिल्ली मुस्लिम लीग के नाम के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी है. लाहौर उपचुनाव के दौरान हाफिज सईद का उम्मीदवार शेख याकूब मैदान में तो डटा रहा लेकिन न तो वो अपनी पार्टी और न ही सरगना का नाम इस्तेमाल कर पाया.
जब से अंतर्राष्ट्रीय दबाव विशेष रूप से अमेरिकी प्रेशर पड़ने लगा है, पाकिस्तानी सरकार ने हाफिज की तरफ बढ़े मदद के हाथ खींच लिये हैं. हाफिज सईद आतंकी चोला उतार कर सियासी जामा पहनने की कोशिश कर रहा है. साथ ही, उसका मकसद 2018 का आम चुनाव लड़ना भी है. कहीं ऐसा तो नहीं कि पाक हुक्मरान हाफिज के इरादे भांप कर अपने ही लिए खतरा मानने लगे हों - और इसी के चलते उसे बोझ बता रहे हों!
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