भ्रष्टाचार मिटाने की कड़वी दवा, आखिर क्यों नहीं खोज रही है सरकार ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाख प्रयासों के बावजूद आज देश में भ्रष्टाचार की समस्या जस की तस बनी हुई है जो ये बताने के लिए काफी है कि देश की बदहाली का जिम्मेदार जितना तंत्र है उतनी ही आम जनता भी है.
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देश सभी क्षेत्रों में प्रगति पथ पर अग्रसर दिखाई देता है, लेकिन भ्रष्टाचार पर हमारा सिर झुक जाता है. सरकार बदल जाती है, लेकिन भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और सीबीआई के प्रयत्नों का बावजूद उच्चतम स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले उभरकर सामने आ जाते हैं. सबूतों के अभाव में अधिकांश दोषियों को दंड नहीं दिया जा सका है. संविधान में कानून के प्रावधान के बावजूद सजा नहीं मिलना भ्रष्टाचार को रोकने की नाकामी और इसके प्रति कमजोर इच्छाशक्ति को दर्शाता है. अभी हाल ही ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वेक्षण में भ्रष्टाचार की तालिका में भारत का दो पायदान लुढ़ककर 81 वें स्थान पर आना आश्चर्यचकित तो नहीं करता लेकिन शर्मिंदा अवश्य कर रहा है.
आज भ्रष्टाचार भारत के सामने एक बड़ी चुनौती है
बीते एक वर्ष में बजाय सुधरने के यदि स्थिति और बदतर हुई तो इससे न खाऊंगा का प्रधानमंत्री का दावा भले ही अपनी जगह हो लेकिन न खाने दूंगा वाली हुंकार हवा में उड़कर रह गई है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वेक्षण का जो भी आधार रहा हो लेकिन उसे झुठलाने का नैतिक साहस इस देश में कोई भी नहीं कर सकता और यही सबसे बड़ी विडंबना है. उच्चस्तर पर विशेष रूप से केंद्र सरकार के मन्त्रियों पर अभी तक कोई दाग भले न लगा हो लेकिन राष्ट्रीय राजधानी से ग्राम पंचायत तक भ्रष्टाचार का गंदा नाला पूरे जोर से बह रहा है.
भाजपा भले राम-राम जपती फिरे लेकिन उसके शासन वाले राज्यों में भी भ्रष्टाचार का नंगा-नाच देखा जा सकता है. हालिया कुछ घोटालों के कारण भी स्थिति और बिगड़ गई है. विदेशों में कालाधन रखने वालों की सूची के बावजूद कोई बड़ी मछली शिकंजे में नहीं आयी है. अगर एजेंसी ईमानदार और निष्पक्ष जांच करती है, तो कोई दोषी को सजा से नहीं रोक सकता है. यह सवाल गहराता जा रहा है कि देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिये नियम काफी है या नाकाफी है? घोटालों की जांच के लिए फास्टट्रैक कोर्ट बने क्योंकि लंबित मामलों को निस्तारण करने वाले जजों की संख्या को संख्या पर्याप्त नहीं है. भ्रष्टाचार मिटाने के लिए और कड़वी दवा खोजे सरकार.
भ्रष्टाचार के मद्देनजर हालात पूर्व में जैसे थे वैसे ही आज हैं
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में भ्रष्टाचार के मामले बढ़ गए हैं. यह वृद्धि 36 फीसदी से भी अधिक है. इससे यह पता चलता है कि सरकार की कोशिशें नाकाफी साबित हो रही हैं. भ्रष्ट अधिकारियों को निगरानी, सरकार या दंड का भय नहीं है. रिपोर्ट का विश्लेषण यह भी बताता है कि भ्रष्टाचार ने हर विभाग को अपने चपेट में ले लिया था. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सरकार ने भ्रष्टाचार व अपराध पर लगाम लगाने का एलान किया था. पुलिस अपराधियों के धड़ाधड़ एनकांउटर कर सुर्खियां बटोर रही है. लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था की लगाम कस पाने में योगी आदित्यनाथ फेल होते दिख रहे हैं.
यूपी में सरकार का चेहरा बदला है, कमोबेश भ्रष्टाचार के मामले में वो अपनी पूर्ववर्ती सरकार के पद चिन्हों पर चल रही है. सरकारी अमला जमकर लूटपाट कर रहा है. आम जनता को सरकार से नहीं, अधिकारियों और कर्मचारियों से रोज काम करवाना होता है. जब हर कदम पर जनता को भ्रष्ट कर्मियों से सामना होता है, तब जनता के मन में सरकार के प्रति नकारात्मक सोच बनने लगती है. इसके लिए जरूरी है कि मंत्री और विधायक सिर्फ अपने स्तर पर ही पाक-साफ नहीं रहें, बल्कि सरकारी दफ्तरों को भी स्वच्छ बनाने की कोशिश करें, जहां आम जनता को रोज जूझना पड़ता है.
ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री ने बात तो की मगर देश उसे अमली जामा पहना नहीं पाया
देखा जाए तो भ्रष्टाचार किसी भी राज्य को कई स्तर पर कमजोर करता है. इसके कारण कामकाज में देर होती है. इसका असर उत्पादन से लेकर अन्य परिणामों पर पड़ता है. योग्य लोग नजरअंदाज कर दिये जाते हैं और अयोग्य लोगों के हाथों में कमान आ जाता है. भ्रष्टाचार के कारण ही देश में प्राकृतिक संपदा की लूट होने के आरोप भी लगते रहते हैं. विभागीय अधिकारी मोटी रकम खाकर गलत ढंग से ठेके दे रहे हैं तो कहीं बिना काम हुए ही ठेकेदारों का भुगतान हो जा रहा है. सरकार के प्रति नकारात्मक सोच तो बनती ही है, साथ ही आम लोग मानसिक तौर पर कुंठित भी होने लगते हैं.
दुनिया के तमाम देशों में भ्रष्टाचार को लेकर नियम काफी सख्त हैं. वहां भ्रष्टाचार के मामले में आम आदमी और रसूखदार में कोई फर्क नहीं किया जाता. पिछले दिनों सऊदी अरब में भ्रष्टाचार के आरोप में खरबपति प्रिंस अल वालीद बिन तलाल समेत 11 राजकुमार और दर्जनों मौजूदा एवं पूर्व मंत्रियों को गिरप्तार किया गया. भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाते समय सामने कौन है यह देखा जाना जरूरी नहीं है बल्कि उसने क्या गुनाह किया है और उसे सजा के लिए सलाखों के पीछे डाला गया है, इस बात पर क्रियात्मकता दिखाना जरूरी है.
और वही खरबपति मंत्रियों के साथ हुआ है. जिसने भी भ्रष्टाचार किया, उसे आड़े हाथों लिया जाएगा ऐसा संदेश ऐसी कारवाई से जनता में जाता है. जब बड़े व्यक्तियों पर कार्रवाई हो सकती है, तो गुनाह करने वाले हर व्यक्ति पर कार्रवाई हो सकती है, ऐसा स्पष्ट संकेत मिलने से कोई भी गलत काम करने से पूर्व सोचेगा जरूर. भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए यह कार्रवाई एक मिसाल की तरह दुनिया के सामने है.
एनसीआरबी के अनुसार इन दिनों भ्रष्टाचार के मामले में झारखंड नंबर 1 है
पिछले वर्ष दुनियाभर में भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (भारत) के मुताबिक दिल्ली समेत नौ राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई. ऐसे में, भ्रष्टाचार पर सख्ती की कमी बनी रहती है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल और लोकल सर्किल के एक ऑनलाइन सर्वे के मुताबिक 45 फीसदी लोगों ने माना कि उन्होंने पिछले एक साल में अपना काम कराने के बदले में रिश्वत दी. ये सर्वे भारत के 11 राज्यों के 34,696 लोगों की राय लेकर तैयार किया गया था. इसी सर्वे में अधिकतर लोगों ने कहा कि भ्रष्टाचार के स्थानीय मामलों की कोई सुनवाई नहीं है.
भ्रष्टाचार चिंता का विषय बनता जा रहा है. लेकिन अब उस चिंता में संजीदगी नजर नहीं आती. जो भ्रष्टाचार से प्रभावित होते हैं, उनके लिए भी भ्रष्टाचार कोई गंभीर चिंता का विषय नहीं, क्योंकि अवसर मिलने पर वे खुद भी भ्रष्ट बनने के लिए तैयार हो जाते हैं. इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ जो जनाक्रोश होना चाहिए, वह कहीं दिखाई नहीं देता. भ्रष्टाचार सर्वव्यापी और सर्वग्रासी बनता जा रहा है और एक कृत्रिम किस्म की लड़ाई उसके खिलाफ चलती रहती है. कभी सूचना के अधिकार के रूप में, कभी लोकपाल विधेयक के रूप में.
आज ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि भ्रष्टाचार ने देश की जड़ को खोखला बना दिया है
भ्रष्टाचार पर काबू पाने का कोई मुकम्मल तरीका तो नजर नहीं आता, लेकिन इस दिशा में हम कुछ एहतियाती कदम उठा सकते हैं. लेकिन पहले इस बात को दिमाग से साफ कर लेना चाहिए कि कानून बना कर इस भ्रष्टाचार पर हम काबू नहीं पा सकते हैं. क्या रिश्वत लेना और देना आज की तारीख में अपराध नहीं? दहेज के खिलाफ कानून नहीं? लेकिन रिश्वत बखूबी चल रहा है. दहेज अब भी लिया जाता है, दिया जाता है. पुलिस है, प्रशासन है, एक मोटा-सा लिखित संविधान है, कोर्ट-कचहरी है. तरह-तरह की जांच एजेंसियां हैं. फिर भी भ्रष्टाचार और अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं.
वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने जिस तरह शुरूआत की उससे देश को काफी उम्मीदें बंधीं थीं. उनकी सरकार ने कुछ साहसिक कदम उठाए भी किन्तु परिणाम अपेक्षानुसार नहीं आ सके.यद्यपि अभी भी लोगों को श्री मोदी की नीयत और प्रतिबद्धता पर भरोसा है लेकिन ये स्थिति हमेशा बनी रहे ये जरूरी नहीं. कुछ बड़े कर्जदारों के आसानी से देश छोड़कर भाग जाने से भी सरकार की छवि खराब हुई है.
लोकसभा चुनाव के पहले तक प्रधानमंत्री कोई बड़ा चमत्कार कर देंगे ये तो नहीं लगता लेकिन भ्रष्ट लोगों को सजा दिलाने की प्रक्रिया ही यदि तेज हो जाये तो लोगों को संतोष हो जाएगा. फिलहाल तो स्थिति अच्छी नहीं है. रिश्वत मांगना ही नहीं बल्कि देना भी भारत में अपराध है लेकिन मजबूरन लोग घूस देते हैं.
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