क्यों भारत ने 'इस्लामोफोबिया डे' को 'रिलिजियोफोबिया डे' के तौर पर मनाने की वकालत की?
संयुक्त राष्ट्र महासभा में 55 मुस्लिम देशों के 'इंटरनेशनल डे टू कॉम्बैट इस्लामोफोबिया' यानी इस्लामोफोबिया से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day to Combat Islamophobia) मनाने का प्रस्ताव पास हो गया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अब हर साल 15 मार्च को पूरी दुनिया इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस मनाएगी.
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एक ऐसे दौर में जब कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन के तथ्यों बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स को भी इस्लामोफोबिया के तौर पर पेश किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में 55 मुस्लिम देशों के 'इंटरनेशनल डे टू कॉम्बैट इस्लामोफोबिया' यानी इस्लामोफोबिया से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day to Combat Islamophobia) मनाने का प्रस्ताव पास हो गया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अब हर साल 15 मार्च को पूरी दुनिया इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस मनाएगी. क्योंकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा का मानना है कि पूरी दुनिया में इस्लाम और मुसलमानों के प्रति पूर्वग्रह व्याप्त है. मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation) के प्रस्ताव को पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम ने 193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा के सामने रखा. और, इसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया. लेकिन, भारत ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि 'इस तरह से संयुक्त राष्ट्र महासभा ही धार्मिक खेमों में बंट जाएगी. और, इस्लामोफोबिया डे को रिलिजियोफोबिया डे के तौर पर मनाना चाहिए.'
भारत ने यूएन में किसी एक धर्म के लिए फोबिया को स्वीकार करने की जगह सभी धर्मों को समान तरजीह दिए जाने की बात की.
किसी एक धर्म से नहीं जुड़ा है फोबिया
बीते साल दिसंबर में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने भी वैश्विक स्तर पर इस्लामोफोबिया से लड़ने के लिए एक बिल को मंजूरी दी थी. इस बिल को पेश करने वाली डेमोक्रेटिक सांसद इल्हान उमर पर रिपब्लिकन पार्टी की ओर से इस्लामिक एजेंट होने जैसे आरोप लगाए जाते रहे हैं. इस बिल में इल्हान उमर ने भारत को भी चीन और म्यांमार की श्रेणी में डालने की वकालत की थी. हालांकि, ऐसा हो नहीं पाया था. खैर, वापस संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर आते हैं. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने इस प्रस्ताव पर चिंता जताते हुए कहा कि 'बहुलतावादी और लोकतांत्रिक देश (जो दुनिया के तकरीबन हर धर्म के लोगों का घर है) भारत ने सदियों से धर्म और विश्वास के नाम पर सताये गए लोगों का स्वागत किया है. भेदभाव झेलने वाले और सताए गए उन तमाम लोगों ने भारत को एक सुरक्षित स्थान के तौर पर पाया है. वे चाहे पारसी हों या बौद्ध या यहूदी हों या फिर किसी और धर्म को मानने वाले लोग हों. डर, भय या पूर्वाग्रह की भावना अलग-अलग धर्मों के प्रति सामने आ रही है. ना कि केवल अब्राहमिक धर्मो (इस्लाम, ईसाई, यहूदी जैसे धर्म) को लेकर.'
सभी धर्मों के प्रति नफरत के माहौल को समझना जरूरी
भारत के स्थायी राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि 'वास्तव में इस बात के साफ सबूत हैं कि धर्मों के प्रति इस तरह से डर के माहौल ने यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के अलावा नॉन अब्राहमिक धर्मों (हिंदू, बौद्ध, सिख जैसे धर्म) को भी प्रभावित किया है. इसकी वजह से खासकर हिंदुओं, बौद्धों और सिखों के प्रति डर का माहौल बढ़ा है. धर्मों के प्रति इस तरह के डर की वजह से कई देशों में गुरुद्वारों, बौद्ध मठों और मंदिरों जैसी धार्मिक जगहों पर हमले की घटनाएं और नॉन अब्राहमिक धर्मों को लेकर भ्रामक सूचनाएं व घृणा बढ़ी है.' उन्होंने बामियान में बुद्ध की प्रतिमा के विध्वंस, गुरुद्वारे के अपमान, मंदिरों पर हमले, प्रतिमाओं को तोड़ने और सिखों के नरसंहार जैसी घटनाओं के उदाहरण देते हुए अपनी बात को मजबूती से रखा.
#IndiaAtUNUN General Assembly on Adoption of Resolution on the International Day to Combat Islamophobia?Watch: India’s Explanation of Position by Permanent Representative @AmbTSTirumurti ⤵️@MEAIndia pic.twitter.com/DxZ9NP1NKe
— India at UN, NY (@IndiaUNNewYork) March 15, 2022
टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि 'हिंदू धर्म को मानने वाले 1.2 अरब लोग, बौद्ध धर्म को मानने वाले 53.5 करोड़ लोग और तीन करोड़ से ज्यादा सिख धर्म को मानने वाले दुनियाभर में फैले हुए हैं. ये समय है कि हम एक धर्म के बजाय सभी धर्मों के प्रति फैल रहे डर के माहौल को समझें. बाकी धर्मों को छोड़कर किसी एक धर्म को लेकर डर के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है. किसी धर्म का उत्सव मनाना एक बात है. लेकिन, किसी धर्म के प्रति घृणा के खिलाफ लड़ाई के लिए एक दिन मनाना अलग बात है. इस प्रस्ताव से अन्य धर्मों के खिलाफ डर की गंभीरता को कमतर आंका गया है.'
पहले से ही मौजूद हैं कई अंतरराष्ट्रीय दिवस
भारत के स्थायी राजदूत ने अपनी बात को पुख्ता तौर पर रखने के लिए केवल हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के खिलाफ हुई घटनाओं के उदाहरण ही नहीं दिए. बल्कि, उन्होंने कहा कि 'संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को ये नहीं भूलना चाहिए कि 22 अगस्त को पहले ही धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा में मारे गए लोगों की याद में मनाया जाता है. ये दिवस पूरी तरह से सभी पहलुओं को समेटे हुए है. यहां तक कि 16 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस मनाया जाता है. हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि हमें किसी एक धर्म विशेष के प्रति डर के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की जरूरत है.'
धार्मिक खेमों में बंट सकती है संयुक्त राष्ट्र महासभा
भारत के स्थायी राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों के खिलाफ हिंसा, असहिष्णुता और भेदभाव की घटनाओं के बढ़ने पर चिंता जाहिर की. साथ ही उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में किसी एक धर्म के लिए फोबिया को स्वीकार करने की जगह सभी धर्मों को समान तरजीह दिए जाने की बात की. और, भारत ने इस्लामोफोबिया डे को रिलिजियोफोबिया डे के तौर पर मनाए जाने की वकालत की. उन्होंने कहा कि 'भारत को उम्मीद है कि ये प्रस्ताव नजीर नहीं बनेगा. इस प्रस्ताव के बाद अन्य धर्मों के प्रति डर को लेकर कई प्रस्ताव आ सकते हैं और संयुक्त राष्ट्र महासभा धार्मिक खेमों में बंट सकती है.' इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 'भारत को गर्व है कि विविधता उसके अस्तित्व की बुनियाद है. हम सभी धर्मों को समान रूप से संरक्षित किए और बढ़ावा दिए जाने पर यकीन रखते हैं. इसलिए ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि 'विविधता' जैसे शब्द का इस प्रस्ताव में जिक्र तक नहीं किया गया है और इस प्रस्ताव को लाने वाले देशों ने हमारे संशोधन प्रस्ताव के जरिए इस शब्द को शामिल करना जरूरी नहीं समझा जिसकी वजह वे लोग ही समझते होंगे.'
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