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Updated: 04 अगस्त, 2018 06:09 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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बिहार के मुजरफ्फरपुर शेल्टर होम रेप पर शुरू हुई सियासत अब दिल्ली तक पहुंच गई है. राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं तथा इस धरने में दूसरे दल के नेता भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं. इसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर पश्चिम बंगाल तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं. चूंकि 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां ज़ोरों पर हैं, ऐसे में कोई भी पार्टी अपने विपक्षी दलों को घेरने में पीछे नहीं रहना चाहता. और इससे अच्छा मौका मिल भी नहीं सकता जहां 34 बच्चियों के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया हो. खासकर जब नीतीश कुमार का जदयू भाजपा का सहयोगी दल हो.  

बिहार में विपक्षी पार्टियां नीतीश कुमार से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांग रही हैं. इस इस्तीफे की मांग को लेकर बिहार बंद भी रखा गया. लेकिन नीतीश कुमार इसपर कुछ भी बोलने से कतराते रहे हैं. अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उन्होंने इतना ही कहा कि- "इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए, ऐसी घटना से हम सब शर्मशार हैं. इस मामले की सीबीआई जांच हो रही है, किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा.''

nitish kumarकाफी इंतजार के बाद नीतीश कुमार कुमार ने मुजफ्फरपुर की घटना पर कुछ बोला

लेकिन वो "सुशासन बाबू" जो नैतिकता की दुहाई देकर अपना इस्तीफा देने में जरा सा भी वक़्त नहीं बर्बाद करते थे आज इस्तीफा देने के नाम पर चुप क्यों हैं? ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्हें सुधारवादी मुख्यमंत्री कहा जाता रहा है. आज 34 बच्चियों के साथ दुष्कर्म के बाद भी अपनी कुर्सी से चिपके क्यों हैं? ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने महिलाओं की खुशी के लिए बिहार में शराबबंदी लागू करवाई, बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान शुरु किए और इसके लिए मानव श्रृंखला बनवाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनवाया. क्या 34 बच्चियों के साथ दुष्कर्म इनकी नजर में बड़ा अपराध नहीं है? एक ऐसा मुख्यमंत्री जो जनता के हितों से कोई समझौता नहीं करता था और सख्त कदम उठाने से संकोच भी नहीं करता था आज उसे क्या हो गया?

क्या ''सुशासन बाबू" से "दु:शासन बाबू" बनने में देश के राजनीतिक हालात जिम्मेदार हैं? बिहार के राजनीति में फिलहाल नीतीश कुमार के लिए रास्ता कठिन है. भाजपा का अगर साथ छोड़ते हैं तो राजद के गठबंधन में वापसी मुश्किल है. अभी अगर वो विपक्षी दलों के प्रेशर में इस्तीफा देते हैं तो राजनीतिक रूप से 'आत्महत्या' करने जैसे होगा क्योंकि आने वाले चुनावों में विपक्षी पार्टियां हावी हो जायेंगी. अगर बात बिहार के विपक्षी नेता तेजस्वी यादव की करें तो इस मामले के जरिए वो ना सिर्फ नीतीश सरकार पर दवाब बनाने की कोशिश में हैं बल्कि खुद को राष्ट्रीय राजनीति में भी स्थापित करने में जुटे हैं. और इससे अच्छा मौका उन्हें मिल भी नहीं सकता.

अगर बात नीतीश कुमार के इस्तीफे की हो रही है तो जानते हैं अब तक कब-कब इन्होंने नैतिकता का हवाला देकर इस्तीफा दिया है.

* पहली बार जब नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में एनडीए सरकार में रेलमंत्री बनाए गए थे. तब साल 1999 में पश्चिम बंगाल के गैसाल में हुई रेल दुर्घटना में करीब 290 लोगों की मौत हो गई थी उस वक़्त नैतिकता की दुहाई देते हुए इन्होंने इस्तीफा दे दिया था.

* दूसरी बार नीतीश कुमार साल 2000 में भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे लेकिन विधानसभा में पर्याप्त संख्या बल नहीं होने के कारण मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

* अब बात लोकसभा चुनाव 2014 की जब जदयू को बिहार में केवल दो सीटें ही मिली थी और तब नीतीश कुमार ने पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

* अंतिम बार नीतीश कुमार ने बेनामी संपत्ति मामले में बिहार के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का नाम आने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.

बात साफ है जो नेता अपने ऊपर कोई आंच आने पर बगैर किसी दबाव के इस्तीफा दे देता था आज इतना दर्दनाक और खौफनाक हादसा हो जाने के बाद भी चुप्पी साधे है. ये इस बात की तरफ इशारा कर रहा है कि राजनीतिक हालातों ने उन्हें किस कदर मजबूर किया हुआ है.  

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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