रैलियों में भीड़ के बावजूद मायावती इतनी डिफेंसिव क्यों हो रहीं
मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की मिसाल और दाद तक दी जाती रही है, लेकिन मायावती इन दिनों इतनी बार सफाई दे रही हैं जितना शायद ही पहले कभी कहा हो.
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मायावती की रैलियों में भीड़ उनके विरोधियों की बेचैनी बढ़ाने के लिए काफी है, लेकिन मायावती परेशान क्यों नजर आ रही है? आगरा से लेकर इलाहाबाद तक लगातार वो डिफेंसिव नजर आ रही हैं.
ऊपर से दयाशंकर सिंह कमेंट पर कमेंट किये जा रहे हैं. एक कमेंट के लिए जेल की हवा खाने के बाद भी दया की जबान वैसे ही फिसल रही है.
डिफेंसिव क्यों?
मायावती ने इन दिनों संडे को रैलियां कर रही हैं. उनकी हर संडे रैली में खूब भीड़ हो रही है. वैसे मायावती की रैलियों में भीड़ हमेशा से होती रही है. यहां तक कि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हार गईं उस दौरान भी मायावती की भीड़ ने उन्हें शायद ही इसका कभी अहसास होने दिया हो.
ताज्जुब की बात ये है कि मायावती इन रैलियों में डिफेंसिव नजर आ रही हैं. आगरा से लेकर इलाहाबाद तक की रैलियों में मायावती की बातों पर गौर करें तो एक बात कॉमन दिख रही है, जिससे एक सवाल सहज तौर पर उभर रहा है.
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मायावती आजकल ये सफाई क्यों दे रही हैं कि अगर बीएसपी को सवर्णों से परहेज रहता तो समुदाय के लोग पार्टी में ऊंचे पदों पर क्यों रहते? मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की मिसाल और दाद तक दी जाती रही है, लेकिन मायावती इन दिनों इतनी बार सफाई दे रही हैं जितना शायद ही पहले कभी कहा हो.
कहीं ये स्वाती सिंह का असर तो नहीं है?
ब्राह्मण या ठाकुर
दलित वोट बैंक में मायावती की जड़ें गहरी हैं, इसलिए वहां चिंता की कोई बात नहीं. ब्राह्मण वोटों को वो सतीशचंद्र मिश्रा की मदद से साधती रही हैं - और जिन टर्म्स और कंडीशन पर मायावती को सवर्ण सपोर्ट मिलता है वो भी मिलता रहेगा, इसमें शायद ही किसी को कोई शक हो. अगर स्वामी प्रसाद मौर्या का बीएसपी छोड़ कर जाना मायावती के लिए कोई खास मायने नहीं रखता तो ब्रजेश पाठक भी इतने अहम नहीं होंगे.
दलित साथ, फिर भी... |
तो क्या तीखे तेवर के लिए विख्यात मायावती के ये नर्म कलेवर ठाकुर वोटों को लेकर है? क्या ठाकुर वोटों को लेकर मायावती इस कदर डर गई हैं? क्या धनंजय सिंह की बीएसपी में वापसी की बड़ी वजह यही है? जिस नेता को मायावती अपने सरकारी आवास पर पुलिस बुलाकर गिरफ्तार करा चुकी हों. जिसे टिकट देने से साफ इंकार कर दिया हो, उस धनंजय सिंह के प्रति मायावती की इस मेहबानी की असल वजह क्या है?
इलाहाबाद में मायावती ने जिस तरह धनंजय के साथ मंच शेयर किया वैसी तो उनसे कभी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. एक दो मामलों को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई ऐसा बड़ा नेता हो जिस पर मायावती ने दोबारा भरोसा जताया हो.
मायावती की दुत्कार के बाद धनंजय की बीजेपी नेताओं से करीबी बढ़ी - और उन्हें उसका फायदा भी मिला. लगता तो ऐसा है कि धनंजय की बीएसपी में वापसी में ज्यादा इंटरेस्ट मायावती का ही है.
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एक बात तो साफ है कि दयाशंकर की टिप्पणी के बाद बीएसपी नेताओं ने स्वाती सिंह की ओर से वैसी राजनीति की अपेक्षा नहीं रही होगी. बीएसपी नेताओं ने दयाशंकर के परिवार को लेकर जिस तरह के घटिया कमेंट किये वो उसका मैसेज दूर तक गया. ठाकुर समुदाय ने उसे गंभीरता से लिया. अखिलेश सरकार ने एसटीएफ भेज कर दयाशंकर को तो जेल भेज दिया, लेकिन स्वाती की शिकायतों पर पुलिस ने बीएसपी नेताओं के खिलाफ वैसी तत्परता नहीं दिखाई.
स्वाती सिंह ताल ठोक ठोक कर कह रही हैं कि जहां से भी मायावती चुनाव लडेंगी वो उन्हें चुनौती देंगी. ऊपर से दयाशंकर सिंह अब भी मायावती के खिलाफ कमेंट करने से बाज नहीं आ रहे. भूल सुधार के नाम पर भी लीपापोती ही नजर आ रही है.
मायावती वैसे तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ साधने में लगी हुई हैं, लेकिन सवर्णों के प्रति उनकी सफाई बता रही है कि वो इस बात को लेकर कितनी गंभीर हैं?
मायावती का मौजूदा तेवर क्या सिर्फ स्वाती प्रकरण का डैमेज कंट्रोल है? क्या धनंजय सिंह अकेले इसकी भपाई कर पाएंगे, या मायावती कुछ और ऐसे नेताओं की कतार पेश करनेवाली हैं? मायावती की संडे रैलियां 9 अक्टूबर तक चलेंगी और इस दौर की आखिरी रैली लखनऊ में है. मायावती के एजेंडे की तस्वीर शायद वहीं साफ हो.
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