क्यों लग रहा है मोदी सरकार पर RTI एक्ट से छेड़छाड़ का आरोप
राज्यसभा के 14 राजनीतिक दलों ने RTI संशोधन विधेयक का विरोध किया है. उन्होंने RTI विधेयक को सेलेक्ट समिति को भेजने के लिए टीएमसी के नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं.
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नरेंद्र मोदी सरकार ने 19 जुलाई को लोकसभा में सूचना अधिकार (RTI) संशोधन विधेयक-2019 पेश किया जिसे सदन ने चर्चा के बाद पारित कर दिया. नया कानून आने के बाद कई पुराने प्रावधान बदल जाएंगे. इस संशोधन में खासतौर पर केंद्र के साथ-साथ राज्य स्तर के सूचना आयुक्तों के वेतन और सेवा शर्तों को निर्धारित करने के लिए केंद्र सरकार को अधिकार देने का प्रस्ताव है. सरकार के इस कदम ने विपक्ष के विरोध को तेज कर दिया.
राज्यसभा के 14 राजनीतिक दलों ने RTI संशोधन विधेयक का विरोध किया है. उन्होंने RTI विधेयक को सेलेक्ट समिति को भेजने के लिए टीएमसी के नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं.
विपक्ष मोदी सरकार द्वारा पारित RTI संशोधन विधेयक का विरोध कर रही है
नए बिल में क्या-क्या बदलाव लाए गए ?
RTI संशोधन विधेयक-2019 में मूल कानून RTI एक्ट-2005 की धारा 13 और 16 में अहम बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है. मूल कानून 2005 की धारा 13 केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, वेतन-भत्ते एवं सेवा शर्तों से जुड़ी है. इस धारा में कहा गया है कि सीआईसी (CIC) और अन्य आईसी (इस) की नियुक्ति पांच साल के लिए या उनकी उम्र 65 साल होने तक (दोनों में से जो भी पहले हो) की जाएगी लेकिन नए प्रस्तावित बिल के मुताबिक इन आयुक्तों का कार्यकाल केंद्र सरकार तय करेगी.
धारा-13 के तहत ही इन आयुक्तों का वेतन-भत्ता एवं सेवा शर्तें परिभाषित हैं. उसके मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन-भत्ता एवं अन्य सेवा शर्ते मुख्य चुनाव आयुक्त के बराबर होंगी जबकि अन्य सूचना आयुक्तों का वेतन-भत्ता एवें सेवा शर्तें अन्य चुनाव आयुक्तों के बराबर होंगी लेकिन नए कानून में प्रस्तावित किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्तों का वेतन-भत्ता एवं सेवा शर्तें केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएंगी.
धारा-16 के मुताबिक इन सूचना आयुक्तों की नियुक्ति पांच साल या उनकी उम्र 65 साल होने तक (जो भी पहले हो) होगी लेकिन नए प्रस्तावित कानून के मुताबिक सभी राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाएगा.
सरकार का RTI संशोधन पर बचाव
क्यों मचा रहा है विपक्ष RTI संशोधन विधेयक-2019 पर बवाल?
RTI एक्ट, 2005 का धारा 13 और 16 के तहत केंद्रीय सूचना आयुक्तों (CIC) को चुनाव आयोग का दर्जा और राज्य सूचना आयुक्तों को प्रमुख सचिव का दर्जा दिया गया है, ताकि वे स्वतंत्र और प्रभावी तरीके से कार्य कर सकें. जाहिर है RTI एक्ट में संशोधन के बाद सुचना आयोग की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी.
विपक्षी दलों का तर्क है कि इस संशोधन विधेयक से पारदर्शिता कानून को कमजोर करेगी और सूचना आयोग की आजादी बाधित होगी. विपक्ष चाहता है कि इससे पहले कि बिल को राज्यसभा में पेश किया जाए, इस पर चर्चा की जाए और एक संसदीय समिति द्वारा इसकी छानबीन की जाए.
विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार पर्सन-टू-पर्सन मामले को देखते हुए उनके वेतन भत्ते, कार्यकाल और सेवा शर्तें तय करेगी. इससे सूचना का अधिकार कानून की मूल भावना से खिलवाड़ होगा. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तो नए संशोधन बिल को RTI उन्मूलन बिल करार दिया है.
बीजू जनता दल (BJD ) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS ), जो केवल सरकार को मुद्दा-आधारित समर्थन देते हैं, इन्होंने भी इस मुद्दे पर विपक्ष का साथ देने का फैसला किया है.
राज्यसभा में बिल पारित करने के लिए गुटनिरपेक्ष दलों की मदद के बिना सरकार के पास अब भी संख्या की कमी है. एनडीए के राज्यसभा में 116 सदस्य हैं, जो बहुमत के निशान से पांच कम है. BJD (7) और टीआरएस (6) में एक साथ 13 सदस्य हैं. लेकिन उनके मानने की संभावना नहीं है.
बता दे कि RTI अधिनियम को एक क्रांतिकारी कदम कहा माना गया है, जो नागरिकों को शासन में सुधार के लिए सशक्त बनाता है.
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