वीके सिंह के प्रति समाजवादी पार्टी इतनी मुलायम क्यों?
कभी जनता परिवार खड़ा करने में जी जान से जुटे मुलायम ने बिहार चुनाव में महागठबंधन से ही तौबा कर ली. नीतीश को हराने तक की अपील कर डाले.
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यूपी में मुलायम सिंह भी मायावती की आहट जरूर सुने होंगे. बिहार में लालू की बैकवर्ड-फॉरवर्ड जंग के नतीजे देख चुके हैं. फिर भी लोक सभा में जब विपक्ष ने दलितों के मुद्दे पर सरकार को घेरा तो मुलायम ने अलग लाइन ली.
बयान के बहाने
करीब डेढ़ महीने बाद केंद्रीय मंत्री वीके सिंह का बयान फिर उछला. लोक सभा में मोदी सरकार को निशाने पर लेने के लिए राहुल गांधी ने वीके सिंह का कुछ ऐसे जिक्र किया, "मैं यहां जनरल वीके सिंह को नहीं देख पा रहा हूं, जिन्होंने दलित बच्चों की तुलना कुत्तों से की. ऐसा करके उन्होंने सीधे संविधान और मौलिक अधिकार को चुनौती दी है."
19 अक्तूबर को फरीदाबाद में एक दलित परिवार को जिंदा जलाये जाने की घटना से सनसनी मच गई. इसमें दो बच्चों की मौत हो गई थी. इस पर वीके सिंह ने कथित तौर पर कहा था, "हर चीज के लिए सरकार जिम्मेदार हो, ऐसा नहीं है. जैसे कि यदि कोई एक कुत्ते पर पत्थर फेंकता है तो भी क्या सरकार जिम्मेदार है, ऐसा नहीं है?’’
सिंह के इस बयान पर खूब बवाल हुआ था. मायावती ने तो उन्हें जेल भेजने तक की मांग कर डाली थी.
मायावती ने कहा था, "हमारी पार्टी इसकी ना सिर्फ घोर निंदा करती है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी से मांग करती है कि उन्हें ऐसी घटिया, तुच्छ और गिरी हुई मानसिकता रखने वाले मंत्री को बर्खास्त कर जेल भेज देना चाहिये."
जैसे रस्मअदायगी हो
जब राहुल गांधी सरकार को कठघरे में खड़े करने की कोशिश कर रहे थे तो मोर्चा राजनाथ ने संभाला हुआ था.
राजनाथ ने कहा, "अब प्रतिपक्ष क्या चाहता है? क्या कहें हम? वीके सिंह ने खुद कहा कि उनकी बात को तोड़मरोड़कर पेश किया गया. हमने भी उनसे बात की. यह सरकार के साथ न्याय नहीं है."
मुलायम सिंह ने अपनी आपत्ति में कहा, "विषय पर बोलिए."
तो राजनाथ ने कहा, "मैं विषय पर ही बोल रहा हूं. विषय असहिष्णुता है. दादरी पर ही बोलने वाला हूं. मैं बोल रहा हूं. सुनिए."
मुलायम फिर उठे और बोले, "ज्यादा कहोगे तो हम सारे नाम कह देंगे. अपने अध्यक्ष (बीजेपी प्रेसिडेंट) को कंट्रोल करिए."
इस दौरान राजनाथ ने मुलायम के साथी आजम खां का भी जिक्र किया था जिन्होंने मुसलमानों के साथ भेदभाव का मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का ऐलान किया था.
मुलायम का ये विरोध महज रस्म अदायगी जैसा नजर आया. असहिष्णुता के मसले पर राजनाथ के बयान पर असंतोष जाहिर करते हुए कांग्रेस, एनसीपी, आरजेडी और जेडीयू ने सदन से वॉकआउट किया. कुछ देर बाद तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों के सांसद भी वॉकऑउट में शामिल हो गए, लेकिन मुलायम सिंह लोक सभा में डटे रहे.
अगले दिन कांग्रेस और यूपीए के कुछ सांसद वीके सिंह को हटाने की मांग पर नारेबाजी करने लगे. जब स्पीकर ने इस मामले को उठाने की इजाजत नहीं दी तो कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने सदन से वॉकऑउट कर दिया. थोड़ी ही देर बाद टीएमसी और वामदलों के सांसदों ने भी वॉकऑउट किया. मुलायम सिंह ने संसद में ही मौजूद रहने का फैसला किया.
कभी जनता परिवार खड़ा करने में जी जान से जुटे मुलायम ने बिहार चुनाव में महागठबंधन से ही तौबा कर ली. नीतीश को हराने तक की अपील कर डाले. अपने रिश्तेदार लालू प्रसाद से भी दूरी बना ली. न तेजस्वी और तेज प्रताप को आशीर्वाद देने मुलायम पहुंचे न जन्मदिन की बधाई देने लालू प्रसाद.
बीजेपी को हमेशा साम्प्रदायिक बताते हुए झंडा बुलंद करने वाले समाजवादी नेता आखिर इतने मुलायम कैसे हो गए कि दलितों के सवाल पर भी सरकार के साथ हो लिए. आखिर अब कैसे समझाएंगे कि विपक्ष का साथ उन्होंने इसलिए नहीं दिया क्योंकि वो सदन की कार्यवाही में बाधा नहीं पहुंचने देना चाहते. मुलायम का ये एक्शन तो यही दर्शाता है जैसे वो सरकार का हिस्सा हों.
क्या समाजवादी नेता वीके सिंह के प्रति मुलायम हो गए हैं? या फिर जिस तरह बिहार में पर्दे के पीछे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जो मदद पहुंचाई - लोक सभा में उनका स्टैंड उसी का एक्सटेंशन है?
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