नीतीश कुमार का यूपी चुनाव से जुड़ा फैसला हैरान करने वाला है !
उत्तर प्रदेश में दर्जनों जनसभाएं करने के बाद नीतीश कुमार के चुनाव न लड़ने और किसी पार्टी के लिए प्रचार न करने के फैसले ने लोगों के साथ साथ जनता दल यू के कार्यकर्ताओं को भी आश्चर्य में डाल दिया है.
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जनता दल यू उतरप्रदेश चुनाव नहीं लड़ेगी. जनता दल यू उतरप्रदेश में चुनाव लड़े या न लड़े इससे वहां की राजनीति में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन चुनाव ऐलान के बाद पार्टी का ये फैसला चौंकाता जरूर है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले उतरप्रदेश में ही अपना जनाधार बनाने की कोशिश की. उत्तरप्रदेश में दर्जनों जन सभाएं करने के बाद चुनाव न लड़ने के इस फैसले ने लोगों के साथ साथ जनता दल यू के कार्यकर्ताओं को भी आश्चर्य में है.
नीतिश कुमार उत्तर प्रदेश में न तो चुनाव लड़ेंगे और न ही किसी के लिए प्रचार करेंगे
यही नहीं नीतीश कुमार किसी पार्टी के प्रचार के लिए भी नहीं जाएंगे. जनता दल यू पहले उत्तरप्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल से समझौता करना चाहती थी लेकिन बात बनी नहीं. फिर जब वहां समाजवादी पार्टी में अखिलेश और मुलायम के बीच झगड़ा चल रहा था तब नीतीश कुमार ने राजगीर में हुए राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक को संबोधित करते हुए अखिलेश को खुला समर्थन दिया था और साथ में चुनाव लडने का निमंत्रण भी. लेकिन काफी उठापटक के बाद उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन हो गया. तब भी जनता दल यू ने गठबंधन का हिस्सा बनने की कोशिश की थी, ये अलग बात है बिहार में उनकी पिछलग्गू कांग्रेस पार्टी ने भी उत्तरप्रदेश में भाव नहीं दिया. लेकिन अब संसाधनों की कमी की बात कह कर चुनाव से पीछे हट जाने के पीछे कुछ राजनैतिक मायने भी दिखते हैं.
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नीतीश कुमार के सहयोगी आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने शुरू से ही अपना स्टैण्ड साफ कर दिया था को वो उत्तरप्रदेश में चुनाव नही लड़ेंगे और समधी की पार्टी समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करेंगे.
इस राजनैतिक मायने के कुछ अलग पहलू भी हैं, उस पर भी गौर करने की जरूरत है. नोटबंदी पर नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी को लगातार समर्थन दे रहे हैं. 50 दिन बीत जाने के बाद भी नीतीश कुमार ने नोटबंदी का समर्थन करना नहीं छोडा. हालांकि अब वो कहने लगे हैं कि केन्द्र सरकार और रिजर्व बैक को बताना चाहिए कि कितना काला धन आया है. ये एक सवाल है लेकिन समर्थन जारी है. इससे पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक पर नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी के कदम का समर्थन करते हुए कहा था कि देश के हित में लिए गए कदम में वो हमेशा साथ रहेंगे. हाल ही में प्रकाश पर्व पर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मिले तो दोनों ने एक दुसरे की तारीफ की.
अब स्थिति ये देखनी है कि आखिर बिहार का महागठबंधन कहां खड़ा है. महागठबंधन की क्या स्थिति है. कांग्रेस नरेन्द्र मोदी के हर कदम का विरोध करती है. वो चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या फिर नोटबंदी, उसी राह पर आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी हैं वो भी नरेन्द्र मोदी की नीतियों के घोर आलोचक हैं. यही नहीं नोटबंदी के खिलाफ वो पटना में विशाल रैली भी करने वाले हैं. लेकिन जनता दल यू इनके साथ कहीं नहीं खडी है. हाल के जो भी मुद्दे आए उसमें वो नरेन्द्र मोदी का समर्थन करती रही. नोटबंदी के मुद्दे पर देश की सारी विपक्षी पार्टियां विरोध में खड़ी दिखीं, सिवाय जनता दल यू के.
ऐसी परिस्थिति में यह माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को अभी राजनीति से ज्यादा बिहार में जनता से किए गए वायदों को पूरा करना ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है. नीतीश कुमार ने जो सात निश्चय का वायदा जनता से किया है उसमें केन्द्र के सहयोग की भी जरूरत है. इसलिए ऐसे मुद्दों पर नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली है. नीतीश कुमार की राजनीति को समझना उतना आसान भी नहीं है. नीतीश कुमार के पार्टी आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने शुरू से ही अपना स्टैण्ड साफ कर दिया था कि वो उत्तरप्रदेश में चुनाव नहीं लड़ेंगे और समधी की पार्टी समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करेंगे. लेकिन लालू यादव मुलायम का समर्थन कर रहे थे जबकि नीतीश कुमार शुरू से ही अखिलेश का समर्थन कर रहे हैं. हांलाकि परिस्थितियां बदलीं, अब लालू यादव अखिलेश के लिए प्रचार करेंगे.
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लेकिन नीतीश कुमार तो किसी पार्टी के प्रचार के लिए बुलाने पर भी नहीं जायेंगे. हालांकि महागठबंधन को मजबूती प्रदान करने के लिए वो उत्तरप्रदेश में सपा और कांग्रेस के गठबंधन के लिए प्रचार कर सकते थे लेकिन जनता दल यू के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता केसी त्यागी ने स्पष्ट कर दिया है कि वो चुनाव प्रचार के लिए भी नहीं जायेंगे.
हालांकि यह निर्णय ठीक भी है नीतीश कुमार के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला चुनाव होता अगर पार्टी चुनाव में जाती और कुछ नहीं कर पाती तो फजीहत उन्हें ही उठानी पडती. इसका दूसरा पहलू भी है कि वो प्रचार के लिए नहीं जाते है तो बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होगा और समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को कोई फायदा भी नहीं होगा. नीतीश कुमार का टारगेट 2019 का लोकसभा चुनाव और 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव है, अब देखना ये होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है. लेकिन इतना तो तय है कि जनता दल यू के चुनाव न लड़ने और उससे भी अधिक नीतीश कुमार के चुनाव प्रचार में शामिल न होने से बिहार के महागठबंधन में दुरियां ही बढ़ेंगी नजदीकियां नहीं.
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