नरसिम्हा राव और केसरी का अंजाम देखकर कोई कांग्रेस अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं!
कथित तौर पर कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहता. कारण ? दो पूर्व गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी. कांग्रेस द्वारा राव और केसरी के साथ किए गए सुलूक की यादें अभी भी ताजा हैं.
-
Total Shares
अगला कांग्रेस अध्यक्ष कौन होगा? इस सवाल का कोई उचित जवाब नहीं है क्योंकि कांग्रेस के वरिष्ठ कोई भी इच्छुक उम्मीदवार ढूंढ नहीं पा रहे जो राहुल गांधी से जिम्मेदारियां लेकर उसे वापस परिवार को सौंपने के लिए तैयार रहे. हालांकि, राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद, स्पष्ट रूप से कहा है कि अगले पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करते समय "गांधी" प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे.
कांग्रेस युवा और वरिष्ठों के बीच विभाजित होती दिख रही है. युवा लोकसभा चुनावों में हार के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को ज़िम्मेदार ठहराते हुए बाहरी लोगों के लिए पार्टी के अहम अवसर खोलने की राहुल की बात का समर्थन कर रहे हैं.
वरिष्ठ वो हैं जो गांधी परिवार के प्रति वफादार रहे हैं. जो अध्यक्ष पद के लिए गांधी ही चाहते हैं. और राहुल गांधी को परिवार के बाहर से किसी और को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में लाने के लिए अड़ा हुआ देखकर परेशान हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष कौन होगा? इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिल रहा है
कथित तौर पर कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहता. इसी वजह से कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाने में देरी हुई है. कारण ? दो पूर्व गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी. कांग्रेस द्वारा राव और केसरी को मिले व्यवहार की यादें अभी भी पुराने लोगों के जेहन में हैं.
पीवी नरसिम्हा राव
नरसिम्हा राव एक कांग्रेसी नेता और प्रधान मंत्री थे, जिनके अधीन भारत ने 1991 में अपने बाजार खोले. लेकिन वो जिस पार्टी से जुड़े थे उसकी अपेक्षा भाजपा उन्हें ज्यादा याद रखती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए कई बार राव का जिक्र किया है.
पहले कांग्रेस का नेतृत्व करने वाली सोनिया गांधी और बाद में उनके बेटे राहुल गांधी, दोनों ने भाजपा और मोदी को कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधने की वजह दीं. 1991 के लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनने से पहले राव ने कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी से रिटायर होने के लिए अनुमति मांगी थी.
चुनाव प्रचार के दौरान ही मई 1991 में LTTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम) द्वारा राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. चुनाव के बाद राव को सेवानिवृत्ति से वापस बुला लिया गया और प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई. 1996 में वो लोकसभा चुनाव और कांग्रेस अध्यक्ष पद दोनों हार गए.
सोनिया गांधी के पार्टी अध्यक्ष का पद संभालने के बाद कांग्रेस नेतृत्व के साथ उनका रिश्ता ठंडा पड़ा गया था. और बोफोर्स घोटाला में उनकी सरकार द्वारा राजीव गांधी के खिलाफ CBI मामले को खारिज करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के निर्णय के बाद राव के रिश्तों में खटास आ गई थी.
पीवी नरसिम्हा राव ने एक साथ कांग्रेस अध्यक्ष पद और प्रधानमंत्री का पद संभाला हुआ था
इस साल के शुरुआत में, राव के पोते एनवी सुभाष- जो 2014 में भाजपा में शामिल हुए थे, ने कहा कि सत्ता हाथ से निकल जाने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री को कांग्रेस में दरकिनार कर दिया गया था. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के साथ, राव को पूर्व प्रधानमंत्री होने के बावजूद सीडब्ल्यूसी में जगह नहीं मिली. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की लिस्ट में भी उन्हें जगह नहीं दी गई थी.
दिसंबर 2004 में राव की मृत्यु हो गई. कांग्रेस तब तक केंद्र में सत्ता में वापस आ गई थी. सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं. राव की मृत्यु के एक दिन बाद, शव को नई दिल्ली के अकबर रोड पर कांग्रेस मुख्यालय के द्वार पर लाया गया. लेकिन राव के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए अंदर नहीं जाने दिया गया. उनके पार्थिव शरीर को एआईसीसी के गेट के बाहर फुटपाथ पर रखा गया था. इस बात की पुष्टि वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा ने अपनी आत्मकथा Courage & Commitment में की थी, जो 2016 में प्रकाशित हुई. तब कांग्रेस का बचाव करते हुए यह तर्क दिया गया था कि राव का शरीर इतना भारी था कि उसे गन कैरेज से उठाकर कांग्रेस मुख्यालय के अंदर रखना मुश्किल था. परिजनों की इच्छा का हवाला देकर शव को हैदराबाद ले जाया गया.
सीताराम केसरी
सीताराम केसरी गांधी परिवार के एक और वफादार थे, जो कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद गांधी परिवार की छाया से बाहर चले गए थे. लंबे समय तक पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य करने के बाद केसरी ने राव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था.
जब दिसंबर 1997 में सोनिया गांधी ने राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया, तो केसरी ने इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में उन्हें सेवियर यानी 'रक्षक' कहा. लेकिन मार्च 1998 के मध्य तक सब कुछ बदल गया. कांग्रेस कार्य समिति ने केसरी को पार्टी अध्यक्ष के पद से बर्खास्त करने का प्रस्ताव पारित किया और सोनिया गांधी को पार्टी की बागडोर संभालने के लिए कहा.
सीताराम केसरी ने एक साक्षात्कार में सोनिया गांधी को सेवियर यानी रक्षक कहा था
लेकिन केसरी पद पर बने रहे और कुर्सी खाली करने से इनकार कर दिया. कथित तौर पर केसरी को उनके कार्यालय से बाहर कर दिया गया था. कुछ टिप्पणीकारों ने कहा कि जब पद संभाने के लिए सोनिया गांधी ने कांग्रेस मुख्यालय में प्रवेश किया तो केसरी शौचालय में बंद थे. सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद, केसरी को पार्टी कार्यालय से बाहर निकाल दिया गया था.
कई लोग मानते हैं कि यही असली वजह थी कि वरिष्ठ नेता शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का हवाला देते हुए कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी.
राव और केसरी दोनों ही गांधी के वफदार थे, लेकिन उन्हें यहां सिर्फ अपमान ही मिला. यही वो यादें हैं जो वरिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी या किसी अन्य गांधी के दोबारा नेतृत्व संभालने तक कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने से रोकती हैं. गांधीवाद पार्टी के लिए सबसे मजबूत गोंद है जिस पर कांग्रेस में बहस या संदेह नहीं है.
ये भी पढ़ें-
मानहानि के मामले में राहुल गांधी भी केजरीवाल के रास्ते पर ही हैं
राहुल गांधी का इस्तीफा कर्नाटक पर भारी पड़ गया !
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़कर पार्टी में कई सवालों का प्रवेश करवा दिया
आपकी राय