राहुल गांधी का इस्तीफा कर्नाटक पर भारी पड़ गया !
लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था. इधर सारे कांग्रेसी पार्टी अध्यक्ष ढूंढ़ते रहे, उधर कर्नाटक का सीएम बदलने की नौबत आ गई!
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लोकसभा चुनावों के बाद से ही कर्नाटक को लेकर जो कयास लगाए जा रहे है, अब वह हकीकत में तब्दील होने को बेताब हैं. इधर राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद मान-मनौवल का दौर चल रहा था, उधर कर्नाटक की राजनीति में अंदरखाने कुछ और ही पक रहा था. कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी का विकल्प तलाशने में लगे थे और इसी बीच कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के 14 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. अब अगर इस्तीफा मंजूर हो जाता है तो कुमारस्वामी सरकार अल्पमत में आ जाएगी. सवाल ये है कि कर्नाटक की राजनीति में इतना कुछ हो गया और गुलाब नबी आजाद और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं को कानों-कान खबर तक नहीं लगी. ये वही नेता हैं, जिन्होंने कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति पैदा होने पर कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन की सरकार बनवाने में अहम रोल अदा किया था.
लेकिन जब इन इस्तीफों की खबर सामने आई तो कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक एक भूचाल सा आ गया. कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन की सरकार गिरती हुई दिखने लगी. आनन-फानन में वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मोतीलाल वोरा, अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खड़गे, रणदीप सुरजेवाला, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दीपेंद्र हुड्डा ने एक मीटिंग की और राज्य के हालात पर चर्चा की. यहां सवाल ये है कि अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के दो विधायकों रमेश जरकीहोली और आनंद सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी अमेरिका में छुट्टियां बिता रहे थे और अभी भी देश से बाहर ही हैं. वहीं दूसरी ओर, कर्नाटक में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव भी ऐसी गंभीर स्थिति में देश से बाहर ही बताए जा रहे हैं. कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेताओं ने अगर उसी समय सक्रियता दिखा दी होती तो शायद आज सरकार गिरने की नौबत नहीं आती. उस समय सिर्फ सिद्धारमैया ने ही एक बैठक कर के स्थिति को समझने की कोशिश की थी.
राहुल के इस्तीफे के बाद इधर सारे कांग्रेसी पार्टी अध्यक्ष ढूंढ़ते रहे, उधर कर्नाटक का सीएम बदलने की नौबत आ गई!
राहुल गांधी को इसका अफसोस होना चाहिए
भले ही राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेकर पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन उनके इस्तीफे का सबसे बड़ा नुकसान अब पार्टी को झेलना पड़ सकता है. इस समय कांग्रेस बिना ड्राइवर की गाड़ी बन चुकी है, जिसे जैसे-तैसे बस खींचा जा रहा है. कर्नाटक में आए सियासी तूफान को देखते हुए ये भी कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी नहीं ली है, बल्कि वह पार्टी की जिम्मेदारी छोड़कर पार्टी भागे हैं. उनके इस्तीफे की वजह से दिल्ली में जो सियासी उथल-पुथल होती रही, वो भी एक वजह हो सकती है कि पार्टी के बड़े नेता कर्नाटक के संकट को सही समय पर पहचान नहीं सके.
खफा नेताओं को रोक नहीं सके बड़े-बड़े नेता !
सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर इन विधायकों ने इस्तीफा दिया क्यों? पार्टी में असंतोष तो सरकार बनने के बाद से ही दिख रहे थे. अगर कर्नाटक की राजनीति को गौर से देखा जाए तो यहां जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनने के बाद से ही मतभेद उभर कर सामने आने लगे थे. और ये होना लाजमी भी था. आखिर जेडीएस और कांग्रेस में तो पहले से ही नहीं पटती थी, तभी तो दोनों ने चुनाव भी अलग-अलग लड़ा था. दोनों पार्टियां साथ आई थीं, क्योंकि वह मोदी का विजय रथ रोकना चाहती थीं. मोदी को हराने के लिए तो अधिक सीटें होने के बावजूद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद तक कुर्बान कर दिया. लेकिन इतना सब करने के बावजूद यूं लग रहा है कि कर्नाटक में भी भाजपा की ही सरकार बन जाएगी, क्योंकि कांग्रेस के अपने ही नेता उससे खफा दिख रहे हैं. खफा होने की वजहें भी कई हो सकती हैं.
- पहली वजह से यही हो सकती है कि उन्हें कोई पद नहीं मिला है, जबकि सत्ता में हर कोई पद की लालसा लेकर ही आता है. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व को ही उन्हें भरोसे में लेना चाहिए था और इस बात को समझाना चाहिए था कि पार्टी के हित के लिए क्या सही है.
- दूसरी वजह ये भी हो सकती है कि कांग्रेस के ये नेता खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे. माना जा रहा है कि कुमारस्वामी पर ये भी आरोप लगे कि वह कांग्रेस विधायकों के काम जल्दी नहीं कराते, बल्कि जेडीएस विधायकों को तरजीह देते हैं. कांग्रेस के पास राज्य में अधिक सीटें हैं. ऐसे में कांग्रेस विधायकों में गुस्सा आ जाना लाजमी है. ऐसी स्थिति हर सरकार में आती है. यहां तक कि अगर वो गठबंधन की ना हो, तो भी. ये कांग्रेस नेतृत्व और वरिष्ठ नेताओं की जिम्मेदारी है कि वह अपने नेताओं को भरोसे में लें.
- तीसरा वजह इस ओर भी इशारा कर रही है ये ऑपरेशन लोटस का ही हिस्सा हो. यानी पहले तो कांग्रेस से कुछ नेता इस्तीफा देंगे और फिर बाद में वह भाजपा में शामिल हो जाएंगे. इस तरह कर्नाटक में भी भाजपा की सरकार बन जाएगी.
- एक चौथी वजह पर भी ध्यान देना जरूरी है. आरोप ये भी लग रहे हैं कि कांग्रेस के नेताओं का एक ग्रुप जेडीएस के खिलाफ काम कर रहा है. अब ये बाहर से किसी के इशारे पर हो रहा है या फिर अंदरखाने ही कोई ऐसी राजनीति खेल रहा है, इसे लेकर भी कई बातें हो रही हैं. कहा तो यहां तक जा रहा है कि कर्नाटक के इस संकट के सूत्रधार सिद्धारमैया ही हैं. अब आगे कर्नाटक की राजनीति में क्या होगा, ये देखना दिलचस्प होगा.
कर्नाटक को इस संकट से उबारने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता कर्नाटक का रुख तो कर चुके हैं, लेकिन ये स्थिति संभलती है या नहीं, ये देखना होगा. फिलहाल सारे बागी विधायक मुंबई के एक 5 स्टार होटल में जमा हुए हैं और कुमारस्वामी भी अमेरिका से वापस कर्नाटक आ रहे हैं. लेकिन अगर कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस के गठबंधन की सरकार गिर जाती है तो इसके लिए जहां एक ओर राहुल गांधी जिम्मेदार होंगे, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के बाकी वरिष्ठ नेताओं को भी अपनी गलती माननी होगी. खासकर मल्लिकार्जुन खड़गे और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता, जिन्होंने इस सरकार को बनाने में अहम भूमिका अदा की थी.
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