क्यों चीन और पाकिस्तान चाहते हैं कि मोदी ही दोबारा भारत के पीएम बनें
हमारे दोनों पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान ये इशारा कर चुके हैं कि दोनों ही ये चाहते हैं कि पीएम मोदी ही लोकसभा चुनाव 2019 जीतें, लेकिन आखिर ऐसा क्यों?
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लोकसभा चुनाव 2019 अपने चरम पर है और हर राजनीतिक पार्टी जोर लगा रही है कि उसे जीत हासिल हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी ने नामांकन भर दिया है. भारतीय लोकसभा चुनावों के रिजल्ट की न सिर्फ हमारे देश के लोग चिंता कर रहे हैं बल्कि इसपर हमारे पड़ोसी देश भी टकटकी लगाए बैठे हैं. चीन और पाकिस्तान को लेकर भाजपा का कड़ा रुख रहा है और भाजपा सरकार हमेशा से कांग्रेस को चीन और पाकिस्तान का हितैशी बताती आई है. लेकिन असल बात ये है कि पाकिस्तानी और चीन दोनों ही ये चाहते हैं कि पीएम मोदी ही दोबारा पीएम बनें.
The tribune की रिपोर्ट के मुताबिक चीन में दूसरे Wuhan की तैयारी हो रही है. वुहान यानी एक और हाई लेवल मीटिंग जो दो देशों के बीच होती है. यहां तैयारी चीन के प्रेसिडेंट शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बातचीत के लिए चल रही है. हां, ये तब तक नहीं हो सकता जब तक भारत में चुनाव न हो जाएं, लेकिन चीनी अधिकारियों की मानें तो नरेंद्र मोदी वापस सत्ता में आ ही जाएंगे.
चीन में लोग जटिल चुनावी प्रक्रिया को नहीं जानते. उनके यहां तो चुनाव का मतलब सीधा है. पर चीनी भारतीय चुनावों पर बहुत ज्यादा ध्यान दिए हुए हैं. ऐसा सिर्फ भारत के साथ नहीं था बल्कि चीन अपने सभी पड़ोसियों के चुनावों पर ध्यान देता है. कारण? सीधा सा है कि चीन के हिसाब से हर उस जगह पर ध्यान दिया जाना चाहिए जहां या तो निवेश किया गया हो या फिर उसकी उम्मीद हो.
जनवरी में चीनी स्टेट मीडिया Global times की तरफ से एक खबर आई थी कि चीन नरेंद्र मोदी को नौकरियों की समस्या सुलझाने में मदद कर सकता है. दावा किया गया था कि नौकरियों की कमी के कारण पीएम मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है और चीन के लिए ये अच्छा नहीं है क्योंकि चीन चाहता है कि पीएम मोदी का देश पर ज्यादा कंट्रोल रहे.
चीन और पाकिस्तान की पीएम मोदी को सपोर्ट करने की अपनी-अपनी वजह है
रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन-भारत और डोकलाम मुद्दा लगभग 1 साल से वैसा का वैसा ही है और ये कई दशकों में भारत-चीन के रिश्तों का सबसे निचला स्तर था. भारत में कमजोर केंद्र सरकार है और विविद जनसंख्या. ऐसे में हम उम्मीद कर सकते हैं कि मोदी की पब्लिक इमेज बेहतर होगी और इससे पर्याप्त ताकत मिल सकेगी सीनो-भारत इकोनॉमिक कोऑपरेशन की. रिपोर्ट में ये भी आया था कि चीन की तरफ से भारत में खास तौर पर श्रम प्रधान क्षेत्रों में अच्छा खासा निवेश किया जा सकता है.
इस रिपोर्ट ने भारत में भी कई लोगों की नजरें अपनी तरफ की थीं. यही नहीं हाल ही में हुई बेल्ट रोड इनिशिएटिव कॉन्फ्रेंस (BRI) में भी इसके संकेत मिले हैं कि चीन दरअसल ये चाहता है कि नरेंद्र मोदी ही वापस सत्ता में आएं.
क्योंकि इस रिपोर्ट में खास तौर पर डोकलाम और चीनी निवेश की बात लिखी गई थी इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि चीन का मोदी को सपोर्ट करने का एक कारण ये है कि उसे लगता है कि पुराने मसले सुलझाए जा सकते हैं और साथ ही साथ निवेश बढ़ाया जा सकता है. रिपोर्ट में खास तौर पर चीन के निवेश की बात थी. अगर केंद्र सरकार बदलती है तो जितनी बात पिछले पांच साल में हुई है वो सब पीछे चली जाएगी.
इसका एक कारण और भी है. चीनी एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर मोदी चुनाव नहीं जीतते हैं तो एक गठबंधन की सरकार बनेगी और जो भी व्यापार और सीमा से जुड़ी बातचीत चल रही है वो अलग रणनीति के कारण ठप्प पड़ सकता है. मोदी आते हैं तो देश को एक दृढ़ सरकार मिलेगी. इस मौके पर चीन काफी उत्सुक है कि भारत BRI में हिस्सेदारी करे.
तो चीन के इरादे इससे साफ होते हैं कि उसे क्यों नरेंद्र मोदी ही वापस पीएम के तौर पर चाहिए.
पाकिस्तान क्यों चाहता है कि मोदी ही 2019 में भारत के PM बनें?
चीन के व्यापार को लेकर अपने अलग मुद्दे हैं और साथ ही सीमा से जुड़ा विवाद भी है इसलिए अगर चीन के कारण को समझ भी लिया जाए तो भी ये समझना जरूरी है कि आखिर पाकिस्तान क्यों चाहता है कि भारत में फिर से पीएम मोदी ही आएं? इमरान खान ने आधिकारिक तौर पर ये बयान दिया है कि अगर मोदी आते हैं तो हिंदुस्तान-पाकिस्तान के अमन की गुंजाइश ज्यादा है. ये तब है जब पीएम मोदी खुले तौर पर पाकिस्तान को चुनौती भी देते हैं और भारत में पाकिस्तान के प्रति नफरत को लेकर चुनाव लड़ा जा रहा है.
इसका एक सीधा सा कारण दिखता है और वो ये कि भाजपा सरकार एक मजबूत सरकार है और साथ ही यहां पर धार्मिक कट्टरता की झलक भी दिखती है. पाकिस्तान एक कट्टर देश है और अगर भारत में भी धर्म को लेकर कट्टरता शुरू होती है तो ये किसी न किसी तरह से पाकिस्तान के हक में ही जाएगा और न सिर्फ पाकिस्तानी सरकार बल्कि वहां की मिलिट्री को भी और ताकत देने के काम आएगा.
उदाहरण के तौर पर भारत में मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार को पाकिस्तान में जोर शोर से उठाया जाता है और साथ ही एक अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने की सोच को और पक्का करता है. ऐसे ही पाकिस्तान में जहां बहुत कम हिंदू बचे हैं उनपर हो रहे अत्याचार को लेकर आईं खबरें भारतीय मानसिकता को और भी ज्यादा मजबूत करती है कि पाकिस्तान सही देश नहीं है.
और इमरान खान ये मानते हैं कि नरेंद्र मोदी जैसा लीडर ही कश्मीर वार्ता को लेकर कुछ बातें आगे बढ़ा सकते हैं. भाजपा की सरकार में कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान के साथ पहल हुई थी. वाजपेयी खुद बस से पाकिस्तान चले गए थे और मोदी भी बिना किसी सूचना के पाकिस्तान हो आए थे. और दोनों ही समय कश्मीर को लेकर कड़ा रुख अपनाया गया है.
पाकिस्तान में भले ही भारत को लेकर कितनी भी नफरत हो, लेकिन इमरान खान के ऊपर ये दारोमदार है कि वो भारत के साथ समझौते की पहल करें और शायद यही कारण है कि सर्जिकल स्ट्राइक होने के बाद भी भारत के साथ समझौते की बात की जा रही है. इसी तरह से न तो कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान पर असर डाल रहा है और न ही डोकलाम का मुद्दा चीन पर और दोनों ही राष्ट्र चाहते हैं कि पीएम मोदी ही दोबारा सत्ता में आएं.
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