सस्ता पेट्रोल-डीजल! जानिए, राजनीतिक लाचारी के बीच ये क्यों असंभव है
केंद्र और राज्य सरकार के लिए पेट्रोल-डीजल सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है, जिसे वो हर हाल पर ज़िंदा रखना चाहती हैं. सियासी और आर्थिक कारणों से दोनों इस पर मनमाने ढंग से अपने-अपने टैक्स घटाती और बढ़ाती हैं.
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सौ रुपए से ज्यादा का पेट्रोल और करीब सौ रुपए का ही डिजल खरीद रहे लोगों के पास राहत के नाम पर एक चर्चा ही है. पिछले काफी समय से ये बात हो रही है कि यदि पेट्रोल-डीजल GST के दायरे में आ गया, तो वह सस्ता हो जाएगा. क्योंकि, चार साल हो गए हैं जीएसटी प्रणाली को लागू हुए. रेस्त्रॉ में खाने से लेकर खिलौनों तक, मोबाइल हैंडसेट से लेकर आपके मोबाइल बिल तक, सब पर जीएसटी लगता है. अधिकतम 28 प्रतिशत. तो पेट्रोल और डीज़ल पर क्यों नहीं? काश, यदि ऐसा हो जाए तो अभी जो अलग अलग मद में करीब 100 प्रतिशत टैक्स पेट्रोल-डीजल पर वसूला जा रहा है, उससे निजात मिल जाएगी. तो आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि...
-क्या वाकई पेट्रोल-डीजल GST के दायरे में आ भी सकता है?
-यदि उसे GST के दायरे में लाने की कोशिश होती है, तो किन किन सवालों से गुजरना पड़ेगा?
-और आखिर में सबसे जरूरी सवाल, GST वाला पेट्रोल-डीजल क्या हम तक सस्ता पहुंचेगा?
देश में जीएसटी प्रणाली को लागू हुए 4 साल पूरे हो गए हैं
केंद्र और राज्य सरकार के लिए पेट्रोल-डीजल सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है, जिसे वो हर हाल पर ज़िंदा रखना चाहती हैं. 2020-21 में कुल 18.65 लाख करोड़ के राजस्व में से केंद्र सरकार के पास 3 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा सिर्फ फ्यूल पर लगी एक्साइज़ ड्यूटी से आया. अब इतनी बड़ी कमाई को कौन खोना चाहेगा? राज़्यों के लिए भी मामला कुछ ऐसा ही है. दिल्ली में पेट्रोल की कीमत को ही ले लीजिए. 101 रुपये प्रति लीटर की कीमत में से 56 रुपये सिर्फ टैक्स हैं. जिसमें से 33 रुपये केंद्र सरकार की एक्साइज़ ड्यूटी और 23 रुपये दिल्ली सरकार का वैट है. ये रकम पिछले 7 साल में तीन गुनी से ज़्यादा बढ़ी है.
अब अगर इसे हटाकर GST लगा दिया जाए तो केंद्र सरकार ही नहीं, राज्य भी पशोपेश में आ जाएंगे. सिर्फ इतना ही नहीं, परेशानी के सबब और भी हैं:
1- फिलहाल एक्साइज़ ड्यूटी से मिली रकम पूरी तरह केंद्र के पास जाती है और वैट, राज्यों के पास. दोनों अपने मनमाने ढंग से इन टैक्स की दरों को घटाते-बढ़ाते रहते हैं. जीएसटी लगेगा तो पूरी रकम एक ही दर पर केंद्र के पास आएगी, जिसमें से आधी उसे राज्यों को देनी होगी. और इसी में हिसाब-किताब का मामला सिरफुटव्वल का बनेगा.
2- पेट्रोल-डीजल पर GST लगाने में एक पेंच और है. भारत में कच्चे तेल और नैचुरल गैस का उत्पादन गुजरात, महाराष्ट्र, असम जैसे राज्यों में होता है, और अभी इन राज्यों की मोटी कमाई इनके उत्पादन पर टैक्स लगाकर होती है. लेकिन जीएसटी लग गया तो इन राज्यों की मुश्किल हो जाएगी. क्योंकि, जीएसटी तो उत्पाद की बिक्री पर मिलता है, उत्पादन पर नहीं. यानी GST उन राज्यों को ज्यादा मिलेगा जहां पेट्रोल पंप पर बिक्री की ज्यादा होगी. और ये बिक्री ज़्यादा कहां होती है? जहां आबादी हो. उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में. मतलब जीएसटी का फायदा तेल उत्पादक राज्यों के बजाए तेल उपभोक्ता राज्यों को होगा. ये बात इन राज्यों को कतई मंज़ूर नहीं होगी.
3- पसोपेश सिर्फ राजस्व के बंटवारे को लेकर ही नहीं है, मामला राजनीति से जुड़ा भी है. राज्यों को एक बात और खटक रही है. जीएसटी के तहत उनके पास उनके हिस्से का पैसा केंद्र के ज़रिए आएगा. मतलब, वो केंद्र की दयादृष्टि के मोहताज हो जाएंगे. ये बात विपक्ष की सरकार वाले राज्यों के भला कैसे मंज़ूर होगी?
4- पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज़ की दर फिलहाल करीब 60% है. जीएसटी स्लैब में उच्चतम दर 28% है. यानी बाकी की भरपाई सेस लगाकर करना होगी. और अगर राज्यों का टैक्स भी जोड़ा जाए, तब तो सेस 70% से ज़्यादा का लगाना पड़ेगा! इतनी झंझट के बीच भला आपको और हमको सस्ते पेट्रोल और डीज़ल का फायदा नेता क्यों देंगे?
जीएसटी बैठकों में काम होता है सर्वसम्मति से. पहले भी ताज्जुब जताया जाता था कि सारे राज्य एक ही बात को मान कैसे गए. इस पर वित्त मंत्री की पीठ ठोकी जाती थी. लेकिन फ्यूल पर एकमत होना टेढी खीर है. केरल उच्च न्यायालय के सुझाव पर मामला एजेंडा पर तो आ गया है, लेकिन अगर नेता इसे आगे बढ़ा नहीं पाए तो ये उनकी गलती नहीं, लाचारी है.
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