क्या Sonu Sood के सेवा भाव में शुरू से ही सियासी मंशा छिपी हुई है?
पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) से पहले सोनू सूद (Sonu Sood) के खिलाफ चुनाव आयोग (Election Commission) के एक्शन गंभीर सवाल खड़े करता है - क्या कोरोना संकट के दौरान सोनू सूद के मसीहा बन कर मुसीबत में फंसे लोगों की सेवा का राजनीतिक मकसद रहा है?
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सोनू सूद (Sonu Sood) को जिस चुनाव आयोग (Election Commission) ने स्टेट आइकॉन बनाया था, उसी ने हटा भी दिया है - नवंबर, 2020 में सोनू सूद को मतदाताओं में जागरुकता लाने के मकसद से पंजाब का स्टेट आइकॉन बनाया गया था.
एक्टिंग में तो सोनू सूद पहले से ही अपना मुकाम हासिल कर चुके थे, लेकिन देश में जब संपूर्ण लॉकडाउन हुआ तो उनका नया अवतार सामने आये. अचानक सोनू सूद मुसीबत में खड़े हर मजबूर आदमी के लिए मसीहा के तौर पर उभरे. दिल खोल कर मदद की. सरकारी फैसलों ने जिन प्रवासी मजदूरों को सड़क पर छोड़ दिया, सोनू सूद उनके घर तक जाने का इंतजाम किये. जो अपनी साइकिल, रिक्शा, ठेला या दूसरे साधनों से पहले ही निकल चुके थे उनकी तकलीफें तो बेहिसाब रहीं, लेकिन एक बड़ा तबका रहा है जो ऐन वक्त पर सोनू सूद की मदद ताउम्र शायद ही भूल पाये.
कोई भी काम. भले ही वो कितना भी अच्छा क्यों न हो, बाधाएं न आयें ऐसा कभी नहीं होता. सोनू सूद के मामले में भी ऐसा ही हुआ. सोनू सूद की टीम के साथियों पर तो आरोप लगे ही, वो खुद भी शिवसेना के निशाने पर रहे.
मुंबई में कंगना रनौत को 'देशद्रोही' करार देने वाले बीएमसी यानी बृहन्मुंबई कॉर्पोरेशन ने तो हाई कोर्ट में दाखिल अपने कागजों में सोनू सूद को 'आदतन अपराधी' तक बता डाला था. सोनू सूद पर रिहाइशी इलाके के कमरों को व्यावसायिक होटल में तब्दील करने का भी आरोप लगा.
सोनू सूद ने मदद के लिए शिवसेना नेतृत्व के यहां मातोश्री से लेकर एनसीपी नेता शरद पवार के घर सिल्वर ओक तक हाजिरी लगायी, लेकिन कोई खास मदद नहीं मिली. राहत मिली वो सुप्रीम कोर्ट से ही मिल सकी.
प्रवासी मजदूरों के मसीहा बन कर उभरे सोनू सूद क्या सेवा और राजनीति में घालमेल करने लगे हैं?
चुनाव आयोग ने सोनू सूद की सोशल एक्टिविटी की वजह से उनको पंजाब का स्टेट आइकॉन बनाया था, लेकिन राजनीतिक गतिविधियों की वजह से पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Election 2022) से ठीक पहले उनको हटा दिया है - सबसे गंभीर बात भी यही और यही वजह है कि सोनू सूद की सेवा भावना के पीछे राजनीतिक मंशा को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
स्वेच्छा से या जबरन - क्या समझा जाये?
सोनू सूद को अगर स्टेट आइकॉन बनाया जाना सम्मानजनक समझा जाये तो हटाया जाना तो अपमानजनक ही माना जाएगा. लेकिन इसे भी सीधे सीधे समझ पाना मुश्किल हो रहा है - सोनू सूद का दावा है कि ये उनका स्वेच्छा से लिया गया फैसला है, जबकि चुनाव आयोग की तरफ से ट्विटर पर प्रेस रिलीज जारी कर बताया गया है, 'चुनाव आयोग ने पंजाब के स्टेट आइकॉन के रूप में सोनू सूद की नियुक्ति को वापस ले लिया है.'
Like all good things, this journey has come to an end too.I've voluntarily stepped down as the State Icon of Punjab.This decision was mutually taken by me and EC in light of my family member contesting in Punjab Assembly Elections. I wish them luck for future endeavours.??
— sonu sood (@SonuSood) January 7, 2022
Press Release:
Election Commission of India has withdrawn the appointment of Actor Sonu Sood as a state icon for Punjab.#TheCEOPunjab #PunjabVotes2022@ECISVEEP @SpokespersonECI @rajivkumarec @DDNewslive
— Chief Electoral Officer, Punjab (@TheCEOPunjab) January 7, 2022
राजनीतिक दलों के मामले में ऐसा अक्सर देखने को मिलता है. खासतौर पर मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी में. बीएसपी छोड़ने वाले नेताओं का बयान आता है कि वो पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं तभी एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दावा किया जाता है कि पार्टी ने निकाल दिया है - ये भी एक सवाल ही है कि सोनू सूद ने ये काम स्वेच्छा से किया है या चुनाव आयोग ने उनको जबरन हटा दिया है?
चुनाव आयोग का कहना है कि मीडिया रिपोर्ट से एक्टर के नेताओं से मुलाकात का जानकारी मिलने पर ये कदम उठाया गया है. पंजाब के मुख्य चुनाव अधिकारी एस करुणा राजू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहते हैं, 'चुनाव आयोग के स्टेट आइकॉन होने के लिए, हमें एक गैर राजनीतिक शख्सियत की जरूरत होती है जिसका किसी भी राजनीतिक दल या उसके नेताओं के साथ कोई एक्टिविटी न हो... मैंने सोनू सूद से बात की और अब तक के बेहतरीन सफर के लिए शुक्रिया कहा.'
ऐसा तो कई सेलीब्रिटी करते हैं
नये साल 2022 के मौके पर भी सोनू सूद ने पहले की ही तरह आगे भी लोगों की मदद के लिए मुस्तैद रहने की बात कही थी. एक पोस्ट में सोनू सूद ने ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के मद्देनजर कोविड 19 की तीसरी लहर की आशंका भी जतायी थी.
सोनू सूद ने लिखा - 'कोरोना मामले कितने भी क्यों न बढ़ जायें... भगवान न करे कभी मेरी जरूरत पड़े - लेकिन अगर कभी पड़ी तो याद रखना मेरा फोन नंबर अभी वही है.’
ये भी खबर आयी कि सोनू सूद अपनी बहन मालविका सूद सच्चर के साथ मिलकर एक हजार स्कूली छात्राओं को साइकिल बाटेंगे - और मोगा और आस पास के 40-45 गावों की 8वीं से 12वीं क्लास की छात्राओं को ये फायदा मिलेगा.
हाल के दिनों में सोनू सूद ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल से मुलाकात की है. कुछ दिन पहले ही सोनू सूद ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया था कि उनकी बहन मालविका सूद सच्चर पंजाब के मोगा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं - और उनको बहन के चुनाव क्षेत्र में कैंप करते और गांव गांव घूम कर उनका प्रचार करते भी देखा गया था.
चुनाव आयोग के एक्शन की बात और है. हो सकता है, सोनू सूद की एक्टिविटी चुनाव आयोग के पैरामीटर पर फिट न बैठ पा रहे हों, लेकिन सोनू सूद सब कुछ राजनीतिक मंशा से ही कर रहे हैं ऐसा ही क्यों समझा जाना चाहिये?
क्या सोनू सूद अपनी बहन की जगह किसी और के चुनाव कैंपेन में भी शामिल होते तो ऐसा ही समझा जाता. मालविका सूद के लिए कोई और भी तो कैपेंन कर सकता था. अगर उनके भाई सेलीब्रिटी हैं तो वो उनको ही बुला ले रही हैं - लेकिन इतने भर से ये कैसे कहा जा सकता है कि सोनू सूद की समाज सेवा के पीछे उनका मकसद राजनीति में आना ही है?
सवाल तो उठते ही रहे हैं
बताते हैं कि सोनू सूद ने मदद की शुरुआत कोरोना वायरस रिलीफ फंड में कंट्रीब्यूशन के साथ किया था. फिर कोरोना संक्रमण के शिकार लोगों को इलाज के लिए अपना जुहू वाला होटल मेडिकल स्टाफ को दे दिया था. जब सोनू सूद ने मजदूरों को सड़कों पर पैदल चलता देखा तो खुद भी सड़क पर उतर आये और बसों से उनको घर भेजने की व्यवस्था करने लगे.
सोनू सूद पर सबसे पहले शिवसेना नेता संजय राउत ने सवाल उठाया था. शिवसेना के मुखपत्र सामना में संजय राउत ने सोनू सूद की सेवा भावना को राजनीति से जोड़ डाला था. संजय राउत का मानना रहा कि सोनू सूद महाराष्ट्र में विपक्षी दल बीजेपी के प्यादे के तौर पर काम कर रहे थे.
अपने कॉलम में संजय राउत ने लिखा, 'लॉकडाउन के दौरान आचानक सोनू सूद नाम से नया महात्मा तैयार हो गया. इतने झटके और चतुराई के साथ किसी को महात्मा बनाया जा सकता है?'
शिवसेना प्रवक्ता ने ये भी लिखा था, 'कहा जा रहा है कि सोनू सूद ने लाखों प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्यों में उनके घर पहुंचाया. मतलब केंद्र और राज्य सरकार ने कुछ भी नहीं किया. इस काम के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भी महात्मा सूद को शाबाशी दी.'
सोनू सूद ने सारे आरोपों को खारिज किया था: जून, 2020 में संजय राउत के बयान पर सोनू सूद का कहना रहा, 'मैं किसी की खातिर कुछ नहीं कर रहा हूं. मैं बस प्रवासियों के लिए कुछ करना चाहता हूं.'
तभी आज तक से बातचीत में सोनू सूद ने भरोसा दिलाने की कोशिश की थी कि उनके इरादों पर सवाल उठने के बावजूद वे लोगों की मदद करना बंद नहीं करेंगे. बोले, 'जब तक लोग मदद मांगेंगे, मैं मदद करता रहूंगा.'
इल्जाम भी लगते रहे हैं
टैक्स चोरी का इल्जाम: सोनू सूद पर 20 लाख रुपये के इनकम टैक्स चोरी का भी आरोप लगा है. आयकर विभाग ने 15 सितंबर को लखनऊ में छापेमारी की थी. विभाग की तरफ से एक बयान में कहा गया, ‘अभिनेता और उनके सहयोगियों के परिसरों की छापेमारी के दौरान कर चोरी से संबंधित साक्ष्य मिले हैं.’
आयकर विभाग ने सोनू सूद पर विदेशों से चंदा जुटाने के दौरान FCRA के उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया था - हालांकि, ऐसे छापों के शिकार सलमान खान और एकता कपूर से लेकर कैटरीना कैफ तक हो चुकी हैं.
बीएमसी का नोटिस: कंगना रनौत की ही तरह बीएमसी ने सोनू सूद को अपनी बिल्डिंग में अवैध निर्माण को लेकर नोटिस भेजा था. पहले सोनू सूद पर रिहायशी इमारत को होटल बनाने का आरोप लगा. फिर बीएमसी ने उनके जुहू होटल को वापस रिहायशी बिल्डिंग में बदलने और अवैध निर्माण को हटाने के लिए कहा था.
सोनू सूद ने बीएमसी के खिलाफ लोकल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और राहत न मिलने पर हाई कोर्ट गये. हाई कोर्ट ने बीएमसी ने सोनू सूद को हैबिचुअल ऑफेंडर के तौर पर पेश किया. जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो वो सबसे बड़ी अदालत की शरण में पहुंचे.
सुप्रीम कोर्ट से राहत: बीएमसी का नोटिस मिलने के बाद सोनू सूद ने उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के अलावा एनसीपी नेता शरद पवार से भी मुलाकात की थी - संजय राउत के हमलों के लिए या नोटिस को लेकर, लेकिन राहत मिली तो सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से.
सुप्रीम कोर्ट ने सोनू सूद के खिलाफ अवैध निर्माण वाले केस में बीएमसी को किसी भी तरह की कार्रवाई पर रोक लगा दी - तब तक जब तक ये मामला कोर्ट के बाहर सुलझ नहीं जाता.
सोनू सूद ने इसे न्याय की जीत माना और कहा था कि वो हमेशा कानून के दायरे में रह कर ही काम किया करते हैं. एक पोस्ट में सोनू सूद ने लिखा - सुप्रीम कोर्ट ने मुझे सही फैसला लेने के लिए समय दिया है. मैंने जो भी काम किया वो कानूनी तरीके से ही किया, लेकिन उसे गलत तरीके से दिखाया गया.
लेकिन कुछ सवाल भी हैं
1. रजनीकांत से कितने प्रेरित है सोनू सूद: जैसे दक्षिण में लोग रजनीकांत को मानते हैं, उत्तर भारत में पैंडेमिक के बाद से सोनू सूद को भी लोग करीब करीब वैसा ही मसीहा मानने लगे हैं. रजनीकांत की तरफ से कई बार उनके राजनीति में आने के भी संकेत मिले, लेकिन फिर लगा जैसे उनकी करिश्माई एक्टिंग रही है, ये इशारे भी राजनीतिक स्टाइल हैं.
रजनीकांत को जोड़ने के लिए बारी बारी सभी ने अपनी तरह से जीतोड़ कोशिश की, लेकिन वो दूरी बना कर चलते रहे. तमिलनाडु चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मीटिंग के कयास लगाये जा रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हां, ये जरूर मालूम हुआ कि बीजेपी की तरफ से एक नेता ने मुलाकात जरूर की थी. लेकिन फिर बात आई गयी हो गयी.
अब सवाल ये है कि क्या सोनू सूद भी राजनीति को लेकर रजनीकांत से प्रेरित हैं और उनकी ही तरह दूरी बना कर चलना चाहते हैं - या फिर आगे का भी कोई इरादा है?
2. केजरीवाल से कोई टिप्स ली क्या: अगस्त, 2021 में सोनू सूद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिले थे और फिर उनको देश के मेंटोर अभियान का ब्रांड अंबेसडर बनाया गया. इस मुहिम के तहत स्कूली छात्रों को कॅरिअर गाइडेंस दिया जाना है.
तब सोनू सूद ने कहा था, 'मुझे लाखों छात्रों का मार्गदर्शन करने का अवसर मिला है... छात्रों का मार्गदर्शन करने से बड़ी कोई सेवा नहीं है... मुझे यकीन है कि हम एक साथ कर सकते हैं - और हम करेंगे.'
सोनू सूद की बातों से ही सवाल उठा कि अरविंद केजरीवाल के साथ वो मिल कर कहां तक और क्या क्या काम करेंगे? सोनू सूद और अरविंद केजरीवाल का रिश्ता वैसा ही रहेगा जैसा गुजरात के मुख्यमंत्री रहते अमिताभ बच्चन और नरेंद्र मोदी का रहा या उससे आगे भी बढ़ सकता है?
3. आपदा में अवसर देख रहे हैं क्या: अभी तक ये नहीं साफ हो सका है कि सोनू सूद की बहन मालविका सूद सच्चर निर्दल चुनाव लड़ने वाली हैं या फिर किसी राजनीतिक दल के टिकट पर - और अगर ऐसा कोई विचार है तो क्या वो आम आदमी पार्टी से टिकट लेने वाली हैं?
अरविंद केजरीवाल एक बार फिर से पंजाब चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं और सर्वे से मालूम होता है कि आम आदमी पार्टी सबसे बड़ा राजनीतिक दल बन कर उभर सकता है?
सोनू सूद और अरविंद केजरीवाल में एक कॉमन बात भी है - जैसे सोनू सूद एक्टर के रूप में स्थापित हैं, केजरीवाल भी आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर रमन मैगसेसे अवॉर्ड जीत कर पहचान बना चुके थे.
जैसे रामलीला आंदोलन के रास्ते अरविंद केजरीवाल राजनीति में आये, सोनू सूद के पास भी तो वैसा ही मौका है - समाजसेवा के रास्ते राजनीति में एंट्री लेने का. हो सकता है सोनू सूद पर आपदा में अवसर का लाभ उठाने जैसे तोहमत भी लगे, लेकिन मौजूदा हालात में सोनू सूद के लिए पंजाब में वैसा स्कोप नहीं नजर आ रहा जैसा दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के लिए रहा.
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