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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 06 फरवरी, 2021 01:51 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सोनू सूद (Sonu Sood) अब चाहें तो कुछ दिन चैन की नींद सो सकते हैं. वैसे भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से जिसके फेवर में फैसला आये वो तो चैन की नींद सो ही सकता है - इंसाफ मिलने का सुकून होता तो ऐसा ही है.

असल में बीएमसी ने काफी दिनों से सोनू सूद की नींद हराम कर रखी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सोनू सूद के खिलाफ गैर कानूनी निर्माण वाले केस में बीएमसी की तरफ से किसी भी तरह के एक्शन पर रोक लगा दी है. आदेश में साफ तौर पर कहा गया है कि जब तक ये मामला कोर्ट के बाहर सुलझ नहीं जाता तब तक सोनू सूद के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं होगी.

सबसे बड़ी अदालत का रुख करने से पहले सोनू सूद ने एनसीपी नेता शरद पवार से भी मुलाकात कर बीएमसी के आरोपों पर सफाई पेश की थी. महाराष्ट्र में सत्ताधारी खेमे से शरद पवार ही ऐसे नेता रहे जो कंगना रनौत का दफ्तर तोड़े जाने को लेकर बीएमसी के एक्शन को अनावश्यक माना था. शरद पवार से पहले सोनू सूद मातोश्री जाकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके मंत्री बेटे आदित्य ठाकरे से भी मिल चुके हैं. हालांकि, शिवसेना सोनू सूद के सामाजिक कामों के पीछे राजनीतिक वजह मानते हुए आक्रामक रही है.

सोनू सूद पर बीएमसी का आरोप है कि वो जुहू में एक छह मंजिला रिहायशी इमारत को बगैर परमिशन लिए होटल में तब्दील कर दिये हैं - और नोटिस भेजे जाने के बाद भी नजरअंदाज करते हुए निर्माण का काम जारी रखा. सोनू सूद का कहना है कि कुच गलत लोगों के संग होने की वजह से उकी छवि पर भी गलत असर पड़ा है. सोनू सूद कहते हैं, 'ये अफसोस की बात है कि मेरे साथ कुछ ऐसे लोग मौजूद थे, जिन्होंने मेरी छवि को धूमिल करने का काम किया. मेरी सभी से प्रार्थना है कि वे ऐसे लोगों से बचें क्योंकि ये खुद को समाजिक कार्यकर्ता जरूर बताते हैं, लेकिन असल में काम कुछ और ही करते हैं.'

ये तो अच्छी बात है कि सोनू सूद अपने इर्द गिर्द जुटे गलत लोगों से पीछा छुड़ाने में सफल रहे हैं. वैसे ऐसे लोगों से पीछा छुड़ाने से पहले तो उनकी पहचान करना जरूरी होता है. उससे भी अच्छी बात ये है कि सोनू सूद खुलेआम इस बात को स्वीकार भी कर रहे हैं कैसे गलत लोग उनके साथ हो लिये थे और बाकियों को भी ऐसे लोगों से बचने की सलाह दे रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खुशी जाहिर करते हुए सोनू सूद ने दावा किया है कि वो जो भी करते हैं कानून के दायरे में रह कर ही करते हैं. कहते हैं, 'मैंने हमेशा कानून का पालन किया है... मैं हमेशा अपने बिजनेस को कानून के दायरे में ही चलाता हूं - हर तरह की परमीशन भी लेकर रखता हूं.'

ये तो हुईं सोनू सूद के चैन की और सुकून भरी बातें, लेकिन सोनू सूद ने एक गोलमोल ट्वीट कर नयी बहस छेड़ दी है. सोनू सूद के निशाने पर जो भी हैं, वो उन सभी को आगाह करने की कोशिश कर रहे हैं कि अपनी नींद हराम करने के लिए वे खुद ही जिम्मेदार हैं क्योंकि उनकी नींद किसी और ने नहीं बल्कि खुद उन लोगों ने ही अपनी नींद हराम कर रखी है - और ऐसा इसलिए क्योंकि वे जो कुछ भी कर रहे हैं वो सही नहीं है.

अब सवाल है कि सोनू सूद ने ये मैसेज किन लोगों को देने की कोशिश की है?

sonu sood, kangana ranautक्या सोनू सूद महाराष्ट्र में पॉलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश कर रहे हैं?

किसानों के आंदोलन (Farmers Protest) को लेकर बॉलीवुड सेलीब्रिटी बंटे हुए हैं - कहीं वे ही तो नहीं हैं सोनू सूद के निशाने पर जो किसानों के साथ खड़े नहीं हैं?

सोनू सूद के निशाने पर कौन?

महाराष्ट्र सरकार के नजरिये से देखें तो सोनू सूद और कंगना रनौत दोनों ही एक ही छोर पर खड़े नजर आते हैं, लेकिन किसानों के आंदोलन को लेकर दोनों का स्टैंड बिलकुल अलग है - एक पूरी तरह साथ है तो दूसरा पूरी तरह खिलाफ.

बॉम्बे हाई कोर्ट में दाखिल हलफनामे में तो बीएमसी ने सोनू सूद को हैबिचुअल ऑफेंडर यानी आदतन अपराधी बता ही रखा है. हालांकि, महाराष्ट्र में सरकारी दस्तावेजों में ऐसी तोहमत ढोने को मजबूर किये जाने वाले सोनू सूद अकेले सेलीब्रिटी नहीं हैं, कंगना रनौत भी अपने खिलाफ देशद्रोह के केस का सामना कर रही हैं - और उनको भी बॉम्बे हाई कोर्ट से राहत मिली हुई है.

महाराष्ट्र के सरकारी दस्तावेजों में भले कंगना रनौत के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज हो, लेकिन दिल्ली बॉर्डर पर कृषि कानूनों की वापसी की मांग कर रहे किसान ही देशद्रोही हैं. कंगना के कई ट्वीट में आंदोलनकारी किसानों को आतंकवादी तक बताया जा चुका है. पॉप सिंगर रिहाना को दिये जवाब में भी कंगना रनौत ने ऐसा ही कहा है.

रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग और मिया खलीफा के ट्विटर पर किसानों के आंदोलन को सपोर्ट किये जाने को लेकर सचिन तेंदुलकर जैसी हस्तियों ने भी ट्वीट किया है - हालांकि, अब तक यही देखने को मिला है कि किसी भी मुद्दे पर बॉलीवुड और दूसरी हस्तियां भी बंटी हुई नजर आती हैं, किसानों के मामले में भी ऐसा ही है.

सोनू सूद शुरू से ही किसानों के सपोर्ट में रहे हैं. ये स्वाभाविक भी है क्योंकि सोनू सूद पंजाब के ही मोगा इलाके से आते हैं - और मुंबई में वो भी कंगना रनौत की तरह ही बाहरी कैटेगरी में आते हैं. सोनू सूद के कई ट्वीट में किसानों के प्रति समर्थन को देखा जा सकता है.

सोनू सूद का कटाक्ष वाला ट्वीट नये सिरे से बहस का विषय बना है, जिसमें वो सिर्फ इतना ही कहते हैं - 'गलत को सही कहोगे तो नींद कैसे आएगी?'

सोनू सूद के इस ट्वीट पर जबरदस्त रिएक्शन देखने को मिले हैं. लोग सोनू सूद को सलाह दे रहे हैं कि वो खुल कर क्यों नहीं बोल रहे हैं - और पूछ भी रहे हैं कि उनको किससे और किस बात का डर है?

कोई लिखता है, 'भाई खुलकर बोला करो, आपको डर कैसा?' तो कोई लिख रहा है, 'खुल के बोलो सर... ड्युअल टोन आपके मुंह से अच्छी नहीं लगती... क्योंकि सही तो सही है और गलत तो गलत है - आपने हमेशा यही बात कही है.'

सोनू सूद का पेशा भी वही है जो कंगना रनौत का है, लेकिन किसानों पर दोनों की अलग अलग लाइन होने के बावजूद दोनों ही राजनीति के दो छोर पर खड़े नजर आते हैं.

कंगना रनौत से शिवसेना इसलिए खार खाये रहती है क्योंकि उसे लगता है कि वो बीजेपी के इशारे पर बयानबाजी करती हैं - और वैसे भी जिस तरीके से कंगना रनौत ने उद्धव ठाकरे को तू-तड़ाक किया है, शिवसेना का एक्टर से गुस्सा होना भी स्वाभाविक है.

लेकिन किसानों का मुद्दा बताता है कि सोनू सूद और कंगना रनौत के रास्ते बिलकुल अलहदा हैं, फिर शिवसेना के सोनू सूद से चिढ़ की क्या वजह हो सकती है.

या फिर सोनू सूद ने ऐसे लोगों से पीछा छुड़ा लिया है जिनका साथ शिवसेना को पसंद नहीं था - और उनको ही वो गलत लोग बता रहे हैं और उनसे बचने की सलाह दे रहे हैं.

किसान आंदोलन ने तो देश की राजनीति को पूरी तरह बांट कर रख दिया है - एक वे जो किसानों की तरफ हैं और दूसरे वे जो किसानों के खिलाफ हैं. जो किसानों की तरफ हैं वे बीजेपी के खिलाफ हैं और जो किसानों के खिलाफ हैं वे बीजेपी के साथ हैं.

शिवसेना बीजेपी के खिलाफ है, तभी तो संजय राउत गाजीपुर बॉर्डर पहुंच कर राकेश टिकैत को समर्थन दे रहे हैं - और जब इतना सब हो रहा है तो यही लगता है कि सोनू सूद का ट्वीट उनके खिलाफ ही है जो किसानों के साथ नहीं हैं - बाकी समझने के लिए आप खुद समझदार हैं!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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